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वंशावली खींया और किश्नावत केलण भाटी गाँव, विठणोक ,जांगलू ,खिदासर ,खाराबेरा,राणेर

वंशावली खींया और किश्नावत केलण भाटी गाँव वीठणोक , जांगलू, खीदासर,खाराबेरा,राणेर :: वंशावली खींया और किशनावत केलण भाटी :: महारावल केहर राव केलण राव चाचगदेव राव बरसल ५ राव सेखा     । ---------------------------------------------------------------------------------------- खींया                                                                                                                बाघा धनराज                                                                                                            किशना । --------------------------------------------------------------------।                         । -------------------- खेतसी                                                                         ठाकुरसी                      तेजमाल                    । सारंग                                                                           जोगइत                      भांण                        रायसिंह । -----------------------------------।                                 भोपत    

क्या परसुराम ने किया था धरती को क्षत्रीयविहीन

क्या परशुराम ने किया था धरती को क्षत्रियविहीन यदि परशुरामजी के अवतार धारण करने का समय निर्धारित किया जाये तो उन्होनें  भगवान राम से बहुत पहले अवतार धारण किया था। और उस समय कार्तवीर्य के अत्याचारों  से प्रजा तंग आ चुकी थी। कार्तवीर्य उस समय अंग आदि 21 बस्तियों का स्वामी था परशुराम ने अवतार धारण करके कार्तवीर्य को मार दिया और इस संघ को जीतकर कश्यप ऋषि को दान में दे दिया। यह अवतारी कार्य पूरा करने के तुरंत बाद ही वे देवलोक सिधार गये। परशुराम के देवलोक चले जाने के बाद उसके अनुयायियों ने एक परम्परा पीठ स्थापित कर ली जिसके अध्यक्ष को परशुराम जी कहा जाने लगा। यह पीठ रामायण काल से महाभारत काल तक चलती रही। इसलिय़े मूल परशूराम नही बल्कि परशूराम पीठ के अध्यक्ष सीतास्वंयंवर के अवसर पर आये थे। नहीं तो विष्णु के दो अवतार इक्ट्ठे कैसे होते क्योंक परशूरामजी को यह पता नही था कि राम का अवतार हो गया है या नही। किंतु जब राम की पर भृगु चिन्ह देखा तो उन्हे संदेह हुआ और अपने संदेह के निवारण के लिए अपना धनुष- बाण जिसका चिल्ला केवल विष्णु ही चढ़ा सकते थे, राम को दिया। राम रमापति कर धनु लेहू।             खें

भूमि पर विख्यात राठौड़ो को कौन नही जनता

भूमि पर विख्यात राठौड़ो को कौन नही जानता। एलौरा की गुफाओ के मन्दिर में राष्ट्रकूट नरेश दन्ति दुर्ग के लेख में लिखा हैः नरेत्ति खल कः क्षितों प्रकट राषट्रकूटा न्वयम् ।। अर्थात भूमि पर विख्यात राठौड़ो को कौन नही जानता। राठौड़ वंश रघुवंशी भगवान राम के द्वितीय पुत्र कुश का वंश है। इस वंश का प्राचीन नाम राष्ट्रकुट है। राष्ट्रकुट से विकृत होकर राठौड़, राउटड़, राठौढ़ या राठौर प्रसिद्ध हुआ। भगवान राम के पुत्र कुश के किसी वंशज ने दक्षिण में जाकर राज्य स्थापित किया था। वहां उनकी राजधानी मान्यखेट थी। वहां से इनकी एक शाखा मध्यभारत में आयी जिससे इनके राज्य को महाराष्ट्र कहा जाने लगा। यही से यह काठियावाड़, बदायुं और कन्नोज में फैल गए। बदायुं से राव सीहा पाली(राजस्थान) आये और वहां के पल्लीवाल ब्राह्मणों की सहायता से सन् 1243 में मारवाड़ राज्य की स्थापना की। राठौडो की वीरता विश्वप्रसिद्ध है।       बलहट बंका देवड़ा, करतब बंका गौड।       हाडा बंका गाढ़ में, रणबंका राठौड़।। राव सीहा की मृत्यु के बाद राव आस्थान ने गोहिलो से खेडगढ राज्य छीनकर अपना राज्य बढाया। आस्थान की मृत्यु के बाद उसके पुत्र धुहड