सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

महान सम्राट श्री पृथ्वीराज चौहान जी

नाम-महान सम्राट श्री पृथ्वीराज चौहान जी
जन्म- 24 अक्टूबर 1148 ई. जन्म भूमि- अजमेर, राजस्थान (तारागढ किला)
पुण्य तिथि- बसंत पंचमी, फाल्गुन माह 1192 ई.
पिता-महाराज श्री सोमेशवर राज चौहान जी
माता- महारानी कमलावती बाई जी
राज्य- अजमेर से दिल्ली
शासन काल- 1166-1192 ई.
शासन अवधि- 27 वर्ष
वंश- अग्नि वंश
राजवंश- चौहान
राजघराना- राजपूताना
धार्मिक मान्यता- सनातन धर्म
युद्ध- तराईन का युद्ध
राजधानी- अजमेर
पूर्वाधिकारी- महाराज श्री सोमेशवर राज चौहान जी उत्तराधिकारी- कुँवर रेणु राज चौहान जी
कुलदेवी- कालिका, चामुणडा, शाकमभरी, आशापुरा माता
कुलदेवता- शंकर जी
ईषटदेव- अचलेशवर महादेव
अन्य जानकारी:-
पृथ्वीराज चौहान बचपन से तीर कमान, भाला, तलवार बाजी ओर शब्द भेदी विधा मे निपुण थे।
इनके बचपन के मित्र थे निठुर्रय, जैतसिंह, कविचंद्र, दहिरामभराय, हरसिंह, पंजजुराय, सरंगराय,कनहाराय, सखुली, संजमराय इनके साथ शुरता के खेल खेला करते थे ।
पृथ्वीराज चौहान ने 13 वर्ष कि आयु मे बिना किसी हथियार के जगल मे खुंखार शेर को मार दिया ।
16 वर्ष कि आयु मे अपने पिता के वचन का मान रखने के लिये नाहरराय को हरा कर मांडवकर पर विजय प्राप्त कि ओर जमावती विवाह कर अजमेर ले आये।
पृथ्वीराज चौहान ने अपने घनिष्ठ मित्र राजकुंवर समर सिंह कि युद्ध बहुत सहायता कि ओर चितोड़ पर आये संकट को दूर किया।
पृथ्वीराज चौहान के बचपन के मित्र कानहा ने 7 भाईयो का शिश तलवार के एक वार से अलग कर दिया उन सातो ने भरे दरबार मे अपनी मुछो पर ताव दिया था।
पृथ्वीराज चौहान से गौरी का पहला युद्ध सारूंड नामक जगह पर हुआ जिसमें गौरी के 20 हजार सैनिक ओर अनेको सामंत मारे गये ओर पृथ्वीराज चौहान के 1300 सैनिक ओर 5 सामंत मारे गये पृथ्वीराज चौहान ने जीत प्राप्त कि ।
इस युद्ध मीर हुसैन ने 1000 मुस्लिम सेना एकत्र कर पृथ्वीराज चौहान का साथ दिया ओर 300 मुस्लिम सैनिक 200 राजपूत सैनिको के साथ वीरगति को प्राप्त हुये।
एक युद्ध मे जब पृथ्वीराज चौहान घायल भूमि पर पडे थे तब चौहान को उनके बचपन के मित्र संजमराय पूंडीर ने अपने शरीर का एक-2 हिस्सा काट कर गिददो को खिलाया और अपने मित्र, अपने महाराज के प्राण बचाये।
पृथ्वीराज चौहान को महाराज श्री अनंगपाल तोमर जी ने समबंत 1168 मार्गशीर्ष शुक्ल 5 गुरुवार को दिल्ली के राज सिंघासन पर बैठाया।
पृथ्वीराज चौहान को खटटू वन बहुत सारा खजाना हाथ लगा जिसे चौहान के घनिष्ठ मित्र चितोड़ के राजा समर सिंह कि मदद से निकाला ।
पृथ्वीराज चौहान ओर रानी संयोगिता का प्रेम तो किसी से छुपा नही इनकी प्रेम गाथा तो आज भी सुनी और कही जाती है।
16 बार हार कर 17वी बार जब गौरी पृथ्वीराज चौहान को पकड कर गजनी ले गया तब चौहान ने कई बार वहाँ से भागने कि कोशिश कि लेकिन ना कामयाब रहे।
एक दिन गौरी ने पृथ्वीराज चौहान से शिश झूकाने ओर आँखें निची करने को कहा जब चौहान ने मना किया तो गौरी ने गरम लोहे कि सलाखो से पृथ्वीराज चौहान की आँखें फूडवा दि।
पृथ्वीराज चौहान ने अपने अपमान का बदला कविचंद्र के साथ मिलकर शब्द भेदी बाण विधा का उपयोग कर भरे दरबार मे गौरी को मार कर लिया।
"चार बांस चौबीस गज अंगुल अषट प्रमाण ।। ता ऊपर सूलतान अब मत चूको चौहान"

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ शेखावत शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ़,नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है । शेखावत वंश परिचय वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है | भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतास गढ़ और रोहताश से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये |रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वाहन के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया |कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली | महात

माता राणी भटियाणी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास

~माता राणी भटियानी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास ।~ .....~जय जसोल माजीसा~...... माता राणी भटियानी ( "भूआजी स्वरूपों माजीसा" शुरूआती नाम) उर्फ भूआजी स्वरूपों का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ।भूआजी स्वरूपों उर्फ राणी भटियानी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था।राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था।राव कल्याणसिंह का पहला विवाह राणी देवड़ी के साथ हुआ था। शुरुआत मे राव कल्याणसिंह की पहली राणी राणी देवड़ी के संतान नही होने पर राव कल्याण सिंह ने भूआजी स्वरूपों( जिन्हे स्वरूप बाईसा के नाम से भी जाना जाता था) के साथ दूसरा विवाह किया।विवाह के बाद भूआजी स्वरूपों स्वरूप बाईसा से राणी स्वरुपं के नाम से जाना जाने लगी। विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया। राणी स्वरुपं के संतान प्राप्ति होने से राणी देवड़ी रूठ गयी।उन्हे इससे अपने मान सम्मान मे कमी आने का डर सताने लगा था।प्रथम राणी देवड

देवड़ा चौहानो की खापें और उनके ठिकाने

देवड़ा चौहानों की खापें और उनके ठिकाने देवड़ा :- लक्ष्मण ( नाडोल) के तीसरे पुत्र अश्वराज (आसल ) के बाछाछल देवी स्वरूप राणी थी | इसी देवी स्वरूपा राणी के पुत्र 'देवीरा ' (देवड़ा ) नाम से विख्यात हुए | इनकी निम्न खापें है | १.बावनगरा देवड़ा :- महणसी देवड़ा के पुत्र पुतपमल के पुत्र बीजड़ हुए बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण के वंशजों का ठिकाना बावनगर था | इस कारन लक्ष्मण के वंशज बावनगरा देवड़ा कहलाये | मेवाड़ में मटोड़ ,देवरी ,लकड़बास आदी ठिकाने तथा मालवा में बरडीया ,बेपर आदी ठिकाने | २.मामावला देवड़ा :- प्रतापमल उर्फ़ देवराज के छोटे पुत्र बरसिंह को मामावली की जागीर मिली | इस कारन बरसिंह के वंशज मामावला देवड़ा कहलाये | ३.बड़गामा देवड़ा :- बीजड़ के छोटे पुत्र लूणा के पुत्र तिहुणाक थे | इनके पुत्र रामसिंह व् पोत्र देवासिंह को जागीर में बड़गाम देवड़ा कहलाये | बडगाम जोधपुर राज्य का ठिकाना था | सिरोही राज्य में इनका ठिकाना आकुला था | ४.बाग़ड़ीया देवड़ा :- बीजड़ के क्रमशः लूणा ,तिहुणक व् सबलसिंह हुए | सबलसिंह के वंशज बागड़ीया कहलाते है | बडगांव आकन आदी इनके ठिकाने थे | ५. बसी देवड़ा