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भीम हनुमानजी प्रसंग - जानिए क्यों विराजित हुए हनुमानजी अर्जुन के रथ के छत्र पर धर्म ग्रंथो के अनुसार हनुमानजी और भीम भाई है क्योंकि दोनों ही पवन देवता के पुत्र है। महाभारत में एक प्रसंग आता है जब भीम और हनुमान की मुलाक़ात होती है। आज हम आपको वोही प्रसंग विस्तारपूर्वक बता रहे है। साथ ही इस प्रसंग का सम्बन्ध उस मान्यता से भी है जिसके अनुसार महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण, अर्जुन के जिस रथ के सारथी बने थे उस रथ के छत्र पर स्वयं हनुमानजी विराजित थे। इसलिए आज भी अर्जुन के रथ की पताका में हनुमानजी को दर्शाया जाता है। तो आइए जानते है क्या है ये प्रसंग ? भीम-हनुमानजी प्रसंग वनवास के दौरान पांडव जब बदरिकाश्रम में रह रहे थे तभी एक दिन वहां उड़ते हुए एक सहस्त्रदल कमल आ गया। उसकी गंध बहुत ही मनमोहक थी। उस कमल को द्रौपदी ने देख लिया। द्रौपदी ने उसे उठा लिया और भीम से कहा- यह कमल बहुत ही सुंदर है। मैं यह कमल धर्मराज युधिष्ठिर को भेंट करूंगी। अगर आप मुझसे प्रेम करते हैं तो ऐसे बहुत से कमल मेरे लिए लेकर आइये। द्रौपदी के ऐसा कहने पर भीम उस दिशा की ओर चल दिए, जिधर से वह कमल उड़ कर आया था। भीम के चलने स
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महाराणी जयवंता बाई

महारानी जयवंताबाई महाराणा उदय सिंह की पहली पत्नी थी , और इनके पुत्र का नाम महाराणा प्रताप था। यह राजस्थान के जालौर की एक रियासत के अखे राज सोंगरा चौहान की बेटी थी। ... जयवंता बाई उदय सिंह को राजनीतिक मामलों में सलाहें देती थी। 1572 में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद, जगमल अपने पिता की इच्छा के अनुसार सिंहासन पर चढ़ गए। एक मा का आपकी जिंदगी में क्या भुमिका होती हैं वो महाराणा प्रताप और माता  जयवंता बाई से सीखे एक अदृश्य मां होने के नाते  महाराणा प्रताप का बचपन माता जयवंता बाई कृष्ण भक्ति भक्त थी उन्होंने शुरू से ही कुंवर प्रताप को भगवान कृष्ण और महाभारत की युद्ध कलाओं का ज्ञान दिया। रानी जयवंता बाई कुंवर प्रताप को बताती थी कि किस तरह उनके दादा राणा सांगा ने अपनी तलवार की धार से दिल्ली की बादशाहत को रक्त से नहलाया। किस तरह उनके परदादा बप्पा रावल का शौर्य के रक्त में नहाया कलेजा जब अरब की धरती पर गरजा तो आने वाले 400 सालों तक कोई भी विदेशी भारत की तरफ आंख उठाने की हिम्मत नहीं कर पाया। सिसोदिया वंश के इस गौरवशाली अतीत को सुनते हुए प्रताप धीरे धीरे बड़े होने लगे। समय आने पर उनको गुरुकुल भ

*राव चन्द्रसेनसेन राठोड़*

मारवाड़ का राणा प्रताप " राव चन्द्रसेन राठौड़" " राव चन्द्रसेन जी राठौड़" * जन्म - 31 जुलाई, 1541 ई. * राव गांगा के पौत्र व राव मालदेव के पुत्र * उपनाम - मारवाड़ का राणा प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, भूला-बिसरा राजा 23 मार्च , 1560 ई. * इस दिन राव चन्द्रसेन का विवाह मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की पुत्री बाईजीलाल सूरजदे से हुआ इस तरह राव चन्द्रसेन महाराणा प्रताप के बहनोई हुए 1562 ई. * राव मालदेव का देहान्त * राव चन्द्रसेन राव मालदेव के तीसरे पुत्र थे, पर राव मालदेव की इच्छा से मारवाड़ की राजगद्दी राव चन्द्रसेन को मिली * सोजत दुर्ग में राव चन्द्रसेन का राज्याभिषेक हुआ * इसी वर्ष किसी मजबूरी के चलते राव चन्द्रसेन को जालौर अकबर के सिपहसालार खान जहां को सौंपना पड़ा 1563 ई. " लोहावट का युद्ध " राव चन्द्रसेन ने किसी कारण से अपने एक नौकर पर क्रोधित होकर उसे मृत्युदण्ड देना चाहा, तो ये नौकर राव चन्द्रसेन के रिश्तेदार जैतमाल के पास पहुंचा जैतमाल ने राव चन्द्रसेन से नौकर को माफ करने के लिए कहा, पर राव चन्द्रसेन ने जैतमाल की बात न सुनी, तब जैतमाल न