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खंगारोतो का पाटवी (मुख्य)संस्थान

खंगारोतों का पाटवी (मुख्य) संस्थान

तत्पश्चात नरायणा आमेर-जयपुर के कछवाहों की एक प्रमुख शाखा खंगरोतों का पाटवी (मुख्य) संस्थान हो गया. इस शाखा के पूर्व पुरुष जगमाल कछवाहा थे. उनके पुत्र राव खंगार थे जो इस खंगारोत वंश के प्रवर्तक माने जाते हैं. जगमाल कछवाहा तथा राव खंगार अकबर के परम विश्वस्त और प्रमुख मनसबदार थे.[16]

बादशाह अकबर की और से अनेक युद्ध-अभियानों में भाग लिया. 1537 ई. में जब अकबर ने गुजरात पर चढ़ाई की तबराव जगमाल को कैम्प कमांडर गया था. जगमाल कछवाहा के बाद राव खंगार नरायणा के शासक हुए. अकबर ने जब गुजरात का अभियान किया तब ये शाही सेना के साथपाटण गए थे. दूसरे गुजरात अभियान के समय राव खंगार को राजा भारमल के साथ आगरा की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था. महाराणा प्रताप के विरूद्ध हल्दीघाटी की लड़ाई में राव खंगार कुंवर मानसिंह के साथ शाही सेना में सम्मिलित प्रमुख सेना नायकों में थे. अकबरनामातबकाते अकबरी, तथा मुन्तख़ब ऊत तावारीख अनेक ग्रंथों में वर्णन मिलता है. तबकाते अकबरी के अनुसार उनका मनसब 2000 का था. राव खंगार विक्रम संवत 1640 (1583ई) को पुर मांडल शाही थाने की रक्षा करते हुए हुए वीरगति को प्राप्त हुए.[17]

नरायणा के गौरीशंकर तालाब के पास स्थित भोजराज के बाग़ में खंगारोत शासकों की छतरियां हैं. नरायणा के खंगारोत शासकों में मुख्य हैं - नारायण दास जो 1616 ई. में दक्षिण की लड़ाई में मारे गए, बाघ सिंह जो खानजहाँ के विरूद्ध लड़ते हुए संवत 1687 में काम आये, भोजराजजिन्होंने मिर्जा राजा जयसिंह के अधीन शाही सेना के साथ दक्षिण के अनेक अभियानों में गए. भोजराज की छतरी के शिलालेख से ज्ञात होता है कि वे वि.सं. 1733 में भादवासुदी 6 रविवार को वीरगति प्राप्त हुए. [18]

सिद्धसेनसूरी की वि. सं. 1123 (1066 ई.) में रचित सर्वतीर्थमाला में अपभ्रंश कथाग्रन्थ 'विलासवर्दूकहां' मेंझुंझुनू के साथ-साथ खण्डिल्लनराणाहरसऊद औरखट्टउसूस (खाटू) के नाम आये हैं। इससे इसकी उपस्थिति विक्रम की 12 वीं शती में भी ज्ञात होती है।[19]

सिद्धसेन सूरि द्वारा रचित 'सकलतीर्थ स्तोत्र' में नरायणा की तीर्थ के रूप में वंदना की है यथा -

"खांडिल्ल डिडआणय नराण हरसउर खट्टउ देसे ।नागउर मुब्बिद तसु संभरि देसं मि वन्देमि ।।[20]

विसं 1083 (1027 ई.) माघ सुदी 14 को स्थापित आचार्य धरमसेन के चरण यहाँ एक मंदिर में विद्यमान हैं. विसं 1226 (1170 ई.)के बिजोलिया शिलालेख में श्रेष्टि लोलक के पुरवजों द्वारा नरायणा में वर्धमान का मंदिर बनाये जाने का उल्लेख हैं. यहाँ पार्श्वनाथ की खड़ी प्रतिमा है तथा छोटे कद की सरस्वती प्रतिमा हैं. [21]

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