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राजा दुल्हेराय कच्छवाह

दुल्हेराय : राजस्थान में कछवाह राज्य के संस्थापक

राजा दुल्हेराय कच्छवाह

मध्यप्रदेश के एक राजा नल-दमयंती का पुत्र ढोला जिसे इतिहास में साल्ह्कुमार के नाम से भी जाना जाता है का विवाह राजस्थान के जांगलू राज्य के पूंगल नामक ठिकाने की राजकुमारी मारवणी से हुआ था| जो राजस्थान के साहित्य में ढोला-मारू के नाम से प्रख्यात प्रेमगाथाओं के नायक है| इसी ढोला के पुत्र लक्ष्मण का पुत्र बज्रदामा बड़ा प्रतापी व वीर शासक हुआ जिसने ग्वालियर पर अधिकार कर एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया| बज्रदामा के वंश में

ही सोढदेव जी हुए जो मध्यप्रदेश के नरवर के शासक थे| सोढ देव जी का एक बेटा दुल्हेराय हुआ जिसका विवाह राजस्थान में मोरागढ़ के शासक रालण सिंह चौहान की पुत्री से हुआ| रालण सिंह चौहान के राज्य के पड़ौसी दौसा के बड़गुजर राजपूतों ने मोरागढ़ राज्य के करीब पचास गांव दबा लिए थे| अत: उन्हें मुक्त कराने के लिए रालण सिंह चौहान ने दुल्हेराय को सहायतार्थ बुलाया और दोनों की संयुक्त सेना ने दौसा पर आक्रमण कर बड़गुजर शासकों को मार भगाया| दौसा विजय के बाद दौसा का राज्य दुल्हेराय के पास रहा| दौसा का राज्य मिलने के बाद दुल्हेराय ने अपने पिता सोढदेव को नरवर से दौसा बुला लिया और सोढदेव जी को विधिवत दौसा का राज्याभिषेक कर दिया गया| इस प्रकार दुल्हेराय जी ने सर्वप्रथम दौसा में कछवाह राज्य स्थापित कर राजस्थान में कछवाह साम्राज्य की नींव डालते हुए स्थापना की| दौसा के बाद दुल्हेराय जी ने भांडारेज, मांच, गेटोर, झोटवाड़ा आदि स्थान जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया|

दुल्हेराय जी का राजस्थान आने का समय

दुल्हेराय जी के नरवर मध्यप्रदेश से राजस्थान के ढूढाड प्रदेश में आने के बारे विभिन्न इतिहासकारों ने अलग- अलग समय दर्ज किया है| डा.गौरीशंकर हीराचंद ओझा दुल्हेराय के पिता सोढदेव के राजस्थान आने का समय वि.संवत ११९४ मानते है| तो कर्नल टाड ने दुल्हेराय के आने का समय ई.सन ९६७ लिखा है जबकि इम्पीरियल गजेटियर में यह तिथि ई.सन ११२८ अंकित है| कविचंद ने अपने ग्रन्थ कुर्म विलास में ई.सन.९५४ वि.स.१०११ लिखा है| पर दुल्हेराय के पूर्वज बज्रदामा जो दुल्हेराय से आठ पीढ़ी पहले थे का एक वि.संवत. १०३४ बैसाख शुक्ल पंचमी, ४ नवंबर ९७७ का लिखा शिलालेख मिलने से कर्नल टाड, इम्पीरियल गजेटियर,कविचंद की तिथियों को सही नहीं माना जा सकता| जयपुर के राज्याभिलेखागर में भी जो ती तिथियाँ लिखी है वे आनंद संवत में है जिनकी वि.संवत में गणना करने के बाद अलवर राज्य के विभागाध्यक्ष वीर सिंह तंवर तथा रावल नरेंद्र सिंह ने सोढदेव की मृत्यु व दुल्हेराय के गद्दी पर बैठने की तिथि माघ शुक्ला ७ वि.संवत ११५४ लिखा है|
वीर विनोद के लेखक श्यामदास ने भी अपने ग्रन्थ में यही तिथि लिखी है| कर्नल नाथू सिंह शेखावत ने भी अपनी पुस्तक “अदम्य यौद्धा महाराव शेखाजी” में दुल्हेराय के राजस्थान आने के समय को लेकर इतिहासकारों में भ्रम की स्थिति की बड़े प्रभावी ढंग से विवेचना करते हुए स्पष्टता प्रदान की है| ज्यादातर इतिहासकार दुल्हेराय जी का राजस्थान में शासन काल वि.संवत ११५४ से ११८४ के मध्य मानते है|
कर्नल नाथू सिंह शेखावत ने अपनी पुस्तक में स्पष्ट किया है कि दुल्हेराय जी की शादी वि.संवत ११२४ में हुई थी और वे वि.स.११२५ में ही राजस्थान आ गए थे|

राजस्थान में कछवाह राज्य की स्थापना व विस्तार

जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है कि दुल्हेराय जी ने अपने ससुराल वालों व दौसा के बडगुजर राजपूतों के मध्य अनबन होने के चलते दौसा के बड़गुजर राजपूतों को दण्डित करते हुए उन्हें युद्ध में हराकर दौसा पर कब्ज़ा कर कछवाह राज्य की राजस्थान में नींव डाली| दौसा विजय के बाद दुल्हेराय ने अपने पिता को भी दौसा बुला दौसा के आस-पास छोटे छोटे मीणा राज्यों को जीतकर अपने राज्य की सीमा विस्तार का अभियान शुरू कर दिया| दौसा में पैर जमने के बाद दुल्हेराय ने भांडारेज के मीणों को परास्त किया उसके बाद मांच के मीणाओं पर आक्रमण किया, पर मांच के बहादुर मीणाओं के साथ संघर्ष में दुल्हेराय की करारी हार हुई| दुल्हेराय भी युद्ध में भयंकर रूप से घायल हो मूर्छित हो गए जिन्हें मरा समझ कर मीणा सैनिक युद्ध भूमि में छोड़ गए थे| पर मूर्छा से होश आते ही दुल्हेराय ने घायलावस्था में अपनी सेना का पुनर्गठन कर जीत का जश्न मनाते मीणाओं पर अचानक आक्रमण कर दिया| इस अप्रत्याशित आक्रमण में मीणा हार गए और दुल्हेराय ने मांच पर अधिकार कर मांच का नाम अपने पूर्वज राम के नाम व वहां अपनी कुलदेवी जमवाय माता की मूर्ति स्थापित कर “जमवा रामगढ़” नाम रख उसे अपनी राजधानी बनाया|

मीणा शासनकाल का एक किला

मांच पर कब्ज़ा करने के बाद दुल्हेराय ने बची हुई बड़गुजर शक्ति को खत्म करने के उदेश्य से बड़गुजरों के प्रमुख राज्य देवती पर आक्रमण कर उसे भी जीत लिया| देवती राज्य विजय से दुल्हेराय को दो दुर्ग मिले| बड़गुजरों के खतरे को खत्म कर दुल्हेराय ने फिर मीणा राज्यों को जीतने का अभियान शुरू किया और आलणसी मीणा शासक से खोह का राज्य जीता उसके बाद मीणा शासकों से ही गेटोर, झोटवाड़ा व आस-पास के अन्य छोटे राज्य जीते| आमेर के प्रमुख मीणा राज्य के अलावा लगभग मीणा राज्य जीतने के बाद दुल्हेराय जी ने अपनी राजधानी जमवा रामगढ़ से खोह स्थांतरित कर खोह को अपनी राजधानी बनाया|

मीणा जैसे बहादुर लड़ाकों को हराकर उनका राज्य छिनने से उनकी ख्याति सर्वत्र फ़ैल गई और उसी समय के लगभग दुल्हेराय जी को ग्वालियर पर हुए किसी दुश्मन के हमले को नाकाम करने के लिए सहातार्थ बुलाया गया| ग्वालियर की रक्षार्थ लड़े गए युद्ध में हालाँकि विजय तो मिली लेकिन इस युद्ध में दुल्हेराय जी गंभीर रूप से घायल हुए और इलाज के लिए फिर अपनी राजधानी खोह लौट आये|

जमवाय माता के मंदिर की स्थापना

प्राचीन जमवाय माता मंदिर

दुल्हेराय जी ने जब मांच के मीणाओं पर आक्रमण किया तब उस युद्ध में वे घायल हो मूर्छित हो गए थे और मीणाओं जैसी लड़ाका कौम के आगे बुरी तरह हार गए थे| युद्ध के मैदान में उनके मूर्छित होने पर मीणा सैनिक उन्हें मरा समझ छोड़ गए थे पर इतिहासकारों के अनुसार उन्हें मूर्छित अवस्था में उनकी कुलदेवी जमवाय माता ने दर्शन देकर पुन: युद्ध करने का आदेश और युद्ध में विजय होने का आशीर्वाद दिया| देवी के आशीर्वाद से तुरंत स्वस्थ होकर दुल्हेराय जी ने अपनी सेना का पुनर्गठन कर अपनी विजय का उत्सव मनाते मीणाओं पर अचानक हमला किया और विजय हासिल की| इस तरह देवी के आशीर्वाद से हासिल हुई विजय के तुरंत के बाद दुल्हेराय ने मांच में अपनी कुलदेवी जमवाय माता का मंदिर बनाकर वहां देवी की प्रतिमा स्थापित की जो आज भी मंदिर में स्थापित है| और दुल्हेराय जी के वंशज जो राजस्थान में कछवाह वंश की उपशाखाओं यथा- राजावत, शेखावत, नरूका, नाथावत, खंगारोत आदि नामों से जाने जाते है आज भी जन्म व विवाह के बाद जात (मत्था टेकने जाते है) लगाते है|

अंतिम समय

राजस्थान में दौसा के आप-पास बड़गुजर राजपूतों व मीणा शासकों पतन कर उनके राज्य जीतने के बाद दुल्हेराय जी ग्वालियर की सहायतार्थ युद्ध में गए थे जिसे जीतने के बाद वे गंभीर रूप से घायलावस्था में वापस आये और उन्ही घावों की वजह से माघ सुदी ७ वि.संवत ११९२, जनवरी २८ ११३५ ई. को उनका निधन हो गया और उनके पुत्र कांकलदेव खोह की गद्दी पर बैठे जिन्होंने आमेर के मीणा शासक को हराकर आमेर पर अधिकार कर अपनी राजधानी बनाया जो भारत की आजादी तक उनके वंशज के अधिकार में रहा|

देश की आजादी के बाद देश में अपनाई गई लोकतांत्रिक शासन प्रणली में भी इसी वंश के स्व.भैरों सिंह शेखावत देश के उपराष्ट्रपति पद पर रहे और इसी महान वंश की पुत्र वधु श्रीमती प्रतिभा पाटिल देवीसिंह शेखावत देश के राष्ट्रपति पद पर सुशोभित रही|

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