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राठौड़ वंश की खापें

राठौड़ वंश की खापें 1. इडरिया राठौड़ 2. हटुण्डिया राठौड़ 3. बाढेल (बाढेर) राठौड़ 4. बाजी राठौड़ 5. खेड़ेचा राठौड़ 6. धुहडि़या राठौड़ 7. धांधल राठौड़ 8. चाचक राठौड़ 9. हरखावत राठौड़ 10. जोलू राठौड़ 11. सिंघल राठौड़ 12. उहड़ राठौड़ 13. मूलू राठौड़ 14. बरजोर राठौड़ 15. जोरावत राठौड़ 16. रैकवार राठौड़ 17. बागडि़या राठौड़ 18. छप्पनिया राठौड़ 19. आसल राठौड़ 20. खोपसा राठौड़ 21. सिरवी राठौड़ 22. पीथड़ राठौड़ 23. कोटेचा राठौड़ 24. बहड़ राठौड़ 25. ऊनड़ राठौड़ 26. फिटक राठौड़ 27. सुण्डा राठौड़ 28. महीपालोत राठौड़ 29. शिवराजोत राठौड़ 30. डांगी राठौड़ 31. मोहणोत राठौड़ 32. मापावत राठौड़ 33. लूका राठौड़ 34. राजक राठौड़ 35. विक्रमायत राठौड़ 36. भोवोत राठौड़ 37. बांदर राठौड़ 38. ऊडा राठौड़ 39. खोखर राठौड़ 40. सिंहमकलोत राठौड़ 41. बीठवासा राठौड़ 42. सलखावत राठौड़ 43. जैतमालोत राठौड़ 44. जुजाणिया राठौड़ 45. राड़धड़ा राठौड़ 46. महेचा राठौड़ (महेचा राठौड़ की चार उप शाखाएँ है।) 47. पोकरण राठौड़ 48. बाडमेरा राठौड़ 49. कोटडि़या राठौड़ 50. खाबडिया राठौड़ 51.

औरत के सोलाह श्रृंगार

आज आपको औरत के सोलाह श्रृंगार के बारे में बताते हे औरत के सोलाह श्रंगार और उनके महत्तव : : : ૧) बिन्दी – सुहागिन स्त्रियां कुमकुमया सिन्दुर से अपने ललाट पर लाल बिन्दी जरूर लगाती है और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है । ૨) -सिन्दुर – सिन्दुर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है। विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नि की मांग में सिंन्दुर भर कर जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है । ૩) काजल – काजल आँखों का श्रृंगार है। इससे आँखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन को लोगों की बुरी नजर से भी बचाता है । ૪) -मेंहन्दी – मेहन्दी के बिना दुल्हन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेहन्दी रचाती है। नववधू के हाथों में मेहन्दीजितनी गाढी रचती है, ऐसा माना जाता है कि उसका पति उतना ही ज्यादा प्यार करता है । ૫) -शादी का जोडा – शादी के समय दुल्हन को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल जोड़ा पहनाया जाता है । ૬) -गजरा-दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार कुछ फीकासा लगता है ।

देवड़ा चौहानो की खापें और उनके ठिकाने

देवड़ा चौहानों की खापें और उनके ठिकाने देवड़ा :- लक्ष्मण ( नाडोल) के तीसरे पुत्र अश्वराज (आसल ) के बाछाछल देवी स्वरूप राणी थी | इसी देवी स्वरूपा राणी के पुत्र 'देवीरा ' (देवड़ा ) नाम से विख्यात हुए | इनकी निम्न खापें है | १.बावनगरा देवड़ा :- महणसी देवड़ा के पुत्र पुतपमल के पुत्र बीजड़ हुए बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण के वंशजों का ठिकाना बावनगर था | इस कारन लक्ष्मण के वंशज बावनगरा देवड़ा कहलाये | मेवाड़ में मटोड़ ,देवरी ,लकड़बास आदी ठिकाने तथा मालवा में बरडीया ,बेपर आदी ठिकाने | २.मामावला देवड़ा :- प्रतापमल उर्फ़ देवराज के छोटे पुत्र बरसिंह को मामावली की जागीर मिली | इस कारन बरसिंह के वंशज मामावला देवड़ा कहलाये | ३.बड़गामा देवड़ा :- बीजड़ के छोटे पुत्र लूणा के पुत्र तिहुणाक थे | इनके पुत्र रामसिंह व् पोत्र देवासिंह को जागीर में बड़गाम देवड़ा कहलाये | बडगाम जोधपुर राज्य का ठिकाना था | सिरोही राज्य में इनका ठिकाना आकुला था | ४.बाग़ड़ीया देवड़ा :- बीजड़ के क्रमशः लूणा ,तिहुणक व् सबलसिंह हुए | सबलसिंह के वंशज बागड़ीया कहलाते है | बडगांव आकन आदी इनके ठिकाने थे | ५. बसी देवड़ा

चौहानो की खापे सांचोरा काँपलिया निर्वाण और बागड़िया (बगड़ प्रदेश) और इनके ठिकाने

चौहानों की खापे - सांचोरा , काँपलिया ,निर्वाण और बागड़ीया ( बागड़ प्रदेश ) और इनके ठिकाने सांचोरा :- सांचोर चौहान की उत्पत्ति विवाद से परे नहीं हे | नेनसी ने इनकी उतपत्ति नाडोल के अश्वराज ११६७-११७२ के पुत्र आल्हंण के पुत्र विजय सिंह से लिखते हे | नेणसी ने आगे लिखा हे की विजय सिंह ने ११४१ वि. में सांचोर पर अधिकार किया | अश्वराजा का समय ११६७-११७२ विक्रमी का पोत्र विजय सिंह ११४१ वि.में सांचोर केसे जीत सकता हे ? अब शिलालेखों का आधार भी देखिये | हरपालिया ( बाड़मेर ) में हरपाल नामक चौहान का १३४६ वि. का शिलालेख मिला हे जिसमे लिखा हे की सूर्यवंश के उपवंश चौहान वंश में राजा विजयहि हुए | उसके बाद बख्तराज ,यश्कर्ण ,सुभराज, भीम आदी के बाद आठवें राजा हरपालदेव और राजकुमार सामंतसिंह हुए | यदि हम प्रतिव्यक्ति का इतिहास सम्वत समय २० वर्ष माने तो विजय सिंह हरपाल से १२ पीढ़ी पहले था | अतः 240 वर्ष हुए | इस कारन विजय सिंह का समय १३४६-240=1106 हुआ इस द्रष्टि से विजय सिंह का वि. ११४१ में सांचोर विजय का समय ठीक पड़ता हे | इससे निश्चिन्त हो जाता हे की यह विजय सिंह आसराज ११६७-११७२ के पुत्र आल्हण का पुत्र नही