सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

महाराणी जयवंता बाई

महारानी जयवंताबाई

महाराणा उदय सिंह की पहली पत्नी थी , और इनके पुत्र का नाम महाराणा प्रताप था। यह राजस्थान के जालौर की एक रियासत के अखे राज सोंगरा चौहान की बेटी थी। ... जयवंता बाई उदय सिंह को राजनीतिक मामलों में सलाहें देती थी। 1572 में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद, जगमल अपने पिता की इच्छा के अनुसार सिंहासन पर चढ़ गए। एक मा का आपकी जिंदगी में क्या भुमिका होती हैं वो महाराणा प्रताप और माता  जयवंता बाई से सीखे एक अदृश्य मां होने के नाते

 महाराणा प्रताप का बचपन

माता जयवंता बाई कृष्ण भक्ति भक्त थी उन्होंने शुरू से ही कुंवर प्रताप को भगवान कृष्ण और महाभारत की युद्ध कलाओं का ज्ञान दिया।

रानी जयवंता बाई कुंवर प्रताप को बताती थी कि किस तरह उनके दादा राणा सांगा ने अपनी तलवार की धार से दिल्ली की बादशाहत को रक्त से नहलाया। किस तरह उनके परदादा बप्पा रावल का शौर्य के रक्त में नहाया कलेजा जब अरब की धरती पर गरजा तो आने वाले 400 सालों तक कोई भी विदेशी भारत की तरफ आंख उठाने की हिम्मत नहीं कर पाया।

सिसोदिया वंश के इस गौरवशाली अतीत को सुनते हुए प्रताप धीरे धीरे बड़े होने लगे। समय आने पर उनको गुरुकुल भेज दिया गया जहां प्रताप सुबह का समय गुरुकुल में बिताते दोपहर के समय में भीलो की बस्तियों में चले जाते शाम होते होते-होते प्रताप लोहारों के गावों में निकल जाते।

Maharana Pratap with bheel sena

उनको हथियार बनाने की कला सीखने में बड़ा आनंद आता था । जनता के बीच इस कदर घुल मिल जाने पर प्रताप सबके चहेते बन गए। भीलो ने उनको कीका कहकर बुलाया तो वही लोहारों ने उनको अपना राजा मानना शुरू कर दिया।

कुंवर प्रताप बचपन से ही वीर, स्वाभिमानी और हठी स्वभाव के थे। उनका शरीर सामान्य बच्चों से कई गुना मजबूत था। उन्होंने छोटी सी उम्र में ही अफ़गानीयों की बस्ती पर धावे बोलने शुरू कर दिए। मेवाड़ से होकर गुजरने वाली मुगल सेना पर भी गुलेल से हमला कर देते। 

कुवर के इन कारनामों को देखते हुए सबको लगने लगा था कि बड़े होने पर वे महापराक्रमी योद्धा बनेंगे और प्रताप ही भविष्य में मेवाड़ के राणा बनेंगे।

महाराणा प्रताप का राजतिलक

उदय सिंह जी की कई रानियां भी थी जिनसे उनको कुल 33 संताने थी।

पर उदय सिंह जी की सबसे प्रिय रानी थी धीर बाई सा इनको राणा उदय सिंह अधिक महत्व देते थे इन्हीं के कहने पर राणा उदय सिंह जी ने अपने पुत्र जगमाल को मेवाड़ राज्य का भावी राजा घोषित कर दिया। 

परन्तु शास्त्रों के अनुसार हमेशा बड़ा पुत्र ही राजा बनने का अधिकारी होता है, पर जिसका हृदय सागर जैसा विशाल हो उसको ऐसी बातों से फर्क नहीं पड़ता।

कुंवर प्रताप ने अपने पिता उदय सिंह के इस आदेश को मानते हुए अपने छोटे भाई जगमाल को राजगद्दी देना स्वीकार कर लिया ।

परन्तु सभी सामंत सरदार और राज्य की सामान्य जनता ने उदय सिंह के इस फैसले पर विरोध जताया। वे कुंवर प्रताप को ही अपना राजा मानते थे। 

समय के साथ धीरे धीरे महाराजा उदय सिंह का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और सन 1572 आते आते-आते उनका स्वर्गवास हो गया उनके अंतिम संस्कार में कुंवर प्रताप सहित है मेवाड़ का प्रत्येक व्यक्ति आया। 

और कुंवर जगमाल ऐसे मुश्किल समय में महल के अंदर अपना राज्य अभिषेक करवा रहा था तथा ऐसी दुख की घड़ी में जगमाल का अपने पिता के अंतिम दर्शन के लिए भी उपस्थित ना होने के कारण सभी सरदारों ने यही गोगुंदा की पहाड़ियों पर रक्त से मेवाड़ के असली राजा श्री कुंवर प्रताप का राज्याभिषेक कर दिया।

सरदार रावत कृष्णदास चुंडावत ने राणा प्रताप की कमर में तलवार बांधते हुए ललकार लगाई मेवाड़ मुकुट केसरी कुंवर प्रताप सिंह आज से मेवाड़ के राणा ह

यही से महाराणा प्रताप ने अपने राजपूत सरदारों के साथ कुंभलगढ़ की ओर कूच किया। राणा प्रताप के आने का समाचार सुनकर छोटा भाई जगमाल राजगढ़ी को छोड़कर भय के कारण अकबर की शरण में चला गया जिसके बाद 1573 को कुंभलगढ़ की राजगद्दी पर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का विधिवत रूप से राजतिलक कर दिया गया।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ शेखावत शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ़,नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है । शेखावत वंश परिचय वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है | भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतास गढ़ और रोहताश से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये |रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वाहन के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया |कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली | महात

माता राणी भटियाणी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास

~माता राणी भटियानी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास ।~ .....~जय जसोल माजीसा~...... माता राणी भटियानी ( "भूआजी स्वरूपों माजीसा" शुरूआती नाम) उर्फ भूआजी स्वरूपों का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ।भूआजी स्वरूपों उर्फ राणी भटियानी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था।राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था।राव कल्याणसिंह का पहला विवाह राणी देवड़ी के साथ हुआ था। शुरुआत मे राव कल्याणसिंह की पहली राणी राणी देवड़ी के संतान नही होने पर राव कल्याण सिंह ने भूआजी स्वरूपों( जिन्हे स्वरूप बाईसा के नाम से भी जाना जाता था) के साथ दूसरा विवाह किया।विवाह के बाद भूआजी स्वरूपों स्वरूप बाईसा से राणी स्वरुपं के नाम से जाना जाने लगी। विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया। राणी स्वरुपं के संतान प्राप्ति होने से राणी देवड़ी रूठ गयी।उन्हे इससे अपने मान सम्मान मे कमी आने का डर सताने लगा था।प्रथम राणी देवड

देवड़ा चौहानो की खापें और उनके ठिकाने

देवड़ा चौहानों की खापें और उनके ठिकाने देवड़ा :- लक्ष्मण ( नाडोल) के तीसरे पुत्र अश्वराज (आसल ) के बाछाछल देवी स्वरूप राणी थी | इसी देवी स्वरूपा राणी के पुत्र 'देवीरा ' (देवड़ा ) नाम से विख्यात हुए | इनकी निम्न खापें है | १.बावनगरा देवड़ा :- महणसी देवड़ा के पुत्र पुतपमल के पुत्र बीजड़ हुए बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण के वंशजों का ठिकाना बावनगर था | इस कारन लक्ष्मण के वंशज बावनगरा देवड़ा कहलाये | मेवाड़ में मटोड़ ,देवरी ,लकड़बास आदी ठिकाने तथा मालवा में बरडीया ,बेपर आदी ठिकाने | २.मामावला देवड़ा :- प्रतापमल उर्फ़ देवराज के छोटे पुत्र बरसिंह को मामावली की जागीर मिली | इस कारन बरसिंह के वंशज मामावला देवड़ा कहलाये | ३.बड़गामा देवड़ा :- बीजड़ के छोटे पुत्र लूणा के पुत्र तिहुणाक थे | इनके पुत्र रामसिंह व् पोत्र देवासिंह को जागीर में बड़गाम देवड़ा कहलाये | बडगाम जोधपुर राज्य का ठिकाना था | सिरोही राज्य में इनका ठिकाना आकुला था | ४.बाग़ड़ीया देवड़ा :- बीजड़ के क्रमशः लूणा ,तिहुणक व् सबलसिंह हुए | सबलसिंह के वंशज बागड़ीया कहलाते है | बडगांव आकन आदी इनके ठिकाने थे | ५. बसी देवड़ा