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राव सिंहजी से राठोड़ो की अलग शाखायें


जैसा कि राजस्थान मेँ राव सिहाजी से ही राठौङ वंश का जन्म और विस्तार हुआ । मगर कुछ अलग-अलग जगह भी राठौङ राजपूत रहते थे जो इसप्रकार है।
01 - गहरवाल - गहरवाल राजपूत राठौड़ो की पुरानी शाखा है। पूर्व मेँ गहरवाल काशी और कनौज के राजा रहेँ हैँ। आज भी इनके बहुत से वंशज हैँ। कांतित ठिकाना रहा है, और है। चंदेला और बूंदेला गहरवाल कि ही शाखा है।
गहरवाङ का मूल स्थान प्राचीन काशी राज्य था। इनका महान पूवर्ज खोरताज देव था जिसकी सातवीँ पिढी मेँ जसौन्दा हुआ। जिसने विँध्यवासनी मेँ महान यज्ञ किया और अपनी सन्तानोँ को बुन्देला पदवी प्रदान की। फिर बुन्देला ने गहरवाल कि पदवी धारण की ईसमेँ कई शाखाँये हैँ - कालंजर, मोहिनी, महोबा, नगरोँ पर अधिकार किया जो बुन्देलखण्ड के मुख्य शहर हैँ।  

02 – बूंदेला - बूंदेला गहरवाल राठौङ की एक शाखा है। पंचमसिँह ने विँध्यावासिनि देवी से वरदान पाया उसकी सन्तान बूंदेला कहलायी।

कुछ लोग लिखते हैं कि गहरवाल के "खासवाल" बूंदेला है। जो ठिक नहीँ बहिभाटोँ द्वारा लिखी गयी ख्यात राठौङ वंश के इतिहास मेँ पेज नं.36 पर बहिभाट कि कलम से बिल्कुल साफ-साफ लिखा है और प्राचिन इतिहास छत्रप्रकाश मेँ भी लिखा है कि, एक राजपूत को विश्वासघात यानि दगा करके मारने पर इनको बिरादरी से अलग करदिया था। और अलग किये गये समुह (परिवार) को बांधा कहा जाने लगा।

आगे चलकर चहुँवाण और पंवार व कुछ अन्य राजपूत ईन से शादी-विवाह बेटी व्यवहार करने लगे और ये लोग जहाँ रहने लगे उसका नाम बुंदेलखंण्ड इन्ही के नाम से पङा। चरखारी, अजयगढ, बिजावर, पन्ना, ओरछा, दतिया, समथर, इनके राज्य थे तथा बावनी, सरेला, जेतपुर, टीकागढ, सरीला, और जिगनी इनके ठिकाने रहेँ हैँ।
03 – रेकवार - रेकवार ये राठौड़ो से निकले हैँ पहले गुजरात मेँ रहते थे और गुजरात से 15वीँ शताब्दी मेँ ये लोग अवध मेँ आगये। ये राजपूत भी नीम के पेङ की दाँतून नहीँ करते हैँ। तथा दुआबा के राजपूत कि तरह सम्बन्ध मेँ अभिमान भी करते हैँ।

04 – गढवार - यह गहरवाल कि ही शाखा है।
05 - चंदेल - इनको छतीस कुल राजवंशो मेँ माना जाता है। प्रथवीराज चंदेलो को हराकर हि बुन्देलोँ कि तरफ बढा था। बुन्देला मनवीर का प्रभूत्व काल 1200ई. है। ईसके तेरहवीँ पिढी मेँ मधुकर शाह हुआ जिसने बेतवा तट पर ओरछा नगर बसाया। उस का पुत्र था वीरसिँह देव जो छोटे-छोटे बुन्देला राज्योँ का स्वामी बन गया और पर्याप्त शक्ति अर्जित कर अकबर के मित्र महान इतिहासकार व अर्थशासत्री अबुल फजल को मरवा कर इतिहास मेँ बदनाम भी हुआ।
06 - हतूँडिया राठौङ - हतूँडी (हस्तकुँडी) ग्राम प्राचिन समय के जोधपूर राज्य के गोडवाङ प्रान्त मेँ रहने से हतूँडिया राठौङ कहलाये। इनके कुछ वंशज यहाँ से अलग होकर आबु व उदयपुर के पास रहने लगे उदयपुर व उसके आस पास जनानी, डोढी आदि के राजपूत इसी वंश के हैँ।
ये राठौङो से अलग होकर मुसलमान बन गये ।
01 - लाल खानी
02 - अहमद खानी
03 - व्रिक्रम खानी
04 - कमाल खानी
05 - राय खानी
06 - खङेरिया ये राठौङो से अलग होकर मुसलमान बन गये ।
     

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