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महेचा राठौड़


महेचा राठौड़:-राव मल्लीनाथ जी (रावल मल्लीनाथ जी मालावत, जिला मालणी) के वन्शज महेचा राठौड़ कहलाते हैं।

12वीं शताब्दी में किसी समय राठौड़ राजवन्श के इतिहास में विरानीपुर प्रमुख गांव था। इस गांव का नाम मल्लीनाथ जी के नाम पर ही महेवा नगर पङा जो कि कालान्तर मेँ मेवा नगर हो गया।

मल्लीनाथ जी (रावल मल्लिनाथ मंडलीक) का जन्म मारवाड़ के रावल सलखा तथा माता जाणीदे के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में सन् 1358 में हुआ था। मल्लीनाथ जी एक कुशल शासक थे। उन्होंने सन् 1378 में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन को हरा कर अपनी वीरता का लोहा मनवाया था।

मल्लीनाथ जी ने लगभग सन् 1389 में संत उगमसी माही की शरण में जाकर उनको अपना गुरु बनाया तथा दीक्षा प्राप्त की। दस वर्ष बात 1399 में उन्होंने मारवाड़ में संतों का एक विशाल कीर्तन करवाया।

मल्लीनाथ जी निर्गुण निराकार ईश्वर में विश्वास करते थे तथा उन्होंने नाम स्मरण का पुरजोर समर्थन किया। लोकदेवता मल्लीनाथ जी के नाम पर ही जोधपुर के पश्चिम के भाग का नाम मालानी पङा जिसे आजकल बाड़मेर कहा जाता है। सन् 1399 में ही चैत्र शुक्ला द्वितीया को उनका देवलोकगमन हुआ।

राजस्थान लोक साहित्य में मल्लीनाथ जी का गीत सबसे लम्बा है।

हम जैसे-जैसे पुराने इतिहास से नये इतिहास की ओर बढते हैँ, तो कुछ पूर्वजों के नाम आगे वाली पीढी मेँ दूबारा आ जाते हैँ या उनसे बिल्कुल मिलते जुलते नाम आजाते हैँ सो भ्रम मेँ न पङे जैसे कि-

राव जोधा जी के पुत्र का नाम भी राव बीदा जी था, मगर रावल मल्लिनाथ जी (मंडलीक) के वँशजोँ मे भी इनके पुत्र रावल भोजराज जी के पुत्र भी रावल बीदा जी थे यानी रावल मल्लिनाथ जी के पोत्र (पोता) का नाम रावल बीदा जी उर्फ रावल बीदे जी था जो बिल्कुल अलग- अलग वंशज हैं। (रावल नीसल जी - रावल बीदा जी - रावल भोजराज जी - रावल मल्लिनाथ जी) थे।  

जोधा के पुत्र राव बीदा जी ईन रावल बीदा जी उर्फ रावल बीदे जी से अलग हि है।

राव से रावल की (पदवी) उपाधी धारण करने वाले राव मल्लिनाथ जी आगे चलकर रावल मल्लिनाथ जी कहलाये । व रावल मल्लिनाथ जी को “माला” के नाम से भी जाना जाता है। व इनके आगे की पीढी रावल कहलाये।

यह कहा जाता है कि एक सिद्ध साधू के आशीर्वाद से ही उन्होंने रावल (पदवी) उपाधी धारण की थी। इसी कारण उनके वँशजोँ की रावल (पदवी) उपाधी हैं।

रावल मल्लिनाथ जी (मंडलीक) का पुत्र राव जगमाल जी, रावल जगमाल जी ने महेवा पर अधिकार किया ईसलिये इनके वंशज महेचा राठौड़ कहलाते हैं, व रावल मल्लिनाथ जी (मंडलीक) के जोधपुर परगने में थोब, देहुरिया, पादरडी, नोहरो आदी इनके ठिकाने है | उदयपुर रियासत में नीबड़ी व् केलवा इनकी जागीर में थे ।

अपनी स्वतंत्रता, स्वाभिमान और वीर छक के लिए विख्यात रहे राव मल्लीनाथ जी बाडमेर जिले के महवानगर के शासक राव सलखा जी के ज्येष्ठ पुत्र थे। रूपांदे राव मल्लीनाथ जी की पत्नी थी। राव मल्लीनाथ जी और उनकी पत्नी रानी रूपादे को पश्चिमी राजस्थान में लोग सन्त की तरह पूजते हैं। राव जैत्रमल्ल जी और राव विरमदेव जी राव मल्लिनाथ जी के अनुज थे । जोधपुर, बीकानेर,किशनगढ़ ,रतलाम  आदि के राजा राव विरमदेव जी के पुत्र राव चुंडा जी की संतति में थे । और राव मल्लिनाथ जी के महेचा राठौड़ व बाहड़मेरा राठौड़ हैं।

इस प्रकार जोधपुर, बीकानेर, नारेशादी तथा अन्य राठौड़ ठिकानेदारों में महेचा टिकाई (बड़े) है। किसी समय बाडमेर मालानी के नाम से जाना जाता था। जसोल मालानी का प्रमुख क्षेत्र था। इस प्राचीन गांव (परगने) का नाम रावल मल्लीनाथ जी के नाम पर मालानी पङा था। बाड़मेर जिले के तिलवाडा गांव में राठौड़ राजवन्श के रावल मल्लीनाथ जी के नाम पर राजस्थान के सबसे बड़े पशु मेले का आयोजित किया जाता है। यह चैत्र बदी एकादशी से चैत्र सुदी एकादशी (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है।

बाड़मेर का महेवा क्षेत्र सलखा के पिता राव टीडा जी के अधिकार में था ।  विक्रम संवत 1414 में  मुस्लिम सेना का आक्रमण हुआ । राव सलखा जी को केद कर लिया गया । राव सलखा जी के केद से छूटने के बाद  विक्रम संवत 1422 में राव सलखा जी ने आपने श्वसुर राणा रूपसी पड़िहार की सहायता से महेवा को वापिस जीत लिया । विक्रम संवत 1430 में मुसलमानों का फिर आक्रमण हुआ, राव सलखा जी ने वीर गति पायी, राव सलखा जी के स्थान पर राव माला उर्फ राव मल्लीनाथ जी राज्य का स्वामी हुआ । इन्होने मुसलमानों से सिवाना का किला जीता और अपने आपने छोटे भाई जैतमाल को दे दिया । व् छोटे भाई वीरम को खेड़ की जागीरी दे दी । नगर व् भिरड़ गढ़ के किले भी मल्लिनाथ ने अधिकार में किये ।

राव माला उर्फ राव मल्लीनाथ जी शक्ति संचय कर राठौड़ राज्य का विस्तार करने और हिन्दू संस्कृति की रक्षा करने पर तुले रहे । उन्होंने मुसलमानों के आक्रमण को विफल किया । राव माला उर्फ राव मल्लीनाथ जी और उनकी रानी रूपादे , नाथ संप्रदाय में दिक्सीत हुए और ये  दोनों सिद्ध माने गए । मल्लिनाथ के जीवन  काल में हि उनके पुत्र जगमाल को गदी मिल गयी । जगमाल भी बड़े वीर थे । गुजरात का सुल्तान तीज पर इक्कठी हुयी लड़कियों को हर ले गया । तब जगमाल अपने योधाओं के साथ गुजरात गए और सुल्तान की पुत्री गीदोली का हरण कर लाया तब राठौड़ों और मुसलमानों में युद्ध हुआ । इस युद्ध में जगमाल ने बड़ी वीरता दिखाई । कहा जाता है की सुल्तान की बीबी को तो युद्ध में जगह - जगह जगमाल हि दिखयी दिया । 

प्रस्तुत दोहा

पग-पग नेजा पाड़ीया, पग -पग पाड़ी ढाल|

बीबी पूछे खान ने, जंग किता जगमाल ||

महेचा राठौड़ो का पीढी क्रम ईस प्रकार है-  

01 - रावल मल्लिनाथ जी (मंडलीक) - राव सलखा जी 

02 - रावल मेहा जी -- रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

03 - रावल भोजराज - रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

04 - रावल जगमाल जी - रावल मल्लिनाथ जी (मंडलीक) - राव सलखा जी

05 - रावल कुँपा - रावल बीदा - रावल भोजराज - रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव 

सलखा जी    

06 - रावल नीसल- रावल बीदा- रावल भोजराज - रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव 

सलखा जी 

07 - रावल वरसिंह- रावल नीसल- रावल बीदा- रावल भोजराज - रावल मल्लिनाथ 

 (मंडलीक) - राव सलखा जी

08 - रावल उगा जी - रावल वरसिंह- रावल नीसल- रावल बीदा- रावल भोजराज -   

रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

09 - रावल हापा- रावल वरसिंह- रावल नीसल- रावल बीदा- रावल भोजराज - रावल  

मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

10 - रावल मेघराज - रावल हापा- रावल वरसिंह- रावल नीसल- रावल बीदा- रावल

भोजराज - रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

11 - रावल पताजी - रावल मेघराज- रावल हापा- रावल वरसिंह- रावल नीसल-  

रावल बीदा- रावल भोजराज - रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

12 - रावल कल्ला - रावल मेघराज- रावल हापा- रावल वरसिंह- रावल नीसल-

बीदा- रावल भोजराज - मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

13 - रावल दूदा - रावल मेघराज- रावल हापा- रावल वरसिंह- रावल नीसल- रावल

बीदा- रावल भोजराज - रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

14 - रावल खींव्सी - रावल जगमाल - रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

15 - रावल भारमल - रावल जगमाल - रावल मल्लिनाथ (मंडलीक) - राव सलखा जी 

16 - रावल माँढण - रावल भारमल - रावल जगमाल - रावल मल्लिनाथ (मंडलीक)

– राव सलखा जी 

17 - रावल खीमुं - रावल भारमल - रावल जगमाल - रावल मल्लिनाथ

 (मंडलीक) -  राव सलखा जी 

मालानी प्रदेश के चौहटन स्थान के ठाकुर श्याम सिंह राठौड़ों की बाड़मेरा खांप के व्यक्ति थे । बाड़मेर जिले के गांव रामदेरिया के ठाकुर बलवंत सिंह जी महेचा की धर्म पत्नी मोतिकंवरजी के गर्भ से तनसिंह जी का जन्म अपने मामा के घर बैरसियाला गांव में हुआ था तनसिंह जी महेचा खांप के थे ।

राव केलण जी (केलन) ने राव मल्लीनाथ जी राठौड़ की पुत्री से विवाह किया था । और अपनी सगी बहिन कल्याण कँवर का विवाह कुमार राव जगमाल जी से कर दिया था । राव केलण जी की पुत्री कोडमदे राव रिडमल जी को ब्याही थी ।

बाड़मेरा में महेचा राठौड़ सदा से ही अपनी स्वतंत्र सत्ता का उपभोग करते रहे थे वे कभी जोधपुर राज्य से दब जाते और फिर अवसर आने पर स्वतंत्र हो जाते ।

रावल मल्लिनाथ जी उर्फ (रावल मल्लिनाथ जी उर्फ रावल मंडलीक जी) के वन्शज से खांप –

1 – महेचा = रावल मल्लिनाथ जी उर्फ (रावल मल्लिनाथ जी उर्फ रावल मंडलीक जी) के वन्शज से हैं।

2 - गोपेचा = कुँपा का के वन्शज से हैं।

3 – पोकरणा, उजर्ड (उजरङ) =जगमाल के वन्शज से हैं।

4 - कसूमलिया, आसाडेचा = अडवाल के वन्शज से हैं।

5 – फलसूँडिया = मेहा के वन्शज से हैं।

6 - बाड़मेरा, नरबाद = लूँका के वन्शज से हैं।

7 - बाटाङा, सगर (सगरिया) = बैरसी के वन्शज से हैं।

8 – धुमलिया = अजा जी के वन्शज से हैं।

9 – खाबडिया = रिङमाल के वन्शज से हैं।

10 – उगा = उगा के वन्शज से हैं।

11 - धारोइया, गाँगरिया = भारमल के वन्शज से हैं।

12 – कानसरिया (कान्हड़ देव) = कन्नाजी के वन्शज से हैं। रावल मल्लिनाथ के जी चाचा राव कान्हड़ देव थे।

13 – कोटङीया =खेतसी के वन्शज से हैं।

14 – जसोलिया = देपा जी के वन्शज से हैं।

15 – बड़ायच = बीका जी के वन्शज से हैं।

16 – हपाव्त = हापा जी के वन्शज से हैं।

18 – धठोई = 

19 – कागुरिया =

महेचा राठौड़ ख्यात अनुसार पीढी क्रम ईस प्रकार है -

1. महाराज राजा यशोविग्रह जी (कन्नौज राज्य के राजा)

2. महाराज राजा महीचंद्र जी

3. महाराज राजा चन्द्रदेव जी

4. महाराज राजा मदनपाल जी (1154)

5. महाराज राजा गोविन्द्र जी

6. महाराज राजा विजयचन्द्र जी (1162)

7. महाराज राजा जयचन्द जी (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193)

8. राव राजा सेतराम जी

9. राव राजा सीहा जी (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273)

10. राव राजा अस्थान जी (1292)

11. राव राजा दूहड़ जी (1309)

12. राव राजा रायपाल जी (1313)

13. राव राजा कान्हापाल जी (1323)

14. राव राजा जलमसी जी (राव जालण जी) (1328)

15. राव राजा चड़ा जी (राव छाडा जी) (1344)

16. राव राजा तिडा जी (राव टीडा जी) (1357)

17. राव राजा सलखा जी (1374)

18. राव माला उर्फ राव मल्लीनाथ जी

19. राव जगमाल जी - राव जगमाल जी - उस समय अहमदाबाद पर महमूद बेग का शासन था,उसके राज्य में पाटण नाम का एक नगर उसका सूबेदार हाथीखान | पाटण नगर के अधीन ही एक गांव का तेजसिंह तंवर नाम का एक राजपूत रहवासी । तेजसिंह नामी धाड़ायती,दूर तक धाड़े (डाके) डालता,उसके दल में तीन सौ हथियार बंद वीर राजपूत | उसके नाम से करोडपति और लखपति कांपते थे | वह धनि व्यक्तियों के यहाँ डाका डालता और धन गरीबों में बाँट देता । गरीब ब्राह्मणों की कन्याओं के विवाह में खर्च करता,चारण कवियों को दिल खोलकर भेंट देता ।धनि व्यक्तियों को देखते ही नहीं छोड़ता पर गरीबों का पूरा पालन करता ।

पाटण के सूबेदार हाथीखान और उसके बीच अक्सर तलवारें बजती रहती थी । एक दिन तेजसिंह अपने साथियों के साथ डाका डालकर बहुत दूर से आ रहा था, उसका दल काफी थका हुआ था, वह अपने दल के साथ आराम कर रहा था कि पाटण के सूबेदार हाथीखान ने अपने दलबल सहित उसे आ घेरा । कोई डेढ़ दो घड़ी तलवारे बजी और तेजसिंह अपने तीन सौ राजपूतों के साथ कट कर लड़ता हुआ मारा गया |

तेजसिंह और उसके सभी मृत राजपूत भूत बन गए । तेजसिंह की पत्नी अपनी पुत्री को लेकर अपने मायके चली गयी । पीछे से तेजसिंह का पुरा गांव उजड़ गया । उसके महल खंडर बन गए और उनमे रात पड़ते ही तेजसिंह के भूत बने साथी आ जाते,खाते,पीते,महफ़िल करते,दिन उगते से पहले चले जाते ।उस गांव में भूतों के डर के मारे कोई नहीं जाता ।एक दिन बात एक साधू उधर से गुजर रहा था शाम हो चुकी थी साधू ने तेजसिंह के खाली पङे महल देखे, साधू ने सोचा पुरा घर खाली पड़ा है रात को यहाँ ठहरना ही ठीक रहेगा । और साधू ने तेजसिंह के टूटे महल के एक कोने में अपना आसन जमा लिया । थोड़ी सी रात गुजरते ही साधू को नंगारे की आवाज सुनाई दी ,देखा तो तेजसिंह की सवारी आती दिखाई दी थोड़ी देर में तेजसिंह का काफिला आ पहुंचा, घोड़े, सरदार, गाने वाले, नौकर सब थे उस काफिले में । महल में जाजम,गलीचे बिछाए गए, तेजसिंह गदी पर बैठ हुक्का पीने लगे उसका दरबार लग चूका था महफ़िल शुरू हो गयी थी ।साधू एक कोने में बैठा ये सारा तमाशा देख रहा था कि तेजसिंह की नजर साधू पर पड़ी ।तेजसिंह बोला-

“बाबाजी प्रणाम!

इधर पधारिये डरने की कोई बात नहीं है।"

साधू डरते -डरते तेजसिंह के पास पहुंचे ।तेजसिंह ने आगे कहना शुरू किया -

" बाबाजी आप जो देख रहे है यह सब भूतों की माया है मैं तेजसिंह तंवर हूँ ,हाथीखान के हाथों मारे जाने के बाद मैं और मेरे तीन सौ राजपूत भूत योनी को प्राप्त हुए शायद भगवान की यही इच्छा थी,मैंने कई समझदारों से पूछा -उन्होंने बताया कि आपकी मनुष्य योनी की जो पुत्री है उसका ब्याह कर कन्यादान करने पर ही आपको भूत योनी से छुटकारा मिलेगा और आपकी गति हो जाएगी । इसलिए हे! साधू महाराज आप मेरा एक काम कर दीजिये, मैं आपको एक सन्देश दूंगा वह जाकर आप मेरे बताये व्यक्ति को दे देना ।"

बाबा बोले -" बच्चा तेरा सन्देश जरुर पहुँच जायेगा, बता सन्देश क्या है? और किसे देना है?”

तेजसिंह बोला- " बाबाजी यहाँ से पचास कोस दूर एक महुवा नामक गांव है वहां के मालिक मल्लिनाथ जी है उनका पुत्र जगमाल है वही मेरी बेटी के लायक वर है दुसरे किसी की तो भूत की बेटी से ब्याह रचाने की हिम्मत भी नहीं पङेगी, वह वीर पुरुष है आप तो उसे जाकर मेरा ये सन्देश दे देना कि यहाँ आकर मेरी बेटी से ब्याह करले ताकि मेरी गति हो जाये ।"

बाबाजी तो हाँ कर सो गए उन्हें भूतों ने उठाकर रात को महुवा गांव में छोड़ दिया, सुबह बाबा उठे और जगह का नाम पूछा तो उन्हें पता चला कि वे महुवा पहुँच चुके है, बाबाजी ने जगमाल को जाकर तेजसिंह का सन्देश दे पूरी बात बतायी ।

सन्देश पाकर जगमाल तो दो तीन बाद तेजसिंह के गांव उसके महलों में जा पहुंचा, रात होते ही तेजसिन्घ अपने दल के साथ आ पहुंचा, जगमाल को देख उसे बहुत खुशी हुई वह जगमाल से बांहों में लेकर मिला -

“कुंवरजी मुझे आप पर ही भरोसा था। मेरी बेटी से ब्याह रचाकर मुझे आप ही गति दिलवा सकते थे ।"

उसके बाद भूतनियां गयी और तेजसिंह की बेटी को सोते हुए उठा लायी । उसके बाद भूत और भूतनियों ने ब्याह की सभी रस्में शुरू की, लड़की को हल्दी लगायी, तेल चढ़ाया, ब्याह के कपडे पहनाएं, गीत गाये और तेजसिंह की बेटी को फेरों में बिठा दिया, तेजसिंह ने कन्यादान किया । तेजसिंह खुशी हुआ अब उसको भूत योनी से गति मिल जाएगी उस ने जगमाल से कुछ मांगने को कहा ।

जगमाल बोला- " आपका आशीर्वाद चाहिए, भगवान की दया से सब कुछ है मेरे पास, मुझे कुछ नहीं चाहिए पर राजपूत का बेटा हूँ अक्सर झगडे फसाद होते रहते है कभी बदला लेने तो कभी अपने नागरिको की रक्षा करने, इसलिए मैं चाहता हूँ जब किसी बड़े झगडे का काम पड़ जाये तो ये भूत बने आपके तीन सौ राजपूत मेरी मदद के लिए आ जाये ।"

तेजसिंह ने अपने सभी राजपूतों को इकठ्ठा किया और कहा- “मेरे वीरों! जिस दिन भी तुम्हे ये जगमाल याद करे इसकी मदद को हाजिर हो जाना जो नहीं आया मैं उसको नमक हराम समझूंगा ।"

सभी भूतों ने तेजसिंह के सामने कसम खाकर तेजसिंह को आश्वस्त कर दिया कि-" जगमाल के तीन ताली बजाते ही हम मदद को आ खड़े होंगे ।"

तेजसिंह की गति हो गयी । जगमाल अपनी वधु को लेकर घर आ गया ।सुख से राज करने लगा अपनी प्रजा की रक्षा में लग गया ।

हाथीखान की नजर एक बार जगमाल के गांव की औरतों पर पड़ गयी वह मौका देख रहा था कि कब उसके गांव की औरतों को उठाया जाय, एक दिन हाथीखान के जासूसों ने खबर दी कि जगमाल बीकमपुर के भाटियों से बैर लेने गया हुआ है और उसके गांव की महिलाऐं तीज की सवारी निकालने को इकठ्ठा होगी ।हाथीखान ने मौका देखा और तीज की सवारी के दिन गांव पर धावा बोल 140 औरतों को उठा ले गया | गांव के लोग हल्ला करते ही रह गए ।जब जगमाल आया और उसे घटना का पता चला तो उसके कलेजे में आग लग गयी ।उसी समय अपनी पगड़ी उतार सिर पर रुमाल बाँध लिया कि -जब तक हाथीखान से बदला नहीं लूँगा तब तक पगड़ी सिर पर नहीं रखूँगा ।

अब जगमाल को बदला लिए बिना चैन नहीं पर हाथीखान जैसे सक्षम से बदला लेना भी कोई आसान काम नहीं । जगमाल की बैचेनी देख उसके प्रधान भूपजी ने चुपचाप योजना बनायीं उन्होंने जगमाल के अस्तबल के घोड़ों को बढ़िया प्रशिक्षण दिया तेज दौड़ने का ।वो भी अहमदाबाद जाने वाले रास्तों पर । साथ ही भूपजी ने अपने दो जासूस अहमदाबाद में छोड़ दिए कि-" मौका देख मुझे वहां की खबर देना । हाथीखान तो सूबेदार है उससे क्या बदला लेना उसने जो हमारे साथ किया उसका सवाया जब तक नहीं किया तब तक हम कैसे राजपूत ?"

                                                              

चैत्र का महिना आया अहमदाबाद में गणगोर के मेले की तैयारी शुरू । महमूदबेग की कुंवारी पुत्री गिंदोली रोज अपनी सहेलियों के साथ गणगोर लेने जाए । ये बात जासूसों ने भूपजी तक पहुंचाई । भूपजी पच्चीस तीस सवार ले जगमाल को बिना बताये अहमदाबाद चले गए वहां मौका देख एक गिंदोली को उठा घोड़े पर बिठा लिया ।महमूदबेग के लोगों ने उनका पीछा किया पर उनके प्रशिक्षित घोड़ों की बराबरी नहीं कर सके । जाते-जाते भूपजी कह आये -

“मैं जगमाल का राजपूत हूँ, महुवा गांव से आपका सूबेदार हमारे गांव की औरते उठा लाया था उसकी का बदला लेने आपकी शहजादी को उठा ले जा रहा हूँ तुममे हिम्मत हो तो इसे छुड़ाकर ले जाना ।"

और भूपजी सीधे गिंदोली को ले महुवा आ पहुंचे उस वक्त जगमाल गणगोर की सवारी की रक्षा में चल रहा था । भूपजी ने वही जगमाल को सब कुछ बताकर गिंदोली उसे सोंपी -

"अहमदाबाद के बादशाह महमूदबेग की शहजादी हाजिर है । आपका बदला लेने के लिए मैं इसे उठा लाया हूँ ।"

जगमाल बड़ा खुश हुआ उसने गणगोर लेने जाने वाली महिलाओं से गीत गाने को कहा । महिलाओं ने गिंदोली व जगमाल के ऊपर गीत बनाकर गाये ।

उस दिन के बाद से ही राजस्थान में अब तक गणगोर के दो दिन पहले गिंदोली के गीत गाये जाते है ।

गिंदोली गुजरात सूं, असपत री आण।

राखी रंग निवास में,थे जगमल जुवान ।।

अब महमूदबेग एक बहुत बड़ी फ़ौज लेकर महुवा पर चढ़ आया,हाथीखान भी अपने दलबल के साथ था । उसकी विशाल फ़ौज ने महुवा के पास आकर डेरा लगा दिया । उधर उसके मुकाबले के खातिर जगमाल ने भी अपने चार हजार घुड सवार राजपूतों को युद्ध के लिए तैयार किया पर जगमाल ने सोचा कि बादशाह की इतनी बड़ी फ़ौज के आगे मेरे चार हजार आदमी कहाँ टिक पाएंगे उसे तेजसिंह के (भूत) 300 राजपूत याद आये कि वे फिर कब काम आयेंगे । जगमाल ने भूतों के लिए लापसी, घूघरी बनवाई,शराब की तुंगे राव दी, अफीम घोलकर बरतन भरवा दिए | रात होते ही जगमाल ने तो तीन ताली बजायी | तेजसिंह के 300 भूत तुरंत हाजिर हो गए । जगमाल ने उनकी मनुहार की ,खूब खिलाया.पिलाया.अफीम की मनुहारें की | भूतों ने खा पीकर मस्त हो हाथों में तलवारें ले जगमाल से युद्ध का हुक्म माँगा । जगमाल बोला- “हे भूत सरदारों! मेरी आपसे एक विनती है । आप जब भी दुश्मन पर तलवार का वार करें यह कहते जाएँ कि- ये "जगमाल की तलवार” आप तो वार करते जाना और यह वाक्य दोहराते जाना ।"

नशे में धुत मतवाले भूतों ने यही किया ,रात को ही बादशाह की फ़ौज पर टूट पड़े | ये जगमाल की तलवार और एक मुंड कट गिरे । जिधर भी सुनाई दे उधर ही सुनने को मिले "ये जगमाल की तलवार" और हाथी, घोङा, सिपाही कट-कट कर गिरने लगे । बादशाह की फ़ौज में भगदड़ मच गयी उसके सैनिक भागने लगे । भूतों ने पीछा कर उन्हें मारा वे वार करते और कहते "ये जगमाल की तलवार" इस तरह पीछा करते-करते भूतों ने बादशाह की फ़ौज को भगा दिया ।

बादशाह के सैनिको ने अहमदाबाद पहुँच बताया कि “वहां तो हमने अजब गजब तमाशा देखा जिधर भी सुना उधर ही जगमाल की तलवार का नाम सुनाई दिया ।

बीबीयाँ मिंयाँजी से पूछने लगी -" ऐसे कितने जगमाल थे? जो हर तरफ सुनाई दे रहा था कि -ये जगमाल की तलवार ।

पग -पग नेजा पाडिया, पग, पग- पग पाड़ी ढाल ।

बीबी पूछे खान ने, जग केता जगमाल ।।

टिप्पणियाँ

  1. I want to history of (सिणधरी महेचा)

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  2. भोपाल सिह कानासरीया राठौड आरंग

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  3. भूतो ने साधु से कोई संवाद नही किया था , भूतो की सभा थी कुपदे जी वहा राह चलते पहुंचे थे ,भूतो मलीनाथ जी के भाई कुपदे से कहा हम सभी जुझार है अंत समय में चौधरी के खेत में रखी पाणी की मुन् ( बड़ा घड़ा ) से पानी पिया जिसमे चिलम पीने की साफी भिगोई गई थी, जिससे हम सभी सदगती को प्राप्त न होकर अधोगति को प्राप्त हुए , अब आप यहां पढ़ ही गए हो तो ही अधोगति से निकलने में सहायक बने। कुंपजी के द्वारा यह पूछे जाने पर की क्या उपाय है उन्होंने बताया कि अगर हमारे कुल की कन्या के चंवरी का धुआं प्राप्त हो तो हम अधोगति से मुक्त हो जाएंगे, अगर आप तैयार हो ( शादी के लिए ) तो हम कन्या को लाने का इंतजाम करे । अंतत: कुपदे की शादी हुई भूतो ने दहेज में अभंग नगारा अरिगंज तलवार व कवलिया नामक घोड़ा दहेज में दिया :.... अभ्नग नगारो आपिय्यो अरिगंज खाग उठेट। कुंपा ने अश्व कवलियो भूतो दीनी भेट ।।
    गुजरात से तिजनियो के साथ शाहजादी गिंदोली को भी जगमाल द्वारा हरण कीए जाने पर हुए युद्ध में जगमाल के कहने पर मल्लीनाथ जी ने भाई कुम्पजी से कहा :.... कुम्पा दे अश्व कवलियो जुडसी जुद्ध जगमाल ।
    दहेज में कुंपदे को मिला था इस्तेमाल जगमाल ने किया था ।

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शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ शेखावत शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ़,नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है । शेखावत वंश परिचय वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है | भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतास गढ़ और रोहताश से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये |रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वाहन के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया |कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली | महात

माता राणी भटियाणी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास

~माता राणी भटियानी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास ।~ .....~जय जसोल माजीसा~...... माता राणी भटियानी ( "भूआजी स्वरूपों माजीसा" शुरूआती नाम) उर्फ भूआजी स्वरूपों का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ।भूआजी स्वरूपों उर्फ राणी भटियानी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था।राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था।राव कल्याणसिंह का पहला विवाह राणी देवड़ी के साथ हुआ था। शुरुआत मे राव कल्याणसिंह की पहली राणी राणी देवड़ी के संतान नही होने पर राव कल्याण सिंह ने भूआजी स्वरूपों( जिन्हे स्वरूप बाईसा के नाम से भी जाना जाता था) के साथ दूसरा विवाह किया।विवाह के बाद भूआजी स्वरूपों स्वरूप बाईसा से राणी स्वरुपं के नाम से जाना जाने लगी। विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया। राणी स्वरुपं के संतान प्राप्ति होने से राणी देवड़ी रूठ गयी।उन्हे इससे अपने मान सम्मान मे कमी आने का डर सताने लगा था।प्रथम राणी देवड

देवड़ा चौहानो की खापें और उनके ठिकाने

देवड़ा चौहानों की खापें और उनके ठिकाने देवड़ा :- लक्ष्मण ( नाडोल) के तीसरे पुत्र अश्वराज (आसल ) के बाछाछल देवी स्वरूप राणी थी | इसी देवी स्वरूपा राणी के पुत्र 'देवीरा ' (देवड़ा ) नाम से विख्यात हुए | इनकी निम्न खापें है | १.बावनगरा देवड़ा :- महणसी देवड़ा के पुत्र पुतपमल के पुत्र बीजड़ हुए बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण के वंशजों का ठिकाना बावनगर था | इस कारन लक्ष्मण के वंशज बावनगरा देवड़ा कहलाये | मेवाड़ में मटोड़ ,देवरी ,लकड़बास आदी ठिकाने तथा मालवा में बरडीया ,बेपर आदी ठिकाने | २.मामावला देवड़ा :- प्रतापमल उर्फ़ देवराज के छोटे पुत्र बरसिंह को मामावली की जागीर मिली | इस कारन बरसिंह के वंशज मामावला देवड़ा कहलाये | ३.बड़गामा देवड़ा :- बीजड़ के छोटे पुत्र लूणा के पुत्र तिहुणाक थे | इनके पुत्र रामसिंह व् पोत्र देवासिंह को जागीर में बड़गाम देवड़ा कहलाये | बडगाम जोधपुर राज्य का ठिकाना था | सिरोही राज्य में इनका ठिकाना आकुला था | ४.बाग़ड़ीया देवड़ा :- बीजड़ के क्रमशः लूणा ,तिहुणक व् सबलसिंह हुए | सबलसिंह के वंशज बागड़ीया कहलाते है | बडगांव आकन आदी इनके ठिकाने थे | ५. बसी देवड़ा