सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कनौज में राठौड़ वंश का इतिहास

कनौज मेँ राठौङ वंश का इतिहास

जयचंद्र - विजय चंद्र

हरीश चन्द्र - जय चन्द्र - विजय चन्द्र - गोविन्द चन्द्र - मदनपाल - चन्द्र देव – जयचंद्र

 (1170 - 94 ई॰) कन्नौज के राज्य की देख-रेख का उत्तराधिकारी उसके पिता विजय चंद्र ने अपने जीवन-काल में ही बना दिया था। विजय चंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। वह बड़ा वीर, प्रतापी और विद्धानों का आश्रयदाता था। उसने अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से कन्नौज राज्य का काफ़ी विस्तार किया था। जयचंद्र दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री से उत्पन्न हुआ था। जयचंद्र चंदेल राजा मदनवर्मदेव को पराजित किया था। जयचंद्र के समय में गाहडवाल साम्राज्य बहुत विस्तृत हो गया। इब्न असीर नाम लेखक ने तो उसके राज्य का विस्तार चीन साम्राज्य की सीमा से लेकर मालवा तक लिखा है। अंत में वह मुसलमान आक्रमणकारी मुहम्मद शहाबुदीन गौरी से पराजित होकर चँद॔वार की लड़ाई (इटावा के पास) में (वि.सं.1251) मारा गये थे उनकी मृत्यु के तुरंत बाद कन्नौज तुर्कों के कब्जे में चला गया। यह कन्नौज केराठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे।

सहदेव - ब्रहद्रथ - वसु - जरासंध – यल्ज्क्

सहदेव का वध द्रोणाचार्य के हाथों हुआ था।

जरासंध के पिता थे मगध नरेश महाराज यल्ज्क्,भगवान श्री कृष्ण की सहायता से पाण्डव पुत्र भीम ने जरासंध को द्वन्द युद्ध में मार दिया

मथुरा शासक कंस ने अपनी बहन की शादी जरासंध से की तथा ब्रहद्रथ वंश की ।

राठौङ वंश का इतिहास - संपूर्ण राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है।

कनौज और राठौड़ वंश

राठौङ 5वीँ शताब्दी मेँ कनौज आये इससे पहले इनका निवास अयोध्या था । राठौङ वंश का निकास भगवान राम के पुत्र कुश से माना जाता है। जिस समय भारत मेँ बाहरी मुस्लिम आक्रमणकारी आये उस समय भारत मेँ राजपूतों के छह वंश और छतीस कुल का शासन चल रहा था जिस मेँ चार प्रमुख बङे हिन्दू राजपूत राजकुल थे-

01 - दिल्ली तूअरोँ और चौहान का राज 

02 - कनौज राठौड़ो का राज

03 - मेवाड़ गुहिलों का राज

04 - अनहिलवाङ चावङा व सोलंकियो का।

कोह्चंद ने सावण बदी पंचमी विक्रम संवत 875 मेँ कनौज कि नीवं रखी (कनौज बसायी) कोह्चंद के बाद के शासक.....

01 - कोह्चंद

02 - मियाचंद

03 - सोभागचंद प्रथम

04 - दीपचंद

05 - सरेचंद

06 - सामचंद द्वितीय

07 - सोभागचंद

08 - अभेचंद

09 - इन्द्र बाबूजी

10 - करणजी

11 - तुगनाथजी

12 – भारिध जी

13 - दानेसुरा

14 - पुंज जी

15 - धनराज

16 - रत्न ध्वज (कमध्ज)

बिना शीश गजहते रत्ना ध्वज सशेर।

ताते बाजे कमधजपति इत्यादी राठौड़।। 

कन्नौज राज के समय राजा रत्नाध्वज ने शिश कटने के बाद बिना शिश एक हजार हाथीयो पर बैठे दुश्मनो को मार गिराया तब से राठौङ कमध्वज्या कहलाये...

सबसे कठोर रणनिती (युध का प्रचंड कौशल) राठौङो की है इसलिए रणबंका राठौङ कहलाये...

रज + पुत = रजपुत

रज = धरती माँ की कोख से पैदा होकर उसकी रज (कोख) की रक्षा करने वाला

पुत = बेटा

माँ, मातृ भौम धरती माँ की रक्षार्थ क्षत्रिय रजपुत कहलाये...

16 - किशनदेव

17 - मधुदुपीव

18 - कलवन

19 - रछजी

20 - सदतरछ्जी

21 - अभयचन्द

22 - जयचन्द

23 - प्रतापभाण जी

24 - माणकचन्द जी

25 - अगरचंद जी (इन्होने आगरा बसाया)

26 - बिडदाई सेणी

पुंज जी से राठौड़ों की पुराने समय में साढ़े बारह (12.5) साखा बताई जाती है -

राजा श्री पुंज जी के तेरह पुत्र हुये थे। जिनसे तेरह शाखायेँ चली जो इसप्रकार है

01 -- दानेसरा - धर्मविम्भ का, (मारवाड़)

02 - अभयपुरा- भनूद का, अभय पुरा नगर को बसाया जिसके कारण यह नाम पङा।

03 - कपोलिया (कुपालच्या) - वीर चन्द्र का दक्षिण गया।

04 - कोराह (कुरा) - अमर विजय के, कोराह नगर बसाया जिसके कारण यह नाम पङा।

05 - जलखेङिया (जालखडिया) - सुजान वनोद का,

06 - बोगीलन (बुगालिया) - पद्म का, बोगीलाना नगर पर विजय करने के कारण यह नाम पङा।

07 - एहर (अहरवा या अरवा) - एहर का,

08 - पारक (परेकुश) - बरदेव का पारक नगर बसाने से यह नाम पङा

09 - चँदेल- उग्र प्रभ का (चंदरपाल जी से)

10 - बीर (बिरपुरा) - मुक्तमणि का

11 - भूरिऔ (जवत्रराय) - भरुत का,

12 - खेरोदिया (खरुदा) - अल्लू कुल का, खैरुदा नगर बसाया जिसके कारण यह नाम पङा।

13 - तारापुरा (दहिया) - चाँद का, तारापुर, तेहर और बघलाना तीन नगर बसाये। पहला नगर तारापुर बसाया सो यह नाम पङा। (यह राज्य 1914 मेँ नष्ट हो गया) (ये आधी साखा मानी जाती है)

टिप्पणियाँ

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. राजा जयचंद राठौड़ कनौज किस शाखा से थे।

    जवाब देंहटाएं
  3. राजा जयचंद चंद्र वंश के गहरवार वंश के थे। काशी के दिवोदास के कुल में राजा यशोविग्रह एक प्रसिध्द राजा हुआ। इएसने काशी से गाहर जाकर एक राज्य स्थापित किया। यह गाहर अब गढ़वा नाम से प्रसिद्ध है। जो जिला पलामु विहार में है। गाहर में रहने से यह वंश गाहवाले फिर गाहड़वाल अब गहरवार कहलाने लगे। इसी वंश में प्रसिध्द राजा महिचन्द था।इसके दौ पौत्र थे मदनपाल और चंद्रदेब से दो शाखाए चली। मदनपाल गहरवार के वंशज कन्नौज जाकर गहरवार राज्य का स्थापित किया। मदनपाल के वंशा में गोविचन्द प्रसिध्द राजा हुआ गोविचन्द के वंश में राजा रट्टपाल या रत्तनाम हुआ जो रट्ट नाम से एक नई शाखा चलाया रट्ट के वंशज रट्टवर फिर राष्टवर और बाद में राठौर कहे जाने लगे इस राठौर वंश का राज्य 19 पीढ़ी राजा जैचंद तक रहा बाद में जयचन्द का पौत्र सिया जी राजस्थान में जाकर मारवाड़ में राज्य स्थापित किया जो अब तक है। जैचंद का एक कुटुम्बी भाई मानिकचंद था जो गोविचन्द के वंशजो की एक शाखा से था मानिक चंद के 20 वीं पीढ़ी पहले के पूर्वज कन्नौज से कड़ा में चले आये। जहा मानिकचंद ने अपने नाम से मानिकपुर राज्य स्थापित किया। इस वंश का राज्य विंध्याचल क्षेत्र तक फैला था। मानिकचंद के कुल में हरदेव, मलदेव, भीष्मदेव,भरथदेव,सोमदेव,चाहिरदेव्,रूपदेव,माहुलदेव,धर्मार्कदेव,मित्रदेव,पूरण मल, मालदेव,अलखदेव,जय राजदेव,तथा गुन्यदेव,आदि सोलह पीढ़ियों तक राज्य किया।गुन्यदेव के दो पुत्रों में राज्य बट गया राजा उग्रसेन अपनी राजधानी कांतिअ में बनाकर विजय पुर के राजा हुए।और भोजराय ने अपनी राजधानी मांडा में बनाकर वहां का राजा हुए।

    जवाब देंहटाएं
  4. गढ़वाल राठौड़ एक ही हैं
    पर राठौड़ सुर्यवंशी
    और गढ़वाल चंद्रवंशी कैसे हैं बता ये ओ पहले
    और गढ़वाल की सारी शाखाये चंद्रवंशी है
    ऐ कैसे हो सकता है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Gaharwar bhi suryavanshi hn ...ye kbhi chandravanshi huye hi nhi...detail dekh bhai

      हटाएं
    2. गहड़वाल और गढ़वाल दोनो अलग अलग है

      हटाएं
    3. Ha mere par dada bhi gadwali rathore hai panna Singh ji lakshman Singh ji Lekin ab hum rajasthan me aa gye lekin hamare purwaj wahi ke hai . Isko bataoo

      हटाएं
  5. 1. कोह्चंद जी के पूर्वजों के बारे में बताओ। अगर राठौड़ राष्ट्रकूटों से संबंध रखते है तो इनका (कोह्चंद जी) का उनसे क्या संबंध है। कृपया बताएं।

    जवाब देंहटाएं
  6. यह जानबूझकर गलत इतिहास आपने लिखा है,,, कौन हो call me 7079491536,,,
    जानबूझकर राजपूत इतिहास को गलत तरीके से पेश कर रहे हो,,, थोड़ा पहचान बताओ तो अपना ,,,कौन हो???

    जवाब देंहटाएं
  7. काशी से जिसने भी शाखाएं निकली है वह चन्द्र वंश की शाखाएं है पुरुरवा के वंश में काश्य राजा हुए जिसने काशी वसाई जो पुराणों में भी वर्णित है। भला काशी से निकली हुई शाखाएं सूर्य वंश कैसे हो सकता है। मेरा पहचान पूछते हो तो मेरा पचान जितेंद्र सिंह रघुवंशी वाराणसी जिला का कटेहर परगना का रहने वाला हूं। पूरी जानकारी आप को चाहिए तो रघुवंश वंशावली वाराणसी या रघुवंशी राजपूत वाराणसी चर्च करके गूगल पे ले सकते हो धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप के अनुसार पुज के उग्रप्भ से चदेल शाखा हुई। यही बात रावो की बहीयो मै भी है ।तो क्या महोबा के चंदेल शासक भी राष्ट्र कुट वशं से है।

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ शेखावत शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ़,नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है । शेखावत वंश परिचय वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है | भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतास गढ़ और रोहताश से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये |रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वाहन के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया |कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली | महात

माता राणी भटियाणी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास

~माता राणी भटियानी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास ।~ .....~जय जसोल माजीसा~...... माता राणी भटियानी ( "भूआजी स्वरूपों माजीसा" शुरूआती नाम) उर्फ भूआजी स्वरूपों का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ।भूआजी स्वरूपों उर्फ राणी भटियानी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था।राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था।राव कल्याणसिंह का पहला विवाह राणी देवड़ी के साथ हुआ था। शुरुआत मे राव कल्याणसिंह की पहली राणी राणी देवड़ी के संतान नही होने पर राव कल्याण सिंह ने भूआजी स्वरूपों( जिन्हे स्वरूप बाईसा के नाम से भी जाना जाता था) के साथ दूसरा विवाह किया।विवाह के बाद भूआजी स्वरूपों स्वरूप बाईसा से राणी स्वरुपं के नाम से जाना जाने लगी। विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया। राणी स्वरुपं के संतान प्राप्ति होने से राणी देवड़ी रूठ गयी।उन्हे इससे अपने मान सम्मान मे कमी आने का डर सताने लगा था।प्रथम राणी देवड

देवड़ा चौहानो की खापें और उनके ठिकाने

देवड़ा चौहानों की खापें और उनके ठिकाने देवड़ा :- लक्ष्मण ( नाडोल) के तीसरे पुत्र अश्वराज (आसल ) के बाछाछल देवी स्वरूप राणी थी | इसी देवी स्वरूपा राणी के पुत्र 'देवीरा ' (देवड़ा ) नाम से विख्यात हुए | इनकी निम्न खापें है | १.बावनगरा देवड़ा :- महणसी देवड़ा के पुत्र पुतपमल के पुत्र बीजड़ हुए बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण के वंशजों का ठिकाना बावनगर था | इस कारन लक्ष्मण के वंशज बावनगरा देवड़ा कहलाये | मेवाड़ में मटोड़ ,देवरी ,लकड़बास आदी ठिकाने तथा मालवा में बरडीया ,बेपर आदी ठिकाने | २.मामावला देवड़ा :- प्रतापमल उर्फ़ देवराज के छोटे पुत्र बरसिंह को मामावली की जागीर मिली | इस कारन बरसिंह के वंशज मामावला देवड़ा कहलाये | ३.बड़गामा देवड़ा :- बीजड़ के छोटे पुत्र लूणा के पुत्र तिहुणाक थे | इनके पुत्र रामसिंह व् पोत्र देवासिंह को जागीर में बड़गाम देवड़ा कहलाये | बडगाम जोधपुर राज्य का ठिकाना था | सिरोही राज्य में इनका ठिकाना आकुला था | ४.बाग़ड़ीया देवड़ा :- बीजड़ के क्रमशः लूणा ,तिहुणक व् सबलसिंह हुए | सबलसिंह के वंशज बागड़ीया कहलाते है | बडगांव आकन आदी इनके ठिकाने थे | ५. बसी देवड़ा