सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

देवड़ा चौहानो की खापें और उनके ठिकाने


देवड़ा चौहानों की खापें और उनके ठिकाने

देवड़ा :- लक्ष्मण ( नाडोल) के तीसरे पुत्र अश्वराज (आसल ) के बाछाछल देवी स्वरूप राणी थी | इसी देवी स्वरूपा राणी के पुत्र 'देवीरा ' (देवड़ा ) नाम से विख्यात हुए | इनकी निम्न खापें है |

१.बावनगरा देवड़ा :- महणसी देवड़ा के पुत्र पुतपमल के पुत्र बीजड़ हुए बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण के वंशजों का ठिकाना बावनगर था | इस कारन लक्ष्मण के वंशज बावनगरा देवड़ा कहलाये | मेवाड़ में मटोड़ ,देवरी ,लकड़बास आदी ठिकाने तथा मालवा में बरडीया ,बेपर आदी ठिकाने |

२.मामावला देवड़ा :- प्रतापमल उर्फ़ देवराज के छोटे पुत्र बरसिंह को मामावली की जागीर मिली | इस कारन बरसिंह के वंशज मामावला देवड़ा कहलाये |

३.बड़गामा देवड़ा :- बीजड़ के छोटे पुत्र लूणा के पुत्र तिहुणाक थे | इनके पुत्र रामसिंह व् पोत्र देवासिंह को जागीर में बड़गाम देवड़ा कहलाये | बडगाम जोधपुर राज्य का ठिकाना था | सिरोही राज्य में इनका ठिकाना आकुला था |
४.बाग़ड़ीया देवड़ा :- बीजड़ के क्रमशः लूणा ,तिहुणक व् सबलसिंह हुए | सबलसिंह के वंशज बागड़ीया कहलाते है | बडगांव आकन आदी इनके ठिकाने थे |

५. बसी देवड़ा :- बीजड़ के पाचवे पुत्र लूणा के दो पुत्र माणक और मोकल मालवा चले गए | इनकी बसी (ग्वालियर ) जागीर थी | इस कारन इनके वंशज बसी देवड़ा कहलाये |

६.कीतावत देवड़ा :- बीजड़ के पुत्र आबू शासक लूभा हुए | लूभा के पुत्र दूदा के किसी वंशज कीता की संतान कीतावत देवड़ा कहलाई | सिरोही और जोधपुर राज्य में इनकी जागीर थी |

७.गोसलावत देवड़ा :- लूभा के तीसरे पुत्र चाहड़ के पुत्र गोसल के वंशज गोसलावत देवड़ा कहलाये | मामावली ( सिरोही ) में है | खणदरा इनका ठिकाना था |

८.डुंगरोत देवड़ा :- लूंभा के बाद क्रमशः तेजसिंह ,कान्हड़दे ,सामंतसिंह ,सलखा व् रिडमल हुए | रिडमल के दुसरे पुत्र गजसिंह के पुत्र डूंगर के वंशज डूंगरोत देवडों की निम्न खापें है -

१.रामवत - रामवतों के पालड़ी पांडाव ,बागसीण ,जावाल ,सिद्धथ ,जीरावत ,सारादरा ,ओडा आदी ठिकाने थे |
२.सबरावत - माडवास ,सबराट ,सबली ,पूंगनी ,बोखड़ा ,मंडिया ,जामोतरा,मुटेड़ी ,सिरोडेती ,आदी इनके ठिकाने थे | ईडर राज्य (गुजरात ) में भी इनकी जागीरे थी |
३.सूरावत  (सामंतसिहोत ) - कालिन्द्र, थाकेदरा ,भाडवाडीया ,सुआध ,बरलनूट ,नवाणा ,अणगोर ,डोडआ ,बेलगरी ,धानवा चन्दाणी ,वालदा,बाण ,संगालिया ,नीबोड़ा ,आदी इनके ठिकाने थे |
४.मेरावत:- ओदवाड़ा .राडबर ,बाडका ,भेव ,उथमन,पोसलिया ,रुंखाड़ा ,बणदरा ,मोसाल ,पतापूरा ,आदी मेरावतों के ठिकाने थे |
५.अमरावत :- जोगापूरा ,गोला ,रावडो, बूडेरी ,मोटालख्वामा ,जोइला ,घनापूरा व् पोईणा ( जोधपुर राज्य
)इनके ठिकाने थे |
६.भीमावत व् अर्जुनोत - भूतगाँव इनकी जागीरी थी |
७.कूम्पावत -मांडनोत :- सीटल ,मारवाड़ ,पोदहरा, तंवरी,लाय,सीबागाँव ,मांडानी आदी ठिकाने थे |
८.बजावत :- मणदर ,नोरु (जोधपुर ) सवापुरा ,मनोरा ,वेरापूरा मुरोली ,झाडोली,अणदोर ,बावली,भरुडी (जोधपुर ) बडालोटीवाड़ा आदी इनके ठिकाने थे |
9.हरराजोत :- देलदर व् छोटा लोटीवाला आदी इनके ठिकाने थे |
१०.गागवत :- जेला ,सवापूरा ,बड़ी पूनम आदी इनके ठिकाने थे |
11.बेदावत :- चुली ,गोडाणा ,छोटी पूनम (जोधपुर ) आदी इनके ठिकाने थे |
१२ मालणवा :- बीरवाड़ बिरोली ,साणवाडा ,डीगार ,नादीयां ,सीवेरा ,सरवली,पालड़ी ,सूरी आदी इनके ठिकाने थे
रिडमल के पुत्र सिरोही शिवसिंह (शिवभाण ) के वंशज शिवसिहोत देवड़ा कहलाये |इनकी निम्न खापे है |
१.लोटाणचा देवड़ा :-शिवभाण के पुत्र सिंहाजी के वंशज लोटाणचा देवड़ा कहलाये |

२.बालदा देवड़ा :- शिवभाण  के तीसरे पुत्र कावल ने वंशज बालदा देवड़ा कहलाये | धनारी ,सादलवा ,नाना (जोधपुर ) लोहाणाचो व् बालदा ,देवड़ो के ठिकाने थे |
३.लाखानोत देवड़ा :- शिवभाण के पुत्र लखमण के वंशज हे |

१० लखावत देवड़ा :- शिवभाण के पोत्र व् सहसमल के पुत्र लखा के वंशज लखावत देवड़ा कहलाये | नादिया ,जोगापुर, आजारी ,भंडार ,छोटीपाली ,राजा ,बाछोली ,बीसलपुर (मखिड़ा ) साकेड़ा ,सानपूरा ,भागली ,गलधनी ,बिरोलिया ,बलवना ,कोलीवाडा, लसानमड़ा,वाकली ,खिवान्दी ,धुरबाना ,मोरड़,तलाणी ,सलेकरिया ,बलुपूरा ,कोरटा ,पेरवाकला ,पेरवाखर्द आदी लखावतों के ठिकाने थे | जोधपुर रियासत में इनकी जागीरे थी इनकी निम्न खापें है
१ प्रथ्विराजोत :- नीमज ,पीथापुर ,सेलवाड़ा ,मानत ,आबलारी, नीम्बोड़ा,डगाराली ,पीसदरा ,लूणोंल आदी अनेक ठिकाने थे |
२.सामीदासोत :- दामानी ,मालगाव व् थल आदी इनके ठिकाने थे |
३.प्रतापसिहोत :- भटाणा ( बड़ा व् छोटा ) दोनों पादर ,मकावत ( बड़ी व् छोटी दोनों ) मारोज ,ढढमणा ,डाक ,दलाणी ,सगोल आदी इनके बड़े ठिकाने थे |
४.सामंतसिहोत :- हरणी ,रोहूवा ,बरमणा ,बगदा,इदराना ,जोनपुर ,बडबन,कोसवा ,रामपुरा ,सरूआश सगवाड़ा
सणवाड़ा,भावत ,खेदर आदी इनके ठिकाने थे |
11.बालोत देवड़ा :- समर सिंह के पुत्र महणसी के पुत्र बाला के वंशज बालोत देवड़ा कहलाये |
१२.हाथीयोत देवड़ा :- महणसी के पोत्र व् बाला के पुत्र हाथी की संतान हाथीयोत देवड़ा कहलाये |
13.चीबा देवड़ा :- महणसी के पुत्र चीबा के वंशज चीबा कहलाये | आबू के पास रहते थे | नैणसी ने लिखा है सिरोही रै देश डुंगरोत उतरता चीबा भला रजपूत छै इणा रो बड़ो धडो छै ...... एहा देवड़ा हीज है |




टिप्पणियाँ

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. बालोतो का इतिहास बताए हुकम

      हटाएं
  3. चिबा देवड़ा की ओर जानकारी दिलवाए हुकुम

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ठिकाणा खाखरवाडा v भारजा छीबा देवड़ा सिरोही जिला के पिंडवाडा तहसील में है

      हटाएं
    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  4. मध्यप्रदेश मे मन्दसौर जिले के देवडा राजपुत का इतिहास बताए꫰ होकम

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हुकुम आपके गांव का नाम बसी है क्या।

      हटाएं
    2. हुकम आप बसी गांव मध्य प्रदेश से है क्या?
      अगर आप वहा से है तो आप मुझसे संपर्क करें
      हमारे जो रावजी आते थे वो भी बसी से ही आते थे क्युकी हमारा गांव भी बसी ही था वहां से हम राजस्थान पाली जिला में आ गए

      हटाएं

    3. hanwantsinghdeora4@gmail.com
      ये मेरी ईमेल आईडी है आप इस आईडी पर संपर्क करें

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. हुक्म चौहान वंश कल्पद्रूम नामक ग्रंथ है । जो सिरोही महाराजा ने लिखवाया था । वो डाऊनलोड करो । सम्पूर्ण जानकारी मिल जायेगी।

      हटाएं
  6. लखावत देवड़ा का एक ठिकाणा देवतरा (देवतडा ) पाली जिले में है नाम जोड़े सा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पहले निम्न तरह से जागीरे मिलती थी -
      १) भाई बँटवाड से
      २) अपनी रियासत की और से कोई लड़ाई में वीरता के लिए या किसी और कारण से राजा प्रसन्न होकर देता था
      ३ ) अन्य पडोसी रियासत या राजा की और से कोई लड़ाई में वीरता या मदद के बदले
      ४) अपनी रियासत से निष्कासित होने पर पडोसी रियासत में राजा से शरण मांगकर की जरुरत के वक्त वो उनके लिए लड़ेंगे |

      देवतरा वाले कोनसे गांव से और किस सन में देवतरा आकर बसे थे , और सबसे पहले यंहा कौन आये थे और किस तरह से उनको यह गांव मिला था कृपया जानकारी देवे क्या यह गांव सिरोही रियासत में आता था या मारवाड़ की राठोड़ो की रियासत में ||

      हटाएं
    2. जय सारणेश्वर जी री हुकुम।
      हुकुम सिरोही राजगद्दी पर उदय भान जी महाराव हुए उनके पुत्र थे वेरी साल जी और उदयभान जी के छोटे भाई उदय सिंह जी के पुत्र थे छत्रसाल जी।
      वेरी साल जी के पुत्र थे सुरताण सिंह जी द्वितीय और छत्रसाल जी के पुत्र थे मान सिंह उर्फ उम्मेदसिंह ।
      छत्रसाल जी ने सुरताण सिंह की गद्दी छीन ली इस कारण वे मेवाङ चले गए , वहां से देवतरा की जागीर मिली और यह खाप वैरीसालोत लखावत देवङा के नाम से निकली ।
      फिर मारवाड़ और मेवाड़ का सीमांकन हुआ उसमें आवंल और बांवल की संधि में बाकी के गांव मेवाड़ में चले गए और देवतरा मुख्य गांव जोधपुर में चला गया, तो देवतरा समेत 12 गांवों का मेवाड़ का पट्टा खारिज हो गया ।दूसरी बार पट्टा जोधपुर से केवल देवतरा का ही मिला और आज भी देवतरा जागीर में वैरीसालोत लखावत देवड़ा जागीरदार हैं।
      Location of village-
      पाली जिले की सुमेरपुर तहसील, NH-62 साण्डेराव से 6 km पूर्व में तथा रेलमार्ग फालना से 4 km पश्चिम में एवं निम्बोरानाथ महादेव मंदिर से 500 mitre की दूरी पर स्थित है।
      और जानकारी के लिए सम्पर्क करें- 9784725686

      हटाएं
    3. उपरोक्त छत्रसाल जी के कुंवर मानसिंह उर्फ उम्मेदसिंह के दो पुत्र हुए , बड़े कुंवर वगतसिह सिरोही महाराव हुए व छोटे कुंवर जोरावर सिंह जी को भंडार कि जागीर मिली । हमारे देवतरा ठिकाणे के सबसे करीबी भाई सिरों वह भंडार है । हमारे यहां पागल सिरोही से आती है ।

      हटाएं
  7. Badgav thikana ke sabhi chot bhayo ke gav ka name nahi likha hukam

    जवाब देंहटाएं
  8. उदयपुर के देवड़ा का इतिहास और सिरोही से उदयपुर के आगमन का इतिहास बतावे अगर किसी के पास हो तो
    किशन सिंह देवड़ा
    8875609703, 7976803471

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चौहान वंश कल्पदरूम नामक पुस्तक डाऊनलोड करो सा जानकारी मिल जायेगी ।

      हटाएं
    2. चौहान वंश कल्पदरूम नामक पुस्तक डाऊनलोड करो सा जानकारी मिल जायेगी ।

      हटाएं
  9. आपने देवडा के सबसे फेमस और बड़े ठिकाने मंडार(सिरोही) का सही व्याख्या नहीं की इसमें।।

    जवाब देंहटाएं
  10. Udaipur me devra Kaha se aye or kon ki si khap ke he or enka history kya he plz Kisi ko BHI jankari ho to batave
    Dr. R.S. Devra

    जवाब देंहटाएं
  11. सिरोही से लखावत देवड़ा झाडोली में आकर बसे उनका इतिहास ऐड करें

    जवाब देंहटाएं
  12. के पास हो तो पूनावत देवड़ा का इतिहास बताइए

    जवाब देंहटाएं
  13. पूनावत देवड़ा का इतिहास बताइए

    जवाब देंहटाएं
  14. sivera me deora thikana 1920 ke aspas khali kar verajetpura chele gaye the

    जवाब देंहटाएं
  15. पाली जिले में सुमेरपुर उपखंड में देवतरा लखावत देवडा का ठिकाना है , नाम जोड़ने की कृपा करें हुकम ।

    जवाब देंहटाएं
  16. Jaisalmer me bhi devra ki jagir thi devra ganw aaj bhi h bajawat devra or lakhwat devra bhi h unka itihas me kahi ulekh nhi mila

    जवाब देंहटाएं
  17. Village guda deoran medtiyan desuri pali main bhi ek lkhawat Deora ka th,h

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भेदावत (डुगरावत)देवडा की शाखा के नाम मे पिण्डवाडा भी है हुकम इसे जोडने की कृपा करावे ।

      हटाएं
  18. Hkm me ujjain jile ke badanger tehsil ke bardiya se hu mujhe mere raw sa ki jankari chahiye or hamare bheru maharaj sa keha he

    जवाब देंहटाएं
  19. जोधपुर जिले के गोपासरिया गांव लखावत देवड़ा का ठिकाना ठकूर लालसिंह उसको जोड़ने की कृपा करें

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ शेखावत शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ़,नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है । शेखावत वंश परिचय वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है | भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतास गढ़ और रोहताश से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये |रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वाहन के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया |कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली | महात

माता राणी भटियाणी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास

~माता राणी भटियानी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास ।~ .....~जय जसोल माजीसा~...... माता राणी भटियानी ( "भूआजी स्वरूपों माजीसा" शुरूआती नाम) उर्फ भूआजी स्वरूपों का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ।भूआजी स्वरूपों उर्फ राणी भटियानी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था।राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था।राव कल्याणसिंह का पहला विवाह राणी देवड़ी के साथ हुआ था। शुरुआत मे राव कल्याणसिंह की पहली राणी राणी देवड़ी के संतान नही होने पर राव कल्याण सिंह ने भूआजी स्वरूपों( जिन्हे स्वरूप बाईसा के नाम से भी जाना जाता था) के साथ दूसरा विवाह किया।विवाह के बाद भूआजी स्वरूपों स्वरूप बाईसा से राणी स्वरुपं के नाम से जाना जाने लगी। विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया। राणी स्वरुपं के संतान प्राप्ति होने से राणी देवड़ी रूठ गयी।उन्हे इससे अपने मान सम्मान मे कमी आने का डर सताने लगा था।प्रथम राणी देवड