सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भूमि पर विख्यात राठौड़ो को कौन नही जनता

भूमि पर विख्यात राठौड़ो को कौन नही जानता।

एलौरा की गुफाओ के मन्दिर में राष्ट्रकूट नरेश दन्ति दुर्ग के लेख में लिखा हैः

नरेत्ति खल कः क्षितों प्रकट राषट्रकूटा न्वयम् ।।

अर्थात भूमि पर विख्यात राठौड़ो को कौन नही जानता।

राठौड़ वंश रघुवंशी भगवान राम के द्वितीय पुत्र कुश का वंश है। इस वंश का प्राचीन नाम राष्ट्रकुट है। राष्ट्रकुट से विकृत होकर राठौड़, राउटड़, राठौढ़ या राठौर प्रसिद्ध हुआ। भगवान राम के पुत्र कुश के किसी वंशज ने दक्षिण में जाकर राज्य स्थापित किया था। वहां उनकी राजधानी मान्यखेट थी। वहां से इनकी एक शाखा मध्यभारत में आयी जिससे इनके राज्य को महाराष्ट्र कहा जाने लगा। यही से यह काठियावाड़, बदायुं और कन्नोज में फैल गए। बदायुं से राव सीहा पाली(राजस्थान) आये और वहां के पल्लीवाल ब्राह्मणों की सहायता से सन् 1243 में मारवाड़ राज्य की स्थापना की। राठौडो की वीरता विश्वप्रसिद्ध है।

      बलहट बंका देवड़ा, करतब बंका गौड।

      हाडा बंका गाढ़ में, रणबंका राठौड़।।

राव सीहा की मृत्यु के बाद राव आस्थान ने गोहिलो से खेडगढ राज्य छीनकर अपना राज्य बढाया। आस्थान की मृत्यु के बाद उसके पुत्र धुहड़ ने दक्षिण से राठौडों की कुल देवी चक्रवेश्वरी की मूर्ति लाकर नगाणा(बाडमेर) में स्थापित की। तबसे यह देवी राठौडों की कुल देवी मानी जाती है। धूहड़ के भाई पाबू जी लोकदेवता माने जाते है। धूहड़ के बाद क्रमशः रामपाल-कानपाल, जालणसी छाड़ा, तीड़ा, सलखा, खेड़गढ़ की गद्दी पर बैठै। सलखा के पुत्र राव मल्लीनाथ के नास से अभी तक यह प्रदेश मलानी कहलाता है। राव सलखा के वंशज क्रमशः वीरम्, चूण्डा, कान्हा, सत्ता, रणमल  और जोधा जी हुए। राव जोधा जी ने जोधपुर बसाकर वहा अपनी राजधानी बसाई। तब से ही यह राज्य जोधपुर राज्य कहलाता है। जोधपुर राज्य की वंशावली इस प्रकार हैः-

राव जोधा
सातल
सूजा
गांगा
मालदेव
चन्द्रसेन
रामसिंह
उदयसिंह
किशन सिंह
सूरसिंह
गजसिंह
जसवंत सिंह
अजित सिंह
अभय सिंह
रामसिंह
बख्त सिंह
विजय सिंह
भीम सिंह
मान सिंह
तख्त सिंह
जसवंत सिंह
सरदार सिंह
सुमेर सिंह
उम्मेद सिंह
हनुमंत सिंह
गजसिंह
राव जोधा के दूसरे पुत्र बीका ने सन् 1485 में बीकानेर राज्य स्थापित किया। जोधाजी के तीसरे पुत्र दूदा को मेड़ता की जागीर दी गई। दूदा के दूसरे पुत्र रत्न सिंह जिसे कुड़की की जागीर मिली थी, की पूत्री भक्तमति मीरा बाई थी। जोधपुर के राजा उदय सिंह के पुत्र किशन सिंह ने सन् 1609 में किशनगढ़ राज्य की स्थापना की। इस तरह राजस्थान में राठौडो की तीन रियासते है- जोधपुर, बीकानेर तथा किशनगढ़।

बीकानेर राज्य के राठौड़ शासकः-

राव बीका( राव जोधा के पुत्र)
राजवनराजी,
लूणकरण
जैतसी
कल्याण सिंह
रायसिंह
दलपत सिंह
सूरसिंह
कर्णसिंह
अनूप सिंह
स्वरूप सिंह
सुजान सिंह
जोरावर सिंह
गलसिंह
राजसिंह
सूरज सिंह
रतन सिंह
सरदार सिंह
डूंगर सिंह
गंगा सिंह
सार्दुल सिंह
कर्णी सिंह
किशनगढ़ के राठौड़ राजाः-

किशनसिंह(जोधपुर के राजा उदयसिंह के पुत्र)
सहसमल
जगमाल
हीरा सिंह
रूप सिंह
मानसिंह
राजसिंह
सामंत सिंह
सरदार सिंह
बहादूर सिंह
बिड़द सिंह
प्रताप सिंह
कल्याण सिंह
मोहकम सिंह
पृथ्वी सिंह
सार्दूल सिंह
मदन सिंह
सुमेर सिंह
जोधपुर के महाराजा उदयसिंह के प्रपौत्र रतन सिंह ने रतलाम राज्य की स्थापना की।

मेड़तिया राठौडों की उपशाखाएः-

रायमलोतः दूदा के पुत्र रायमल के वंशज
जयमलोतः वीरमदेव के पुत्र जयमल के वंशज
ईशरदासोतः वीरम देव के पुत्र ईशरदास से
जगमालोतः वीरमदेव के पुत्र जगमाल के वंशज
वीदावतः वीरमदेव के पुत्र चांदा के वंशज
गोपीनाथोतः वीरमदेव के पांचवे वंशधर गोपीनाथ के वंशज, घाणेराव ठिकाना।
मांडणोतः वीरमदेव के पुत्र मांडणा से
सुरताणोतः जयमल के पुत्र मांडण से
सादुलोतः जयमल के पुत्र सादुल से
केशवदासोतः जयमल के पुत्र केशवदास के वंशज
माधवदासोतः जयमल के पुत्र माधवदास से
मुकुंददासोतः जयमल के पुत्र मुकुंददास के वंशज
कल्याणदासोतः जयमल के वंशज कल्याण दास के वंशज
रामदासोतः जयमल के पुत्र रामदास के वंशज
गोविंदासोतः जयमल के पुत्र गोविंददास के वंशज
विट्ठलदासोतः जयमल के पुत्र विट्ठलदाल के वंशज
शामदासोतः जयमल के पुत्र श्यामदास के वंशज
द्वारकादासोतः जयमल के वंशज द्वारका दासोत के वंशज
अनोपसिंहोतः घाणेराव के शासक किशनसिह के पौत्र, गोपीनाथ के पुत्र अनोपसिंह के वंशज, ठिकाना चाणोद।
जगन्नाथोतः जयमल के पुत्र गोविंददास के पुत्र जगन्नाथ के वंशज, नागौर, मेड़ता व परबतसर के आसपास।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ शेखावत शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ़,नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है । शेखावत वंश परिचय वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है | भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतास गढ़ और रोहताश से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये |रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वाहन के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया |कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली | महात

माता राणी भटियाणी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास

~माता राणी भटियानी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास ।~ .....~जय जसोल माजीसा~...... माता राणी भटियानी ( "भूआजी स्वरूपों माजीसा" शुरूआती नाम) उर्फ भूआजी स्वरूपों का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ।भूआजी स्वरूपों उर्फ राणी भटियानी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था।राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था।राव कल्याणसिंह का पहला विवाह राणी देवड़ी के साथ हुआ था। शुरुआत मे राव कल्याणसिंह की पहली राणी राणी देवड़ी के संतान नही होने पर राव कल्याण सिंह ने भूआजी स्वरूपों( जिन्हे स्वरूप बाईसा के नाम से भी जाना जाता था) के साथ दूसरा विवाह किया।विवाह के बाद भूआजी स्वरूपों स्वरूप बाईसा से राणी स्वरुपं के नाम से जाना जाने लगी। विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया। राणी स्वरुपं के संतान प्राप्ति होने से राणी देवड़ी रूठ गयी।उन्हे इससे अपने मान सम्मान मे कमी आने का डर सताने लगा था।प्रथम राणी देवड

देवड़ा चौहानो की खापें और उनके ठिकाने

देवड़ा चौहानों की खापें और उनके ठिकाने देवड़ा :- लक्ष्मण ( नाडोल) के तीसरे पुत्र अश्वराज (आसल ) के बाछाछल देवी स्वरूप राणी थी | इसी देवी स्वरूपा राणी के पुत्र 'देवीरा ' (देवड़ा ) नाम से विख्यात हुए | इनकी निम्न खापें है | १.बावनगरा देवड़ा :- महणसी देवड़ा के पुत्र पुतपमल के पुत्र बीजड़ हुए बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण के वंशजों का ठिकाना बावनगर था | इस कारन लक्ष्मण के वंशज बावनगरा देवड़ा कहलाये | मेवाड़ में मटोड़ ,देवरी ,लकड़बास आदी ठिकाने तथा मालवा में बरडीया ,बेपर आदी ठिकाने | २.मामावला देवड़ा :- प्रतापमल उर्फ़ देवराज के छोटे पुत्र बरसिंह को मामावली की जागीर मिली | इस कारन बरसिंह के वंशज मामावला देवड़ा कहलाये | ३.बड़गामा देवड़ा :- बीजड़ के छोटे पुत्र लूणा के पुत्र तिहुणाक थे | इनके पुत्र रामसिंह व् पोत्र देवासिंह को जागीर में बड़गाम देवड़ा कहलाये | बडगाम जोधपुर राज्य का ठिकाना था | सिरोही राज्य में इनका ठिकाना आकुला था | ४.बाग़ड़ीया देवड़ा :- बीजड़ के क्रमशः लूणा ,तिहुणक व् सबलसिंह हुए | सबलसिंह के वंशज बागड़ीया कहलाते है | बडगांव आकन आदी इनके ठिकाने थे | ५. बसी देवड़ा