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*राव चन्द्रसेनसेन राठोड़*

मारवाड़ का राणा प्रताप "राव चन्द्रसेन राठौड़"


"राव चन्द्रसेन जी राठौड़"

* जन्म - 31 जुलाई, 1541 ई.

* राव गांगा के पौत्र व राव मालदेव के पुत्र

* उपनाम - मारवाड़ का राणा प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, भूला-बिसरा राजा

23 मार्च, 1560 ई.

* इस दिन राव चन्द्रसेन का विवाह मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की पुत्री बाईजीलाल सूरजदे से हुआ

इस तरह राव चन्द्रसेन महाराणा प्रताप के बहनोई हुए

1562 ई.

* राव मालदेव का देहान्त

* राव चन्द्रसेन राव मालदेव के तीसरे पुत्र थे, पर राव मालदेव की इच्छा से मारवाड़ की राजगद्दी राव चन्द्रसेन को मिली

* सोजत दुर्ग में राव चन्द्रसेन का राज्याभिषेक हुआ

* इसी वर्ष किसी मजबूरी के चलते राव चन्द्रसेन को जालौर अकबर के सिपहसालार खान जहां को सौंपना पड़ा

1563 ई.

"लोहावट का युद्ध"

राव चन्द्रसेन ने किसी कारण से अपने एक नौकर पर क्रोधित होकर उसे मृत्युदण्ड देना चाहा, तो ये नौकर राव चन्द्रसेन के रिश्तेदार जैतमाल के पास पहुंचा

जैतमाल ने राव चन्द्रसेन से नौकर को माफ करने के लिए कहा, पर राव चन्द्रसेन ने जैतमाल की बात न सुनी, तब जैतमाल ने राव चन्द्रसेन के बड़े भाई उदयसिंह को भड़काकर मारवाड़ में विद्रोह करवाया

राव चन्द्रसेन ने उदयसिंह को सबक सिखाने के लिए गाँव लोहावट में मुकाम किया

उदयसिंह इतिहास में "मोटा राजा" के नाम से प्रसिद्ध थे

इस युद्ध में उदयसिंह के हाथ की बरछी राव चन्द्रसेन को लगी

राव चन्द्रसेन की तरफ से लड़ने वाले रावल मेघराज के हाथ की बरछी लगने से उदयसिंह घोड़े से गिर गए और सख्त जख्मी हुए | उदयसिंह का घोड़ा इस वार से मारा गया |

उदयसिंह की तरफ से जोगा सागाउत माडणोत काम आए

राव चन्द्रसेन विजयी हुए

* राव चन्द्रसेन के बड़े भाई राव रामसिंह इन दिनों मेवाड़ से मारवाड़ आए और गूंदोच में रहने लगे

यहां से उन्होंने मारवाड़ के धणला वगैरह गाँव लूटकर उपद्रव करना शुरु किया

राव चन्द्रसेन ने नाडौल में राव रामसिंह को पराजित किया

1564 ई.

"मेहरानगढ़ का युद्ध"

* राव चन्द्रसेन के बड़े भाई रामसिंह ने बादशाह अकबर के पास पहुंचकर मारवाड़ का शासक बनने की इच्छा जाहिर की

अकबर ने राव रामसिंह को हुसैन कुली खां के नेतृत्व में बादशाही फौज के साथ मारवाड़ भेजा | हुसैन कुली खां बैरम खां का भांजा था |

* राव रामसिंह और हुसैन कुली खां ने पाली पर कब्जा किया

पाली के शासक सोनगरा मानसिंह अखैराजोत (महाराणा प्रताप के मामा) उदयपुर चले गए

* हुसैन कुली खां ने मेहरानगढ़ दुर्ग को घेर लिया

राव चन्द्रसेन ने सन्धि करते हुए सोजत का परगना राव रामसिंह को सौंपा

सन्धि के तहत हुसैन कुली खां ने राव चन्द्रसेन से फौज खर्च के लिए 4 लाख का धन मांगा, पर राव चन्द्रसेन के पास इतना धन न होने के कारण उन्होंने अपने ये 4 प्रतिष्ठित व्यक्ति हुसैन कुली खां को सौंप दिए :-

1) पंचोली भाणो
2) पंचोली गोविन्द
3) मुहतो उरजन
4) भंडारी नैतसी

* राव चन्द्रसेन ने सन्धि की किसी शर्त का उल्लंघन किया, जिसके चलते दोबारा अकबर ने राव रामसिंह और हुसैन कुली खां को भेजा

हुसैन कुली खां ने दुर्ग घेर लिया और आसपास के गाँवों को लूट लिया
मेहरानगढ़ 
2 माह के घेरे के बाद हुसैन कुली ने राणीसर तालाब की ओर हमला किया, जिसमें राव चन्द्रसेन की तरफ से कुछ योद्धा घायल हुए, पर इस हमले को असफल कर दिया गया

राव चन्द्रसेन ने अपने सामन्तों की सलाह पर दुर्ग छोड़ना उचित समझा | राव चन्द्रसेन ने अपने कुछ सैनिकों को दुर्ग में ही रखा और शेष सैनिकों को अपने साथ भाद्राजूण ले गए |

हुसैन कुली खां ने दुर्ग पर हमला किया, जिसमें दुर्ग में तैनात सभी राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए

इस युद्ध में 300 मुगल मारे गए

अकबर ने जोधपुर का प्रबन्ध बीकानेर के राव रायसिंह को सौंप दिया

(मेहरानगढ़ का युद्ध समाप्त)

* अपने मुश्किल दिनों में राव चन्द्रसेन ने एक लाल (कीमती हीरा) महाराणा उदयसिंह को 60000 में बेचा | ये लाल महाराणा उदयसिंह से महाराणा प्रताप, महाराणा प्रताप से महाराणा अमरसिंह व महाराणा अमरसिंह से जहांगीर के पास आया |

1568 ई.

* इस वर्ष अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग घेरा, जिससे दुर्ग में साका हुआ

साके में मारवाड़ की तरफ से भी कुछ योद्धाओं ने भाग लिया और वीरगति को प्राप्त हुए, जिनमें जयमल राठौड़, ईसरदास राठौड़, प्रताप राठौड़ के नाम मशहूर हैं

* इसी वर्ष राव सूरजमल हाडा की पुत्री से विवाह करने के लिए राव चन्द्रसेन बूंदी पहुंचे

राव सूरजमल हाडा ने कन्यादान के बाद दहेज में 1 हाथी, 15 घोड़े व 1,05,000 का धन दिया

* राव चन्द्रसेन मारवाड़ पहुंचे, जहां राव रायसिंह से लड़ाई हुई

राव चन्द्रसेन पराजित होकर भाद्राजूण चले गए

इस लड़ाई में राव चन्द्रसेन को काफी नुकसान उठाना पड़ा

(Post by Tanveer Singh Sarangdevot)

15 नवम्बर, 1570 ई.

* अकबर ने नागौर दरबार लगाया

इस दरबार में उपस्थित सभी शासकों ने बादशाही मातहती कुबूल की, पर राव चन्द्रसेन ने अकबर की अधीनता अस्वीकार कर जंगलों में प्रवेश किया
अकबर
* अकबर ने कला खां को फौज समेत भाद्राजूण भेजा

राव चन्द्रसेन भाद्राजूण से सिवाना चले गए

कला खां भी फौज लेकर सिवाना की तरफ निकला

गाँव मेहली में राव चन्द्रसेन व कला खां के बीच लड़ाई हुई, जिसमें राव चन्द्रसेन पराजित हुए

राव चन्द्रसेन ने जुर्माने के रुप में अपने ये 2 प्रतिष्ठित वीर कला खां को सौंपे :-

1) पंचोली सारण जैता का पुत्र
2) भंडारी डांवर का पुत्र

कुछ वर्ष बाद कला खां की किसी कारण से मृत्यु हुई, तो ये दोनों उसकी कैद से निकलकर राव चन्द्रसेन के पास पहुंच गए

* इसी वर्ष मेवाड़ के कुंवर प्रताप ने चित्तौड़ नरसंहार के प्रतिशोध स्वरुप मुगलों के पड़ाव की खबर सुनकर मारवाड़ के गोड़वाड़ नामक इलाके पर हमला कर दिया

गोड़वाड़ में मौजूद कईं मुगल कत्ल हुए और कुंवर प्रताप ने गोड़वाड़ का इलाका तहस-नहस करते हुए मेवाड़ में मिला लिया

मार्च, 1572 ई.

* कुम्भलगढ़ दुर्ग में महाराणा प्रताप का विधिवत राज्याभिषेक हुआ, जिसमें राव चन्द्रसेन भी पधारे

* इसी वर्ष राव चन्द्रसेन ने खीवा के पुत्र रतनसिंह को बुलावा भिजवाया, पर वह नहीं आया

दरअसल रतनसिंह ने आसरलाई गाँव में मुगलों से हाथ मिला लिया था

ये खबर सुनकर राव चन्द्रसेन ने आसरलाई गाँव को लूट लिया

इस लड़ाई में राव चन्द्रसेन की तरफ से नीवाज (जैतारण) ठिकाने के कल्याणदास ऊदावत वीरगति को प्राप्त हुए

1573 ई.

* भिणाय नगर में मादलिया नाम का एक भील था, जो वहां की प्रजा पर अत्याचार करता था

राव चन्द्रसेन ने मादलिया भील को मारकर भिणाय पर अधिकार किया


मार्च, 1574 ई.

* मुगल बादशाह अकबर अजमेर ख्वाजा की दरगाह पर पहुंचा

अबुल फजल लिखता है "जब शहंशाह अजमेर में थे, तब उन्हें खबर मिली कि राव मालदेव के बेटे चन्द्रसेन ने अपनी बेवकूफी के सबब से शराफत की जगह बगावत को चुन लिया | उसने सिवाना के किले को मजबूत किया, जो कि अजमेर सूबे का सबसे मजबूत किला था | चन्द्रसेन ने इस किले को अपने मुश्किल हालातों में रहने का जरिया बना रखा था | शहंशाह ने उस घमण्डी (राव चन्द्रसेन) को सबक सिखाने के मकसद से एक फौज भेजी | शहंशाह ने फौज को विदा करते वक्त सिपहसालारों से कहा कि

"हमारी चौखट एेसे लोगों के लिए एक शानदार जगह है, जहां आने पर उन्हें माफी मिलेगी | बगावत के रेगिस्तान में खड़े उस बागी पर भी हमारी चमकती हुई शान की रोशनी पड़नी चाहिए | उसे हमारा मातहत बनाओ, ताकि उसे उसके किए पर शर्मिन्दगी का एहसास हो"

* इस फौज के साथ मारवाड़ जाने वाले सिपहसालार :-

> शाह कुली खां महरम
> बीकानेर नरेश राव राय सिंह
> शिमाल खां
> केशवदास (मेड़ता के जयमल राठौड़ के पुत्र)
> जगत राय (धर्मचन्द के पुत्र)

* राव चन्द्रसेन सोजत दुर्ग अपने भतीजे कल्ला राठौड़ को सौंपकर चले गए

कल्ला राठौड़ राव मालदेव के पौत्र थे

साथ ही साथ कल्ला राठौड़ मेवाड़ के महाराणा प्रताप के भांजे भी थे
(ये कल्ला राठौड़ चित्तौड़ साके वाले नहीं हैं)

* जब बादशाही फौज सोजत पहुंची, तो कल्ला राठौड़ वहां से सिरियारी के दुर्ग में चले गए

मुगलों ने सिरियारी दुर्ग जला दिया

कल्ला राठौड़ कोढ़ने की पहाड़ियों में चले गए

कल्ला राठौड़ ने अपने भाईयों केशवदास, मोहनदास, पृथीराज राठौड़ समेत मुगल फौज के सामने आकर अधीनता स्वीकार की

* मुगल फौज सिवाना दुर्ग पहुंची, जहां राव चन्द्रसेन ने रावल सुखराज/मेघराज को तैनात कर रखा था

राजा रायसिंह और गोपालदास ने मुगल फौज का नेतृत्व करते हुए रावल सुखराज की फौज पर हमला कर दिया

राव चन्द्रसेन ने फौरन सूजा व देवीदास को रावल सुखराज की मदद खातिर भेजा

* इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त होने वाले योद्धा :-

> सूजा
> देवीदास
> मान (रावल सुखराज के भाई)

* मुगल फौज ने आसपास के कईं गाँवों में लूटमार की

* रावल सुखराज पराजित होकर लौट गए और अपने एक बेटे को मुगल दरबार में भेजकर अधीनता स्वीकार की

1574 ई.

* अकबर ने नीचे लिखे सिपहसालारों समेत एक फौज राव चन्द्रसेन के पीछे भेजी :-

> तुर्क खुर्रम
> अजमत खां
> शिवदास
> सुबदीनकुल खां
> सैयद बेग
> तैयबर खां

जब ये फौज राव चन्द्रसेन के पीछे गई, तो राव चन्द्रसेन ने फौज के सामने न आना ही मुनासिब समझा, पर एक जगह छुटपुट लड़ाई हुई, जिसमें राव चन्द्रसेन पराजित हुए

"सिवाना का युद्ध"

* अकबर ने शाह कुली महरम व बीकानेर नरेश राव रायसिंह को मुगल फौज के साथ सिवाना दुर्ग पर भेजा

राव चन्द्रसेन सिवाना दुर्ग पत्ता राठौड़ को सौंपकर चले गए

* अबुल फजल लिखता है "सिवाना पर चढाई का हुक्म पहले शाह कुली खां महरम और बीकानेर के राजा रायसिंह को दिया गया था, पर ये दोनों फौज और घोड़ों का ठीक से ध्यान नहीं रख पाए | घोड़े चारे के बिना बेहद कमजोर हो गए | शहंशाह ने इन दोनों की जगह शाहबाज खां को भेजा"

* शाहबाज खां के साथ जाने वाले सिपहसालार :-

> सैयद अहमद
> सैयद काशिम
> सैयद हाशिम
> जलाल खां
> शिमाल खां

* शाहबाज खां सबसे पहले सिवाना दुर्ग से 7 कोस दूर स्थित दुनाड़ा के किले की तरफ गया

शाहबाज खां ने किला घेरकर सुरंग बनवाई और उसमें बारुद भरवाकर विस्फोट किया, जिससे किले की बुर्ज उड़ गई और कईं राठौड़ वीरों के बलिदान के बाद किले पर मुगलों का अधिकार हुआ

* अबुल फजल लिखता है "बारहा के सैयदों की एक फौज कल्ला राठौड़ पर भेजी गई, जो कि देवगाँव के किले में तैनात था | देवगाँव के किले से बगावत की धूल साफ कर दी गई"

* आखिरकार शाहबाज खां ने सिवाना दुर्ग पर हमला किया, जिसमें मुहता पत्ता समेत कई वीरों ने बलिदान दिए

मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप ने भी अपने कुछ सैनिकों को राठौड़ों की मदद खातिर सिवाना की तरफ भेजा, पर संख्या में ज्यादा होने के कारण फतह मुगलों के पक्ष में रही

पर किलेदार पत्ता राठौड़ ने शाहबाज खां के सामने आकर किला शाहबाज खां को सौंप दिया

शाहबाज खां ने किला बारहा के सैयदों को सौंप दिया

किलेदार पत्ता राठौड़ को अकबर के सामने पेश किया गया, जहां उसने मुगल अधीनता स्वीकार की

(Post by Tanveer Singh Sarangdevot)

1575 ई.

* अकबर ने राव चन्द्रसेन व महाराणा प्रताप की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए सैयद हाशिम व जलाल खां कोरची को भेजा

राव चन्द्रसेन के पास देवीदास नाम का एक राजपूत आया और उसने दावा किया कि मैं वही देवीदास हूँ, जिसे मेड़ता के युद्ध में सब लोगों ने मरा हुआ समझ लिया था

देवीदास ने राव चन्द्रसेन के साथ मिलकर जलाल खां कोरची का कत्ल कर दिया

* इसी वर्ष जैसलमेर के रावल हरराज ने भाटी खेतसी को 7000 की फौज समेत पोकरण पर हमला करने भेजा

पोकरण इस समय राव चन्द्रसेन के अधिकार क्षेत्र में आता था | पोकरण में राव चन्द्रसेन ने पंचोली अणदराम को तैनात कर रखा था |

4 माह तक कोई नतीजा नहीं निकला, तब अणदराम ने राव चन्द्रसेन को खत लिखा | राव चन्द्रसेन पोकरण पहुंचे और रावल हरराज से सुलह कर युद्ध को टाल दिया |

* बादशाह अकबर ने एक फौज पीपलोद की पहाड़ियों में भेजी, जहां राव चन्द्रसेन मौजूद थे

इस लड़ाई में राव चन्द्रसेन पराजित हुए और उनकी तरफ से लड़ते हुए रणधीर राठौड़ के पुत्र वीरगति को प्राप्त हुए

मुगल फौज गुड़ा नामक गाँव को लूटते हुए चली गई

* राव चन्द्रसेन सिरोही चले गए, जहां वे डेढ़ वर्ष तक रहे

राव चन्द्रसेन अपनी रानियों वगैरह को सिरोही में ही रखकर स्वयं डूंगरपुर रावल आसकरण के पास चले गए

ये खबर सुनकर बीकानेर के राव रायसिंह ने सिरोही पर हमला कर दिया, पर राव चन्द्रसेन की रानियों को पहले ही सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया, जिससे राव रायसिंह पीछे लौट गए

21 जून, 1576 ई.

* इस दिन हल्दीघाटी का एेतिहासिक युद्ध हुआ, जिसमें महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ते हुए मारवाड़ के रामसिंह राठौड़ (जयमल राठौड़ के पुत्र) वीरगति को प्राप्त हुए

जून-अक्टूबर, 1576 ई.

* राव चन्द्रसेन के पास महाराणा प्रताप का खत आया कि एक साथ हम अपने-अपने इलाकों में अकबर के खिलाफ विद्रोह करना चाहते हैं, इसलिए आप भी हमारा साथ दें

राव चन्द्रसेन ने इस दौरान मुगल विरोधी कार्यवाहियाँ कीं

1578 ई.

* डूंगरपुर रावल आसकरण ने मुगल अधीनता स्वीकार कर ली, जिस वजह से नाराज होकर उनके पुत्र साहसमल ने डूंगरपुर की राजगद्दी हासिल करने के मकसद से मेवाड़ के महाराणा प्रताप से सहायता मांगी

महाराणा प्रताप ने फौज समेत डूंगरपुर की तरफ कूच किया

महाराणा प्रताप के आने की खबर सुनकर रावल आसकरण अपनी रानियों समेत किला छोड़कर पहाड़ियों में चले गए

राव चन्द्रसेन इस वक्त डूंगरपुर के निकट ही पहाड़ियों में थे

(राव चन्द्रसेन रावल आसकरण की पत्नी पार्वती के भाई थे)

इस वक्त डूंगरपुर के किले में रावल आसकरण के कुछ पुत्र और राव चन्द्रसेन का परिवार था

महाराणा प्रताप डूंगरपुर दुर्ग पहुंचे, तो किले वालों ने डरकर राव चन्द्रसेन को बुलावा भिजवाया

राव चन्द्रसेन ने पंचोली सुरताण को भेजकर डूंगरपुर से अपने परिवार को बुला लिया

इसी समय रावल आसकरण ने राव चन्द्रसेन को खत लिखा कि "हम महाराणा प्रताप से विरोध नहीं कर पाएंगे, इसलिए आप डूंगरपुर पधारें"

तब राव चन्द्रसेन डूंगरपुर पहुंचे

राव चन्द्रसेन को वहां देखकर महाराणा प्रताप ने युद्ध न करने का फैसला किया, क्योंकि राव चन्द्रसेन महाराणा प्रताप के मित्र व बहनोई थे

महाराणा प्रताप के चावण्ड की तरफ जाने की खबर सुनकर रावल आसकरण अपनी रानियों समेत डूंगरपुर पहुंचे

* इसी वर्ष मेवाड़ के कोटड़ा गाँव में राव चन्द्रसेन की महाराणा प्रताप से मुलाकात हुई

महाराणा प्रताप ने राव चन्द्रसेन से कहा कि पुरानी गलतफहमियों को भुलाकर फिर से एक होकर मुगलों से लड़ा जाए, तो बेहतर रहेगा, इसलिए आप अपने इलाके में मुगल विरोधी कार्य करना शुरु कर देवें

1579 ई.

* राव चन्द्रसेन ने महाराणा प्रताप की बात मानकर सोजत के शाही थाने पर हमला कर विजय प्राप्त की

10 मार्च, 1580 ई.

* राव चन्द्रसेन द्वारा अजमेर के पर्वतीय भाग में लूटमार करने पर अकबर ने पाइन्दा मुहम्मद खां मुगल, सैयद हाशिम, सैयद कासिम वगैरह सिपहसालारों को बादशाही फौज के साथ भेजा

राव चन्द्रसेन ने सरवाड़ गाँव के मुगल थाने पर हमला कर दिया

इस लड़ाई में राव चन्द्रसेन की तरफ से वीरगति को प्राप्त होने वाले योद्धा :-

> राठौड़ सांगो
> राठौड़ केसो
> ईंदो वैणो
> ऊहड़ जैमल
> किशनदास राठौड़
> भाटी सुरताण
> भाटी महेश
> जसूत राठौड़
> रामसिंह राठौड़
> करमसिंह राठौड़
> महेश राठौड़
> डूंगरसिंह राठौड़
> विजयराज देवड़ा
> मुहणौत अचला

11 जनवरी, 1581 ई.

'राव चन्द्रसेन का देहान्त'

राव चन्द्रसेन अपने परिवार समेत सारण की पहाड़ियों में रहने लगे

यहां बहुत से राठौड़ उनके सामने हाजिर हुए, पर वेरसल राठौड़ हाजिर नहीं हुए

इस बात से क्रोधित होकर राव चन्द्रसेन ने इन पर चढाई की

बीच रास्ते में राठौड़ आसकरण ने राव चन्द्रसेन से कहा कि हुजूर आप क्यों वहां जाते हैं, मैं उसे मना लूंगा और वह नहीं माना तो उसे मार दूंगा

राव चन्द्रसेन ने राठौड़ आसकरण की बात मान ली

राठौड़ आसकरण राठौड़ वेरसल के पास पहुंचे, तो राठौड़ वेरसल मान गए

राठौड़ वेरसल ने राव चन्द्रसेन को भोजन करने हेतु अपने यहां बुलाया

राव चन्द्रसेन वहां पहुंचे और भोजन करने के बाद जब सारण के समीप सचियास की पहाड़ियों में आए, तो विष का असर हुआ और ये महान योद्धा 39 वर्ष की अल्पायु में विश्वासघात की भेंट चढ़ गया
राव चन्द्रसेन जी का स्मारक
राव चन्द्रसेन के दाहस्थान पर मकराने के पत्थर पर खुदा हुआ एक शिलालेख है, जिसमें घोड़े पर सवार राव चन्द्रसेन व उनकी 5 रानियां, जो उनके साथ सती हुईं, को दिखाया गया है

राव चन्द्रसेन के वंशज अजमेर प्रान्त के भिणाय के राजा हैं

* राव चन्द्रसेन की कुल 11 रानियाँ थीं :-

1) रानी कल्याण देवी :- चौहान बीका के पुत्र हम्मीर की पुत्री | इन रानी के एक पुत्र हुआ, जिनका नाम उग्रसेन था |

2) रानी कछवाही सौभाग्यदेवी :- फागी के स्वामी नरुका सबलसिंह की पुत्री | इन रानी के एक पुत्र हुआ, जिनका नाम रायसिंह था |

3) रानी भटियाणी सौभाग्यदेवी :- इनका पीहर का नाम कनकावती था | ये जैसलमेर के रावल हरराज की पुत्री थीं | ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं |

4) रानी सिसोदिनी जी सूरजदेवी :- ये मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की पुत्री व महाराणा प्रताप की बहन थीं | इनके पीहर का नाम चंदा था | ये रानी तीर्थयात्रा के लिए मथुरा पधारीं, जहां इनका देहान्त हुआ | इन रानी का एक पुत्र हुआ, जिनका नाम आसकरण था |

5) रानी कछवाही कुमकुम देवी :- ये जोगसिंह कछवाहा की पुत्री थीं

6) रानी औंकार देवी :- ये सिरोही के देवड़ा मानसिंह की पुत्री थीं | इनका देहान्त मथुरा में हुआ |

7) रानी भटियाणी प्रेमलदेवी :- ये बीकमपुर के राव डूंगरसिंह की पुत्री थीं |

8) रानी भटियाणी सहोदरा :- ये बीकमपुर के रामसिंह की पुत्री थीं | इनका देहान्त गोपालवासणी में हुआ |

9) रानी भटियाणी जगीसा :- ये ठिकाना देरावर के स्वामी मेहा तेजसिंहोत की पुत्री थीं | ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं |

10) रानी सोढी मेघां :- ये ऊमरकोट के हेमराज सोढा की पुत्री थीं | ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं |

11) रानी चौहान पूंगदेवी :- ये देवलिया के इन्द्रसिंह चौहान की पुत्री थीं | ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं |

* राव चन्द्रसेन की 2 पुत्रियों का विवाह आमेर के मानसिंह कछवाहा से हुआ

* राव चन्द्रसेन के 3 पुत्र हुए -

1) राव रायसिंह

2) उग्रसेन जी

3) आसकरण जी - आसकरण जी राव चन्द्रसेन व रानी सूरजदे के पुत्र थे | इस तरह आसकरण जी महाराणा प्रताप के भांजे हुए |

(राव चन्द्रसेन जी का इतिहास समाप्त)

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~माता राणी भटियानी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास ।~ .....~जय जसोल माजीसा~...... माता राणी भटियानी ( "भूआजी स्वरूपों माजीसा" शुरूआती नाम) उर्फ भूआजी स्वरूपों का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ।भूआजी स्वरूपों उर्फ राणी भटियानी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था।राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था।राव कल्याणसिंह का पहला विवाह राणी देवड़ी के साथ हुआ था। शुरुआत मे राव कल्याणसिंह की पहली राणी राणी देवड़ी के संतान नही होने पर राव कल्याण सिंह ने भूआजी स्वरूपों( जिन्हे स्वरूप बाईसा के नाम से भी जाना जाता था) के साथ दूसरा विवाह किया।विवाह के बाद भूआजी स्वरूपों स्वरूप बाईसा से राणी स्वरुपं के नाम से जाना जाने लगी। विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया। राणी स्वरुपं के संतान प्राप्ति होने से राणी देवड़ी रूठ गयी।उन्हे इससे अपने मान सम्मान मे कमी आने का डर सताने लगा था।प्रथम राणी देवड

देवड़ा चौहानो की खापें और उनके ठिकाने

देवड़ा चौहानों की खापें और उनके ठिकाने देवड़ा :- लक्ष्मण ( नाडोल) के तीसरे पुत्र अश्वराज (आसल ) के बाछाछल देवी स्वरूप राणी थी | इसी देवी स्वरूपा राणी के पुत्र 'देवीरा ' (देवड़ा ) नाम से विख्यात हुए | इनकी निम्न खापें है | १.बावनगरा देवड़ा :- महणसी देवड़ा के पुत्र पुतपमल के पुत्र बीजड़ हुए बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण के वंशजों का ठिकाना बावनगर था | इस कारन लक्ष्मण के वंशज बावनगरा देवड़ा कहलाये | मेवाड़ में मटोड़ ,देवरी ,लकड़बास आदी ठिकाने तथा मालवा में बरडीया ,बेपर आदी ठिकाने | २.मामावला देवड़ा :- प्रतापमल उर्फ़ देवराज के छोटे पुत्र बरसिंह को मामावली की जागीर मिली | इस कारन बरसिंह के वंशज मामावला देवड़ा कहलाये | ३.बड़गामा देवड़ा :- बीजड़ के छोटे पुत्र लूणा के पुत्र तिहुणाक थे | इनके पुत्र रामसिंह व् पोत्र देवासिंह को जागीर में बड़गाम देवड़ा कहलाये | बडगाम जोधपुर राज्य का ठिकाना था | सिरोही राज्य में इनका ठिकाना आकुला था | ४.बाग़ड़ीया देवड़ा :- बीजड़ के क्रमशः लूणा ,तिहुणक व् सबलसिंह हुए | सबलसिंह के वंशज बागड़ीया कहलाते है | बडगांव आकन आदी इनके ठिकाने थे | ५. बसी देवड़ा