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कांधल राठौड़


रावत कांधल जी - राव रिडमल जी (राव रणमल जी) - राव राजा चड़ा जी (राव छाडा जी) - राव वीरम देवजी - राव सलखा जी - राव तिडा जी - राव छाडा जी - राव जलमसी जी (राव जालण जी) - राव कनक पाल जी - राव रायपाल जी - राव धुहड जी - राव आस्थान जी - राव सीहा जी

(1) राव सीहा जी

(2) राव आस्थान जी

(3) राव धुहड जी

(4) राव रायपाल जी

(5) राव कनक पाल जी

(6) राव जलमसी जी (राव जालण जी)

(7) राव राजा चड़ा जी (राव छाडा जी)

(8) राव तिडा जी

(9) राव सलखा जी

(10) राव वीरम देवजी

(11) राव चुंडा जी

(12) राव रिडमल जी (राव रणमल जी)

राव रिडमल जी (राव रणमल जी) के 24 पुत्र थे -

1 राव अखेराज जी 2 राव जोधा जी 3 रावत कांधल जी4 राव चाम्पा जी 5 राव मंडला जी 6 राव भाखर जी 7 राव पाताजी 8 राव रूपा जी 9 राव करण जी 10 राव मानडण जी 11 राव नाथो जी 12 राव सांडो जी 13 राव बेरिसाल जी 14 राव अड्मल जी 15 राव जगमाल जी 16 राव लखाजी 17 राव डूंगर जी 18 राव जेतमाल जी 19 राव उदाजी 20 राव हापो जी 21 राव सगत जी 22 राव सायर जी 23 राव गोयन्द जी 24 राव सुजाण जी।

जोधा के सगे भाई - राव कांधल जी, राव रूपा जी, राव मांडल जी, राव नथु जी और राव नन्दा जी ये पाँच सरदार जो जोधा के सगे भाई थे। रावत कांधल जी अपने भाई जोधाजी के एक बोल पर अपने भतीजे बीका को लेकर नया राज बनाने चल पड़े ।

राव कांधल जी राव चुंडा जी के पोत्र तथा राव रिडमल जी (राव रणमल जी) के पुत्र थे वीर  राव कांधल जी अपने दादा व् पिता की तरह ही पराक्रमी थे राव कांधल जी ने प्रथम युद्ध  बारह बरस की अवस्था में लड़ा और विजय प्राप्त की राव कांधल जी ने अपने जीवन में 52 युद्ध लड़े तथा सभी में विजय श्री हासिल की माँ करनी जी में उनकी अगाध श्रधा थी माँ करणी का भी अत्यधिक स्नेह था वे राव कांधल जी को अपने भतीजा मानती थी राव कांधल जी ने जोधपुर राज्य बनाने से लेकर बीकानेर राज्य स्थापित करने में अपना जीवन न्योछावर करदिया जिसे राठौड़ो के इतिहास में कभी भी नही भुलाया जासकता है।

राजपूतों के छतीस राजवंशो में से श्रेष्ठ कुल सूर्य वंशी राठौड़ को माना गया है। सूर्य वंशी राठौड़ो ने अपनी श्रेष्ठता हमेशा सिद्ध की है, इसी कारण इन्हें रण बंका राठौड़ कहा गया है।

"'ब्रज्देसा चन्दन बड़ा मरु पहाडा मोड़।

गरुड खंडा लंका गढ़ा राजकुला राठौड़ ।।

बल हट बंका देवड़ा करतब बंका गोड।

हाडा बांका गाढ़ में तो रण बंका राठौड़ ।।  

राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) के वंशज कांधल (कान्ध्लोत ) राठौड़ कहलाते है । कांधल अपने समय का वीर योद्धा था । पिता रणमल के चितोड़ में मारे जाने पर राठोड़ों को विपतियों का सामना करना पड़ा । उन विपतियों के दिनों में कांधल ने अपने भाई जोधपुर का साथ देकर राठोड़ राज्य की पुनः स्थापना की ।वि.सं.1522 के दशहरा उत्सव मनाने के अवसर पर कांधल आपने भतीजे बीका को पकड़े टहल रहे थे । तो जोधा ने व्यंग में कहा "मालूम होता है कांधल भतीजे को कोई नया राज्य दिलाएंगे ।"" यह व्यंग कान्धल जी को लग गया और बीका को लेकर जोधपुर से रवाना हो गए तथा चाडासर आदी स्थानों को जीतकर जाटों के जनपदों पर अधिकार कर बीकानेर नवीन राज्य की स्थापना कर डाली ।

फतहपुर के नवाब के सेनापति बहुगुणा को मारकर उसके कुछ प्रदेश अधिकार कर बीकानेर राज्य का विस्तार किया। कांधल ने आपने दुसरे भतीजे बीदा को छापर द्रोणपुर को जीतने में पूरी मदद की और शाही सेनापति सारंग खां को युद्ध भूमि में भगा दिया । सी समय उनकी अवस्था 70 वर्ष थी फिर भी उनमे अदम्य साहस था ।

कांधल (कांधलोत) राठौड़ो के सब ठिकानों का विवरण इस प्रकार है –     

1 - रायमलोत कांधल:- राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) के बड़े पुत्र बाघसिंह (बाघ) थे। बाघसिंह के तीन पुत्र थे 1-बणीर, 2-नारायणदास (ठी. धमोरा), 3-रायमल, रायमल के वंशज रायमलोत कांधल कहलाते है। इनके वंशज रोहतक के पास डमाणा गाँव में बसते है।

2 -  रावतोत कांधल:- राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) के दुसरे पुत्र का नाम राजसिंह था | राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल)  म्रत्यु उपरांत रावत की उनके बड़े पुत्र बाघसिंह की शीघ्र म्रत्यु हो गयी तथा पुत्र बणीर अल्पायु था । कांधल जी की जो जोरावत की उपाधी थी वह उपाधी उनके पुत्र राजसी के रही इसके कारण वे रावतोत कहलाये।  इस कारन राजसिंह की पिता की पर्ववत पदवी मिली तथा राजासर का ठिकाना मिला । राजासर बीकानेर के चार रियासत ठिकानों में से ऐक था | यही राजासर बाद में रावतसर कहा जाने लगा । रावत पदवी के  कारण राजसिंह के वंशज रावतोत कहलाये ।

कमरा द्वारा बीकानेर पर आक्रमण करने के समय राजसिंह के पुत्र किशनदास व उदयसिंह ने वीरता दिखाई । किशनसिंह को जैतपुरा ठिकाना मिला ।अकबर के समय गुजरात पर आक्रमण करने के समय उदयसिंह के पुत्र राघवदास ने वीरता दिखाई | तथा उनके पुत्र  जगतसिंह ने वीरगति पायी । राघवदास के बाद क्रमश रामसिंह ,लखधीरसिंह ,चतरसिंह ,आनंदसिंह,जयसिंह ,हिम्मतसिंह ,विजयसिंह ,भोमसिंह ,नाहरसिंह,जोरावरसिंह ,रंजीतसिंह ,हुकुमसिंह ,मानसिंह ,तथा तेजसिंह रावतसर गद्धी पर रहे । तेजसिंह की राणी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत राजस्थान की जानी मानी विदुषी है । ये राजस्थान विधानसभा की सदस्य भी रही है ।

रावतसर के किशनसिंह को कल्याणमल (बीकानेर ) ने जैतपुर (दोलड़ी ताजीम ) का ठिकाना दिया । गजसिंह के समय उनके बड़े भाई अमरसिंह जोधपुर की सेना को बीकानेर पर चढ़ा लाये । उस समय जैतपुर के स्वामी स्वरूपसिंह ने बरछे के वार से जोधपुर सेना के सेना नायक रतनचन्द्र भंडारी को मार डाला । यहाँ के स्वामी सरदारसिंह ने सूरतगढ़ बसाने के समय भट्टियों का दमन किया तथा सुरक्षा के लिए फतहगढ़ का निर्माण करवाया। इन ठिकानो के अलावा ( इकोलड़ी ताजीम )महेल(सादी ताजीम ) कालासर आदी रावतोंतो के ठिकाने थे । राजसी के पुत्रोँ उदयसिँह, किशनसिँह से निकली शाखायेँ इस प्रकार है-

3- राघोदासोत (राघव्दासोत) कांधल:- रावतसर के राघवदास के वंशज राघव्दासोत भी कहलाये । इनके बीकानेर रियासत में बिसरासर (इकोलड़ी ताजीम) व् घांघूसर (सादी ताजीम) के ठिकाने थे ।

4 - गोपालदासोत कांधल:- राजसिंह के पुत्र गोपालदास के वंशज

4-साईंदासोत कांधल:- साईं दास जी रावत कांधल के पुत्र अडक मलजी के पुत्र खेतसी के ज्येष्ठ पुत्र थे। साईं दासजी ने अपने पिता खेतसी के साथ कई युधों में भाग लिया। बीकानेर की तरफ से अपने पिता के साथ सांगा कछवाह की सहायता को गये और विजयी हुए। जब कामरान के साथ हुए भटनेर के युद्ध में इनके पिता खेतसी मारे गये उस समय ये साहवा में थे। फिर कामरान ने बीकानेर पर आक्रमण कर वहा भी अधिकार कर लिया तब महाराजा जेतसी ने देशनोक में शरण ली और अपने खास योद्धाओं को वहा इकट्ठा किया तब साहवा से साईं दास जी, चुरू से बणीर जी, सांगा जी देवीदास जी रतनसिंह जी आदि 109 चुनें हुए वीरों के साथ करणी जी का आशीर्वाद लेकर कामरान पर आक्रमण किया रात्री के समय हुए राठौड़ो के प्रबल आक्रमण को यवन झेल नही सके और भाग खड़े हुए। भागते समय कामरान का क्षत्र (मुकुट) गिर गया था जिसे उठा ने की उसकी हिम्मत नही हुई कामरान डर कर भाग गया विजय राठौड़ो की हुई। बीकानेर पर फिर से राठौड़ो का अधिकार हो गया।

विक्रम सम्वत 1597 में मालदेव (चुरू) ने बीकानेर पर हमला किया तब जेतसी ने साहवा में  साईं दासजी के यहाँ डेरे में रूकेहुए थे लेकिन रात्री में जेतसी किसी कारण से बीकानेर चले गये यह बात अन्य सरदारों में फुट गई तब सभी सरदार अपने स्थानों को लोट गये। जब जेतसी वापिस लोटे तो सिर्फ 150 आदमी बचे थे, जो मालदेव (चुरू) का मुकाबला नही कर सके ओर जेतसी मारे गए। इस युद्ध में साईं दासजी ने बीकानेर की मदद की। कांधल जी ने सिरसा भट्टू फ्तेहावाद तक का क्षेत्र जीता था उसी क्षेत्र में दडबा हलका पड़ता था जहां के स्वामी भीला बेनीवाल ने काफी आंतक मचा रखा था, भीला बेनीवाल को साईं दासजी ने मारकर इस क्षेत्र पर फिर से अधिकार कर लिया। तब भीला बेनीवाल की माता जो काफी समझदार थी ने साईं दासजी के साथ समझौता करके धर्मेला करवा दिया जो साईं दासोत कांधलों व बेनिवालो में आज भी कायम है। साईं दास जी युद्ध में मारे गए लेकिन मरते -मरते भी अपने हाथ में मौजूद लोटे से 18 दुश्मनों को यमलोक पहुंचा के गये। इनके वंशज साईं  दासोत कांधल राठौड़ कहलाते हैं। साईं दासजी व इनके पुत्रोँ वंशज साईंदासोत कांधल राठौड़ कहलाते है। खेतसी के पुत्र साईं दासजी के 7 पुत्र हुए, साईं दासजी के7 पुत्रों में तीन पुत्रों के हि संतान हुए जो इस प्रकार थे -    

·         1 जयमल जी (ठिकाना साहवा)

·         2 कान सिंह जी (कान्ह जी) (ठिकाना (गुणा) गढ़ाणा तथा गाज्वास)

·         3 ठाकुर जी (नि:संतान)

·         4 खंगार सिंह जी ठिकाना (सिकरोड़ी)

·         5 खींव जी (नि:संतान)

·         6 जालन जी (नि:संतान)

·         7 लक्ष्मण जी (नि:संतान)

हरिसिंह के पुत्र सांवतसिह जी ने महाराजा गज सिह के भाई तारासिंह को मारकर अपना ठिकाना महलिया व डूंगराणा कायम किया। बाद में गज सिह ने डुंगराणा पर हमला कर तोपों से गोले बरसाकर गढ़ को नष्ट कर दिया तथा सांवत सिह कांधलोत गढ़ की रक्षा करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए। इनके पुत्र हिन्दुसिह जो कलाना के गढ़ में थे वहा भी बीकानेर फोज ने हमला कर गढ़ को लुट लिया हिन्दुसिह किसी तरह बचकर अपने चाचा लाल सिह के पास भादरा आये। इनका ठिकाना महलिया सांवलसर तथा जोरावरपूरा था।

साईंदास के वंशज क्रमश: जयमल ,आसकरण ,हरिसिंह,दौलतसिंह ,व् लालसिंह को जोरावरसिंह ने बीकानेर ने भादरा की जागीरी दी । लालसिंह अपने समय के स्वाभिमानी तथा वीर राजपूत थे । बीकानेर नरेश के वे विद्रोह हो गए थे | बीकानेर के लिए सिरदर्द बन गए  तब जोरावरसिंह ने जयपुर की सहायता ली तो शार्दुलसिंह शेखावत ने लाल सिंह को पकड़कर नाहरगढ़ में रखा ।सवाई जयसिंह की म्रत्यु के बाद उन्हें जोधपुर राजा ने छुड़ाया । बाद में बड़ी मुश्किल से बीकानेर राजा गजसिंह ने उन्हें अपराध क्षमा कर भादरा ठिकाना छीन लिया । महाराज सरदारसिंह ने उनके वंशज बाघसिंह को माणकरासर की जागीर दी ।

4-लालसीहोत कांधल:- लालसिंह जी के वंशज लालसीहोत कांधल कहलाते है । उनके वंशज कांधलान,झाडसर, झांझणी आदी इनके गाँवो के ठिकाने है । 

लालसिहोत के अतिरिक्त साईंदासोतो के वंशज सांवलसर ,सिकरोड़ी ,साहवा ,तारानगर ,रेडी ,साहरण आदी इनके गाँवो के ठिकाने है । राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) के पुत्र अरड़कमल के वंशजों में मालवा जिला साजापुर में गुणन्दी तथा तन्नोड़ीया ठिकाने थे । राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) के पुत्र पूरनमल के वंशज ये बिल्लू चुरू में है ।

6- पर्वतोंत कांधल (परवतोत कांधल):- राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) के पुत्र परवत के वंशज पर्वतोंत कांधल (परवतोत कांधल) । ऐक कोटड़ी बिलयु में बताई जाती है ।

कांधल (कांधलोत) राठौड़ो का पीढी क्रम इस प्रकार है –     

·         परवत जी (पर्वत जी) - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल)

·         लाल सिंह जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) 

·         सूरसिंह - उदयसिंह –– राजसिंह (रावतसर) - कान्धल जी (रावत कन्ध्ल जी)

·         राघवदास - किशनदास (किशनदास, जैतपुरा) – राजसिंह (रावतसर) - कान्धल जी (रावत कन्ध्ल जी)

·         राघवदास - उदयसिंह- राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) 

·         रायमल – बाघसिंह - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल)

·         कान सिंह जी (कान्ह जी) - साँईदास जी ।- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल)

·         गोकुल दासजी - खंगार सिंह जी - साँईदास जी - खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल)।

·         नत्थू दासजी - खंगार सिंह जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         जसवंत सिह जी - खंगार सिंह जी - साँईदास जी - खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल)।

·         भोप जी - दुर्जन साल जी - किशन दासजी- खंगार सिंह जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         रतन सिह पाटवी - इन्द्रभान जी - किशन दासजी- खंगार सिंह जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।   

·         चतर सिह जी - इन्द्रभान जी - किशन दासजी- खंगार सिंह जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         मुण सिह जी - रतन जी - किशन दासजी- खंगार सिंह जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।  

·         जालण सिह जी - रतन जी - किशन दासजी- खंगार सिंह जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।   

·         भूपाल जी - रतन जी - किशन दासजी- खंगार सिंह जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।  

·         हरिसिंह जी - रतन जी - किशन दासजी- खंगार सिंह जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।   

·         शेरसिह जी- रतन जी - किशन दासजी- खंगार सिंह जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।   

·         जगदेव जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         सगत जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         किशन जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         सांवलदास जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         जेतसी जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         भोपाल जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         सहस मलजी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         फतेह सिह (निसन्तान) - हरीसिंह जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         कीरत जी - दोलत सिह - हरीसिंह जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         कुशल जी - दोलत सिह - हरीसिंह जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         जसवंत जी - दोलत सिह - हरीसिंह जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         लाल सिह जी - दोलत सिह - हरीसिंह जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         सांवतसिह जी - दोलत सिह - हरीसिंह जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         हुक्म सिह जी - सवाई सिह - मुण सिह - रतनसिंह जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         बुद्ध सिह जी - सवाई सिह - मुण सिह - रतनसिंह जी - आसकरण जी (साहवा) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         कान सिंह जी (कान्ह जी) - साँईदास जी - खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         खंगार सिंह जी - साँईदास जी - खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल)

·         ठाकुर जी (नि:संतान) - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         खींव जी (नि:संतान) - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         जालन जी (नि:संतान) - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         लक्ष्मण जी (नि:संतान) - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         मनोहर दास जी (निसन्तान) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         अचल दासजी (निसन्तान) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

·         लक्ष्मण दासजी (निसन्तान) - जयमल जी - साँईदास जी- खेतसी जी - अरड़कमल जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल) ।

रावत कांधल जी की मृत्यु

बीकानेर स्थापना और राव जोधा जी से मिलने के बाद कांधल जी अपने पुत्रो तथा पोत्रो को लेकर साहवा आगये और राठोड राज्य को और ज्यादा सुद्रढ़ करने के लिए अपना क्षेत्र बढ़ाने लगे उन्होंने साहवा शेरडा राजासर आदि पर आधिपत्य कर लिया। वहा की वीर जाट जातियों ने जिनमे बेनीवाल सहारण तथा सिहाग उनके साथ हो गये। नोहर के जोईया सरदार को पराजित कर नोहर पर अधिकार कर लिया। ओटू के मीर पठान को मारकर किले पर अधिकार कर लिया। कांधल जी ने हांसी हिसार फतेहवाद सिरसा बुडाक भादरा भट्टू तक अपना अधिकार कर लिया। उनकी बढती हुई ताकत को देख दिलली का बादशाह घबरा गया और सारंग खां भी अपनी हार का बदला लेना चाहता था। इसलिए उसने अपनी सेना देकर सारंग खां को कांधल जी को रोकने भेजा। इस समय कांधल जी झांसल में डेरा किये हुए थे उनके साथ गिने चुने ही योद्धा थे। सारंग खा ने घात लगाकर हमला बोल दिया रावत कांधल जी ने अपने आदमियों के साथ मुकाबला किया। घमासान लड़ाई हुई रावत कांधल ने अपना घोड़ा दोडाकर सारंग खा के हाथी पर कुदाया तभी घोड़े का तंग टूट गया कांधल जी अपने घोड़े का तंग ठीक करने लगे तभी सारंग खा ने हमला किया रावत कांधल जी मारे गये युद्ध की साक्षी रही यह पावन धरा साहवा, जिस पर अंतिम युद्ध कांधल व सारंग खान के मध्य हुआ। लेकिन मरते मरते कई तुर्को को यमलोक पहुंचा गये यह घटना पोषकृष्ण 5 विक्रम सम्वत 1546 को हुई उस समय कांधल जी के साथ राजसी सूरा तथा नीम्बा ही थे। राजसी कांधल जी की पाग लेकर साहवा आये। जहा राणी देवडी जी पाग के साथ सती होगई जहा साहवा में ढाब पर अब भव्य मन्दिर बनाया गया है और कांधल जी की अस्ट धातु की अश्वारोही विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। लोग कांधल जी व राणी देवडी जी की पूजा करते है।  हरवर्ष इनके वंशज पोष कृष्ण 5 को रावत कांधल जी का बलिदान दिवस के रूप में मनाते है। इस कुल ने बार - बार ऐसे शूरवीरो को जन्म दिया है। जिन्होने अपनी वीरता त्याग बलिदान तथा अपने वचनों की खातिर अपने प्राण न्योछावर कर इस कुल का मान बढ़ाया है।

राजपूत काल में जोधपुर से नयी रियासत स्थापना हेतु कांधल और बीका का पराक्रम क्षेत्र। कांधल, खेत सिंह, लाल सिंह आदि जैसे राठौड़ वीर पुरुषो ने भटनेर, भादरा, रावतसर, जैतपुर, चूरू इत्यादि ठिकाने स्थापित किये। मालदेव के सेनापति कूंचा एवं जैतसिंह के साथ साहवा में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध की साक्षी रही यह पावन धरा जिस पर अंतिम युद्ध कांधल व सारंग खान के मध्य हुआ।

जय हो रावत कांधल जी महाराज

तीन और सत्तर वर्ष लिन्या वीर सुभट।

बारह बरसा थामली खड़ग वीर रजवठ ।।

कांधल (कांधलोत) राठौड़ो की ख्यात अनुसार पीढी क्रम ईस प्रकार है -

01. महाराजराजा यशोविग्रह जी (कन्नौज राज्य के राजा)

02. महाराजराजा महीचंद्र जी

03. महाराज राजा चन्द्रदेव जी

04. महाराजराजा मदनपाल जी (1154)

05. महाराज राजा गोविन्द्र जी

06. महाराज राजा विजयचन्द्र जी जी (1162)

07. महाराज राजा जयचन्द जी (कन्नौज उत्तर प्रदेश1193)

08. राव राजा सेतराम जी

09. राव राजा सीहा जी (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान1273)

10. राव राजा अस्थान जी (1292)

11. राव राजा दूहड़ जी (1309)

12. राव राजा रायपाल जी (1313)

13. राव राजा कान्हापाल जी (1323)

14. राव राजा जलमसी जी (राव जालण जी) (1328)

15. राव राजा चड़ा जी (राव छाडा जी) (1344)

16. राव राजा तिडा जी (राव टीडा जी) (1357)

17. राव राजा सलखा जी (1374)

18. राव बीरम जी (राव विरम देव जी)

19. राव चुंडा जी

20. राव रणमल जी (राव रिङमाल जी)

21. राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल)

1. बाघ जी - इनको ठिकाना चाचिवाद मेलूसर व् धान्धू था

2. राजसिंह - इन्हें रावत की पदवी मिली इनका ठिकाना रावतसर (राजासर) तथा जेत्तपुर मिला था।

3. अरिडकमलजी - भटनेर साहवा तथा भादरा था।

4. पंचायण जी - इनको ठिकाना कोहीना मिला था लेकिन अब इनके वंश का पता नही है।

5. सुजाण जी - इनको मेहरी का ठिकाना मिला था अब इनके वंश के बारे में जानकारी नही है।

6. सुरों जी - इनको ठिकाना बरजागसर मिला था इनके वंशज लुन्कर्णसर के पास गाव में बताते ह।

7. पूर्णमल जी - इनका ठिकाना बिल्ल्यु था ।

8. पर्वत जी - इनका भी ठिकाना बिल्ल्यु था।

9. नीमो जी - इनका ठिकाना गडाना था।

10. खीवा जी - इनका ठिकाना परस्नेऊ था। ये तथा इनके भाई सुरोजी महान योद्धा थे इन्होने राजू खोखर के साथ भयंकर युद्ध किया था। इनके वंश का भी पता नही है।

11. पीथोजी - इनकी जानकारी नही।

12. जगजीत - इनकी जानकारी नही।

13. अभ्यजित- इनकी जानकारी नही।

**********************************************************************

1- बाघ जी - बाघ जी का सम्पूर्ण वंश क्रम, बाघ जी के 3 पुत्र थे पुत्रो के नाम इसप्रकार है-

1 – बणीरजी – चाचिवाद - बणीर जी के वंशज बणीरोत कांधल कहलाते हैं

2 - नारायणदास जी – धमोरा

3 - रायमल जी - उडमाना (रोहतक)

बणीरजी इनके 11 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) मेघराज - ऊंटवालिया

(02) मेकर्ण - कानसर

(03) मेद जी - थिरियासर

(04) कल्लाजी -

(05) रूपजी -

(06) हरदास -

(07) हमीर -

(08) मालदेव:-चुरू

(09) अचलदास - घांघू, लाखाऊ

(10) महेशदास - घन्टेल, कडवासर

(11) जेतसी -

मालदेव चुरू - इनके 4 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) रामचन्द्र - बीनासर

(02) सांवल दास जी - चुरू

(03) नर्सिदास -

(04) दूदा जी -

सांवल दास जी चुरू - इनके 6 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) बलभद्र - चुरू

(02) चतुर्भुज - चुरू

(03) सूरसिंह - चलकोई

(04) माधोसिंह

(05) जयमल जी - इन्द्रपुरा

(06) कुम्कर्ण

बलभद्र चुरू - इनके 1पुत्र के नाम इस प्रकार है:--

(01) भीम सिह - चुरू

भीम सिह चुरू - इनके 5 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) तेजसिँह -

(02) प्रतापसिँह - लोहसना दोनों

(03) कुशलसिंह - चुरू

(04) भोजराज - दुधवा दोनों, देपालसर, मेघसर,

(05) सांवत सिह -

कुशलसिंह – चुरू- इनके 1 पुत्र के नाम इस प्रकार है:--

(01) इन्द्रसिंह - चुरू

इन्द्रसिंह चुरू- इनके 6 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

 (01) जुझारसिह - सिरसला

(02) संग्राम सिह - चुरू

(03) भोपसिह -

(04) ह्नुमन्सिह -

(05) जालम सिह -  

(06) नत्थुसिह – सोमसी

संग्राम सिह चुरू - इनके 3 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) चेन सिह - चुरू

(02) धीरत सिह - चुरू

(03) हरिसिह – चुरू, बुचावास, खंडवा

धीरत सिह चुरू - इनके 2 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) विजय सिह - सात्यूं

(02) सूरजमल – झारिया

हरिसिह चुरू, बुचावास, खंडवा - इनके 3 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) शिव सिह

(02) मानसिह

(03) सालम सिह

शिव सिह - इनके 6 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) पिर्थिसिह - चुरू

(02) भोपसिह - हर्सोलावा

(03) सगत सिह - हरपालसर

(04) चन्द्सी

(05) पदम सिह – खंडवा, हिगोनिय

(06) सोभागजी

पिर्थिसिह – चुरू - इनके 6 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) भ्रोसिह

(02) भवानी सिह

(03) ईश्वर सिह

(04) महेसदाश

(05) गोपाल जी

(06) कुशल सिह

****************************************************************

2 - राजसिंह - रावत कांधल जी - राव रिडमल जी -

कांधल जी के पुत्र राजसिंह के वंशज रावतोत कांधल कहलाते है। उनके मुख्य ठिकानों का वंश क्रम इसप्रकार हैं।

रावतसर का वंश

रावत राज सिह

रावत राधो दास

रावत जगतसिंह

रावत राजसिंह

रावत लखधिर सिह

रावत चतर सिह

रावत आनंद सिह

रावत जयसिह

रावत हिम्मतसिंह

रावत विजय सिह

रावत नार सिह

रावत जोरावर सिह

रावत रण जीत सिह

रावत हुकम सिह

रावत मान सिह

रावत तेज सिह

रावत घनस्याम सिह व् बलभद्र सिह

--------------------------

जेतपुर का वंश क्रम

रावत राजसी

मनोहर दास

रावत चन्द्र सेन

रावत देवीसिंह

रावत अर्जुन सिह

रावत सुर सिह

रावत स्वरूप सिह

रावत सरदार सिह

रावत ईश्वर सिह

रावत कान्ह सिह

रावत मूल सिह

रावत माधो सिह

रावत रुप सिह

----------------

**********************************************************************

3 - अरिडकमलजी - रावत कांधल जी के तीसरे पुत्र अरिडकमलजी जी के 6 पुत्र थे। जिसके नाम इसप्रकार से है-

साईंदास जी - खेतसिँह - अरिडकमलजी - रावत कांधल जी

(01) खेतसिँह - ठिकाना साहवा भटनेर भादरा

(02) सुलतान जी - भटनेर युद्ध में वीरगति ।

(03) देवीदास जी- भटनेर युद्ध में वीरगति ।

(04) सोरठ जी- भटनेर युद्ध में वीरगति ।

(05) शिव राम जी - ये पांचो भाई भटनेर में वीरगति को प्राप्त हुए।

(06) नानक जी - इनका ठिकाना गुनुदी व् तनोदिया (ग्वालियर)

साईं दासजी के 7 पुत्र हुए थे जिनको ठिकाना साहवा, भादरा मिला था, का पीढी क्रम इस प्रकार है-

खेतसी के पुत्र साईं दासजी के 7 पुत्र हुए, हुए जो इस प्रकार थे - 

(01) जयमल जी - ठिकाना साहवा

(02) कान सिंह जी (कान्ह जी) - ठिकाना गढ़ाणा (गुणा), गाज्वास

(03) ठाकर जी - (नि:संतान)

(04) खिवजी - (नि:संतान)

(05) खंगार जी - ठिकाना सिकरोड़ी

(06) जालण जी - (नि:संतान)

(07) लिछमण जी - (नि:संतान)

खेतसी के पुत्र साईं दासजी के सात पुत्र थे मगर सन्नतान सुख तीन पुत्रों जयमल जी, कान सिंह जी (कान्ह जी), खंगार जी को ही था, बाकी चार ठाकर जी, खिवजी, जालण जी, लिछमण जी नि:संतान थे और भटनेर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। उनका वँश बस यहीँ तक रहा । बाकी जो तीन पुत्र थे जयमल जी, कान सिंह जी (कान्ह जी), खंगार जी उनकी सन्तानेँ ईस प्रकार है।

जयमल जी को ठिकाना साहवा मिला था, का पीढी क्रम इस प्रकार है-

साईं दासजी के पुत्र जयमल जी को ठिकाना साहवा मिला था । इनके चार पुत्र हुए जो इस प्रकार थे – (साईं दासजी - खेतसी - अरिडकमलजी जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल))

(01) आसकरण जी - साहवा

(02) मनोहर दास - (नि:संतान), गुजरात के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

(03) अचलदास- (नि:संतान), गुजरात के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

(04) लिछ्म्न्दास- (नि:संतान), भाई गुजरात के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

जयमल जी के पुत्र आसकरण जी ठिकाना साहवा मिला था, का पीढी क्रम इस प्रकार है-

आसकरण जी साहवा - इनके 9 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(आसकरण जी - जयमल जी - साईं दासजी - खेतसी - अरिडकमलजी जी - राव कांधल जी (रावत कन्ध्ल))

(01) हरिसिह - साहवा

(02) जगदेव - (नि:संतान), गुजरात के युद्ध में काम आये।

(03) स्गत्जी - (नि:संतान), गुजरात के युद्ध में काम आये।

(04) किसनजी - (नि:संतान), गुजरात के युद्ध में काम आये।

(05) सवल्दास - (नि:संतान), गुजरात के युद्ध में काम आये। 

(06) रतन सिह - (नि:संतान), गुजरात के युद्ध में काम आये।

(07) जेतसी - (नि:संतान), गुजरात के युद्ध में काम आये।

(08) भोपाल जी – (नि:संतान), गुजरात के युद्ध में काम आये।

(09) सहस मलजी - (नि:संतान), सांवलसर, पतरोडा

आसकरण जी के नौ पुत्र थे मगर सन्नतान सुख एक पुत्र हरिसिंह को ही था, बाकी सभी नि:सन्तान थे।आसकरण जी के सात पुत्र (01) जगदेव (02) स्गत्जी (03) किसनजी (04) सवल्दास (05) रतन सिह (06) जेतसी (07) भोपाल जी गुजरात के युद्ध में (काम आये) वीरगति को प्राप्त हुए। सहस मलजी भीनि:सन्तान थे। उनका वँश बस यहीँ तक रहा बाकी जो हरिसिह साहवा थे हरिसिंह के दो पुत्र दोलत सिह व फतेह सिह हुए। फतेह सिह नि:सन्तान थे। दोलत सिह के 5 पुत्र हुए । 

दोलत सिह साहवा ठिकाना साहवा मिला था, का पीढी क्रम इस प्रकार है-

दोलत सिह को ठिकाना साहवा मिला तथा फतेह सिह नि:सन्तान थे। दोलत सिह बड़े वीर महत्वाकांक्षि व्यक्ति थे। इन्हें बीकानेर महाराजा ने धोखे से मरवा दिया। दोलत सिह के 5 पुत्र हुए जो इसप्रकार थे -   

(01) कीरत जी

(02) कुशल जी (ठिकाना साहवा, रेडी व सारण)

(03) जसवंत जी

(04) लाल सिह जी (ठिकाना भादरा)

(05) सांवत सिह - महलिया डुंगराणा

हरिसिंह के पुत्र सांवतसिह जी ने महाराजा गज सिह के भाई तारासिंह को मारकर अपना ठिकाना महलिया व डूंगराणा कायम किया। बाद में गज सिह ने डुंगराणा पर हमला कर तोपों से गोले बरसाकर गढ़ को नष्ट कर दिया तथा सांवत सिह कांधलोत गढ़ की रक्षा करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए। इनके पुत्र हिन्दुसिह जो कलाना के गढ़ में थे वहा भी बीकानेर फोज ने हमला कर गढ़ को लुट लिया हिन्दुसिह किसी तरह बचकर अपने चाचा लाल सिह के पास भादरा आये। इनका ठिकाना महलिया सांवलसर तथा जोरावरपूरा था।

लाल सिह जी (ठिकाना भादरा) मिला था, का पीढी क्रम इस प्रकार है-

लाल सिह - भादरा - इनके 7 पुत्रो के नाम इस प्रकार है:--

(01) अमर सिह - भादरा

(02) भादर सिह

(03) विजय सिह

(04) अनोप सिह - पिथ्रासर

(05) गुमान सिह - पिथ्रासर

(06) रामसिह - झाड्सर

(07) मोहन सिह - झाड्सर

प्रताप सिह जी (ठिकाना भादरा) मिला था, का पीढी क्रम इस प्रकार है-

लाल सिह के पुत्र अमर सिह के कोई पुत्र नहीँ था इसलिये झाङसर से चेनसिँह को गोद लिया जिनका पुत्र प्रतापसिँह हुवा जिनका वँश ईस प्रकार है इनके 4पुत्रो के नाम इस प्रकार है

(01) रण जीत सिह धुवाला

(02) चान सिह धुवाला

(03) बाघ सिह मानकसर

(04)) हमीर सिह मालासर

साईं दास जी के पुत्र खंगार सिह ठिकाना सिकरोड़ी का पीढी क्रम इस प्रकार है-

साईं दास जी के पुत्र खंगार सिह के 4 पुत्र हुए जो इसप्रकार थे –

(01) गोकुल दासजी:-- (ठिकाना सिकरोड़ी)

(02) नत्थू दासजी:-

(03) किशन दासजी

(04)) जसवंत सिह जी:- (ठिकाना भट्टू सिरसा)

किशन दासजी:- सिकरोड़ी इन्होने आसकरण जी के साथ मिलकर सिरसा के स्वामी राय जल्लू को मारकर उसके बारह गाँवों पर अधिकार कर लिया था।

किशन दासजी ठिकाना सिकरोड़ी का पीढी क्रम इस प्रकार है-

किशन दासजी के 3 पुत्र हुए जो इसप्रकार थे –

(01) दुर्जन साल जी

(02) इन्द्रभान जी

(03) रतन जी

दुर्जन साल जी:- के 2 पुत्र हुए जो इसप्रकार थे – 

(01) इन्द्रभान जी

(02) भोप जी

इन्द्रभान जी:- के 2 पुत्र हुए जो इसप्रकार थे –           

(01) रतन सिह पाटवी 

(02) चतर सिह जी

रतन जी:- के 5 पुत्र हुए जो इसप्रकार थे –          

(01) मुण सिह जी

(02) जालण सिह जी

(03) भूपाल जी

(04) हरिसिंह जी

(05) शेरसिह जी

मुण सिह के पुत्र सवाई सिह पुत्र हुए

सवाई सिह जी के 2 पुत्र हुए जो इसप्रकार थे –          

(01) हुक्म सिह जी

(02) बुद्ध सिह जी

हुक्म सिह जी के पुत्र खंग सिह जी हुए

खंग सिह जी के 2 पुत्र हुए जो इसप्रकार थे –           

(01) भीमसिंह जी

(02) भरत सिह जी

नाजम साहब भीमसिंह जी RAS अधिकारी थे। और सामाजिक गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर भाग लेते थे, भीमसिंह जी के चार पुत्र -

1 - विजय सिह (हेड मास्टर)

1.  राजेन्द्र सिह  (विजय सिह जी के पुत्र)

2.  महेंद्र सिह (विजय सिह जी के पुत्र)

2 - दोलत सिह (EO) 

1.  महीपाल सिह(दोलत सिह जी के पुत्र)

3 - लूण सिह

1. पवन सिह (लूण सिह जी के पुत्र)

2.  शक्ति सिह (लूण सिह जी के पुत्र)

4 - अजय सिह (विजय सिह जी के पुत्र)

                          

टिप्पणियाँ

  1. सावंत सिंह के पुत्र हिन्दू सिह
    हिन्दु सिह के 4 पुत्र हुए
    रूड़ सिह
    बूड़ सिह
    ब्रिज सिह
    रेवतं सिह
    ठिकाना मेलिया डुगंराणा
    रूड़ सिह के पुत्र मेघ सिह
    मेघ सिह के 3 पुत्र हुए
    बस्ती सिह
    पूर्ण सिह
    राम सिह
    बस्ती सिह बाजेकां
    पूर्ण सिह धीरवास
    राम सिह सांवसर
    में ठिकाना बनाया

    जवाब देंहटाएं
  2. जय श्री वीरवर रावत कांधल राठौड़
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
    🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

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