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वीर योध्दा राठौर कुम्पावत और जेतावत

गाथा मारवाड़ के वीर योद्धा कुंपा और जेता की जिनसे क्रमशः राठोड़ो की कुम्पावत और जेतावत खापें चली

शेरशाह सूरी ने धोखे से जिता था 1544 का गिरी सुमेल युद्ध (पाली)

शेरशाह सूरी ने युद्ध करने से पहले कूटनीति का प्रयोग किया ओर मालदेव के सैनापतियों जैता ओर कूंपा के ड़ेरो में 10-10 हजार रूपये ड़लवाकर मालदेव के ड़ेरे के सामने एक पत्र ड़लवाया जिसमें लिखा था कि
" मालदेव तुम्हारे दोनों बहादुर सैनापतियों को मैंने 10-10 हजार में खरीद लिया है । सुबह होते हि वो तुम्हा साथ छोड़कर मेरे साथ मिल जाएंगे।"
मालदेव सवेरे जल्दी उठा तो यह पत्र मिला उसने पढ़ा। पढ़ने के बाद उसने जैता ओर कूपां के ड़ेरो की तलाशी करवाई तो बाहर ही 10-10 हजार मिले। मालदेव को विश्वास हो गया कि दोनों ने मेरे साथ गद्दारी की है मालदेव उन्हें छोड़कर वापस जोधपुर चला गया।
सुबह जैता व कूंपा उठे तो उन्हें पता चला कि उनके उपर गद्दारी का एक अमिट कलंक लग सुका हैं ।उस कलंक को मिटाने के लिए जैता ओर कूपा के पास कम सैना होते हुए भी उन्होंने शेरशाह पर आक्रमण कर दिया ।दोपहर तक शेरशाह की सैना हार रही थी ।दोपहर में नमाज अदा करने के लिए युद्ध को कुछ समय के लिए रोका गया । शेरशाह सूरी नमाज अदा कर खुदा की दुआ में लग गया कि किसी तरह युद्ध में मेरी विजय हो।
शेरशाह सूरी का एक जलालखाँ जलवानी नामक सैनापति उसी समय शाही सेना लेकर आ गया।शाम होते- होते जैता ओर कूंपा लड़ते।हुए वीर गति को प्राप्त हो गए। शेरशाह इस युद्ध में हारता - हारता जिता था।अतः जीतने पर सूरी के मुँह से अकस्मात् ही निकल गया कि "एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए में हिंदूस्थान की बादशाह खो देता"
व जैता ओर कूंपा की वीरता को देखकर सूरी ने कहां,
" काश जैता ओर कूंपा जैसे वीर मेरे पास होते तो मैं आज एक अकेला हिंदूस्थान का शासक होता ।
ये गिरी सुमेल का जो युद्ध हुआ जो पाली जिले के जैतारण नामक स्थान पर 1544 में हुआ था।

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