कुम्पावत राठौड़ - मंडोर के राव रणमल जी (राव रिङमाल जी) के पुत्र राव अखेराज जी (राव अखैराज जी) के दों पुत्र राव पंचायण जी (पंचायण) व् महाराज (मेहराज) हए । राव महाराज जी (मेहराज) के पुत्र रावकुम्पा जी के वंशज कुम्पावत राठौड़ कहलाये। ठिकाना असोप जोधपुर था ।
राव कुम्पा जी के 8 पुत्र थे इन के पुत्रोँ से सात खाँपेँ हुई है-
01 - मांडण (राव कुम्पा जी के बड़े पुत्र) -माँडण के पुत्र खीवकरण ने कई युद्ध में भाग लिया वे बादशाह अकबर के मनसबदार थे।
02 - प्रथ्वीराज (राव कुम्पा जी के दुसरे पुत्र)
03 - इश्वरदास
04 - उदयसिँह (राव कुम्पा जी के चोथे पुत्र)
05 - रामसिंह
06 - सूरसिंह
07 - महासिंह
08 - तिलोक सिंह (राव कुम्पा जी के सबसे छोटे पुत्र) - तिलोक सिंह के पुत्र भीमसिंह को घणला का ठिकाना
01. महेशदासोत कुम्पावत:- विक्रमी संवत 1641 में बादशाह ने सिरोही के राजा सुरतान को दंड देने मोटे राजा उदयसिँह को भेजा । इस युध् में महेशदास के पुत्र शार्दूलसिंह ने अद्भुत पराक्रम दिखाया और वहीँ रणखेत में रहे । अतः उनके वंशज भावसिंह को 1702 विक्रमी में कटवालिया के अलावा सिरयारी बड़ी भी उनका ठिकाना था । एक-एक गाँव के भी काफी ठिकाने थे ।
02. इश्वरदासोत कुंपावत:- कुँपा के पुत्र इश्वरदास के वंशज कहलाये । इनका मुख्या ठिकाना चंडावल था । यह हाथ कुरब का ठिकाना था । इश्वरदास के वंशज चाँदसिंह को महाराजा सूरसिंह ने 1652 विक्रमी में प्रदान किया था । 1658 ईस्वी के धरमत के युद्ध में चाँदसिंह के पुत्र गोर्धनदास युद्ध में घोड़ा उठाकर शत्रुओं को मार गिराया और स्वयं भी काम आये । इस ठिकाने के नीचे 8 अन्य गाँव थे । राजोसी खुर्द, माटो, सुकेलाव इनके एक-एक गाँव ठिकाने है ।
03. मांडनोत कुम्पावत:- कुँपा जी के बड़े पुत्र मांडण के वंशज माँडनोत कहलाये । इनका मुख्या ठिकाना चांदेलाव था । जिसको माँडण के वंशज छत्र सिंह को विजय सिंह ने इनायत किया । इनका दूसरा ठिकाना रुपाथल था | जगरामसिंह को विक्रमी में गजसिंह पूरा का ठिकाना भी मिला । 1893 में वासणी का ठिकाना मानसिंह ने इनायत किया । लाडसर भी इनका ठिकाना था । यहाँ के रघुनाथ सिंह , अभयसिंह द्वारा बीकानेर पर आक्रमण करने के समय हरावल में काम आये । जोधपुर रियासत में आसोप , गारासणी , सर्गियो , मीठड़ी आदी , इनके बड़े ठिकाने थे ।
04. जोधसिंहोत कुम्पावत:- कुम्पा जी के बाद क्रमश माँडण, खीवकरण, किशनसिँह, मुकुन्दसिंह, जैतसिंह, रामसिंह, व् सरदारसिंह हुए । सरदार सिंह के पुत्र जोधसिंह ने महाराजा अभयसिंह जोधपुर की तरह अहमदाबाद के युद्ध में अच्छी वीरता दिखाई । महाराजा ने जोधसिंह को गारासण खेड़ा, झबरक्या और कुम्भारा इनायत दिया । इनके वंशज कहलाये जोधसिन्होत ।
05.महासिंह कुम्पावत:- कुम्पा जी के पुत्र महासिंह के वंशज महासिंहोत कहलाते है महाराजा अजीतसिँह ने हठसिंह फ़तेह सिंह को सिरयारी का ठिकाना इनायत दिया । 1847 विक्रमी में सिरयारी के केशरीसिंह मेड़ता युद्ध में काम आये । सिरयारी पांच गाँवो का ठिकाना था।
06. उदयसिंहोत कुंपावत:- कुम्पा जी के चोथे पुत्र उदयसिँह के वंशज उदयसिंहोत कुम्पावत कहलाते है । उदयसिँह के वंशज छतरसिंह को विक्रमी 1831 में बूसी का ठिकाना मिला । विक्रमी संवत 1715 के धरमत के युद्ध में उदयसिंहोत के वंशज कल्याण सिंह घोड़ा आगे बढाकर तलवारों की रीढ़ के ऊपर घुसे और वीरता दिखाते हुए काम आये । यह कुरब बापसाहब का ठिकाना था। चेलावास, मलसा, बावड़ी, हापत, सीहास, रढावाल , मोड़ी ,आदी ठिकाने छोटे ठिकाने थे ।
07.तिलोकसिन्होत कुम्पावत:- कुम्पा के सबसे छोटे पुत्र तिलोक सिंह के वंशज तिलोकसिन्होत कुम्पावत कहलाये । तिलोकसिंह ने सूरसिंह जोधपुर की तरह से किशनगढ़ के युद्ध में वीरगति प्राप्त की । इस कारन तिलोक सिंह के पुत्र भीमसिंह को घणला का ठिकाना सूरसिंह जोधपुर ने विक्रमी 1654 में इनायत किया ।
कुम्पावत राठौड़ो का पीढी क्रम इस प्रकार है –
राव कुम्पा जी - राव महाराज जी (मेहराज) - राव अखेराज जी (राव अखैराज जी) - राव रणमल जी (राव रिङमाल जी)
ख्यात अनुसार पीढी क्रम ईस प्रकार है -
01. महाराजराजा यशोविग्रह जी (कन्नौज राज्य के राजा)
02. महाराजराजा महीचंद्र जी
03. महाराज राजा चन्द्रदेव जी
04. महाराजराजा मदनपाल जी (1154)
05. महाराज राजा गोविन्द्र जी
06. महाराज राजा विजयचन्द्र जी जी (1162)
07. महाराज राजा जयचन्द जी (कन्नौज उत्तर प्रदेश1193)
08. राव राजा सेतराम जी
09. राव राजा सीहा जी (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान1273)
10. राव राजा अस्थान जी (1292)
11. राव राजा दूहड़ जी (1309)
12. राव राजा रायपाल जी (1313)
13. राव राजा कान्हापाल जी (1323)
14. राव राजा जलमसी जी (राव जालण जी) (1328)
15. राव राजा चड़ा जी (राव छाडा जी) (1344)
16. राव राजा तिडा जी (राव टीडा जी) (1357)
17. राव राजा सलखा जी (1374)
18. राव बीरम जी (राव विरम देव जी)
19. राव चुंडा जी
20. राव रणमल जी (राव रिङमाल जी)
21. राव अखेराज जी (राव अखैराज जी)
22. राव महाराज जी (मेहराज)
23. राव कुम्पा जी (राव महाराज जी (मेहराज)के पुत्र)
राव कुम्पा जी - राव रणमल जी (राव रिङमाल जी) के पुत्र अखेराज जोधपुर के राजा राव जोधा के भाई राव अखैराज के पोत्र व मेहराज के पुत्र थे । इन का जन्म वि.सं. 1559 कृष्ण द्वादशी माह को राडावास धनेरी (सोजत) गांव में मेहराज जी की रानी क्रमेती भातियानी जी के गर्भ से हुवा था राव जेता मेहराज जी के भाई पंचायण जी का पुत्र था अपने पिता के निधन के समय राव कुँपा की आयु एक साल थी, बड़े होने पर ये जोधपुर के शासक मालदेव की सेवा में चले गए ।
मालदेव अपने समय के राजस्थान के शक्तिशाली शासक थे राव कुँपा व जेता जेसे वीर उसके सेनापति थे, मेड़ता व अजमेर के शासक विरमदेव को मालदेव की आज्ञा से राव कुँपा व जेता ने अजमेर व मेड़ता छीन कर भगा दिया था, अजमेर व मेड़ता छीन जाने के बाद राव विरमदेव ने डीडवाना पर कब्जा कर लिया लेकिन राव कुँपा व जेता ने राव विरमदेव को डीडवाना में फिर जा घेरा और भयंकर युद्ध के बाद डीडवाना से भी विरमदेव को निकाल दिया । विरमदेव भी उस ज़माने अद्वितीय वीर योधा था डीडवाना के युद्ध में राव विरमदेव की वीरता देख राव जेता ने कहा था कि यदि मालदेव व विरमदेव शत्रुता त्याग कर एक हो जाये तो हम पूरे हिंदुस्तान पर विजय हासिल कर सकतें है ।
राव कुँपा व राव जेता ने मालदेव की और से कई युधों में भाग लेकर विजय प्राप्त की और अंत में वि.सं. 1600 चेत्र शुक्ला पंचमी को सुमेल युद्ध में दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी की सेना के साथ लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की । इस युद्ध में बादशाह की अस्सी हजार सेना के सामने राव कुँपा व जेता दस हजार सैनिकों के साथ थे| भयंकर युद्ध में बादशाह की सेना के चालीस हजार सैनिक काट डालकर राव कुँपा व जेता ने अपने दस हजार सैनिकों के साथ वीर गति प्राप्त की । मातर भूमि की रक्षार्थ युद्ध में अपने प्राण न्योछावर करने वाले मरते नहीं वे तो इतिहास में अमर हो जाते है
अमर लोक बसियों अडर, रण चढ़ कुंपो राव ।
सोले सो बद पक्ष में चेत पंचमी चाव ।।
उपरोक्त युद्ध में चालीस हजार सैनिक खोने के बाद शेरशाह सूरी आगे जोधपुर पर आक्रमण की हिम्मत नहीं कर सका व विचलित होकर शेरशाह ने कहा-
बोल्यो सूरी बैन यूँ, गिरी घाट घमसाण ।
मुठी खातर बाजरी, खो देतो हिंदवाण ।।
कि -"मुठी भर बाजरे कि खातिर में दिल्ली कि सलतनत खो बैठता ।” और इसके बाद शेरशाह सूरी ने कभी राजपूताना में आक्रमण करने कि गलती नहीं की ।
मंडोर के रणमल जी के पुत्र अखेराज के दो पुत्र पंचायण व् राव महाराज जी (मेहराज) हुए । महाराज के पुत्र कुम्पा (कुँपा) के वंशज कुंपावत राठौड़ कहलाये । मारवाड़ का राज्य ज़माने में कुम्पा (कुँपा) व् पंचायण के पुत्र जेता का महत्व पूर्ण योगदान रहा था । चितोड़ से बनवीर को हटाने में भी कुँपा की महत्वपूरण भूमिका थी । मालदेव ने वीरम का जब मेड़ता से हटाना चाहा , कुम्पा (कुँपा) ने मालदेव का पूर्ण साथ लेकर इन्होने अपना पूर्ण योगदान दिया | मालदेव ने वीरम से डीडवाना छीना तो कुँपा को डीडवाना मिला । मालदेव की 1598 विक्रमी में बीकानेर विजय करने में कुँपा की महत्वपूरण भूमिका थी । शेरशाह ने जब मालदेव पर आक्रमण किया और मालदेव को अपने सरदारों पर अविश्वास हुआ तो उन्होंने अपने साथियों सहित युद्ध भूमि छोड़ दी परन्तु जेता व् कुम्पा (कुँपा) ने कहा धरती हमारे बाप की दादाओं के शोर्य से प्राप्त हुयी है, हम जीवीत रहते उसे जाने नहीं देंगे। दोनों वीरों ने शेरशाह की सेना से टक्कर ली अद्भुत शोर्य दिखाते हुए मात्रभूमि की रक्षार्थ बलिदान हो गए ।
उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर शेरशाह के मुख से यह शब्द निकल पड़े ' मेने मुठ्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली सलतनत खो दी थी । यह युद्ध सुमेल के पास चेत्र सुदी 5 विक्रमी संवत 1600 इसवी संवत 1544 में हुआ ।
कुँपा के 8 पुत्र थे | माँडण को अकबर ने आसोप की जागीरी दी थी । आसोप कुरव कायदे में प्रथम श्रेणी का ठिकाना था । दुसरे पुत्र प्रथ्वीराज सुमेल युद्ध में मारे गए थे । उनके पुत्र महासिंह को बतालिया व् ईशरदास को चंडावल आदी के ठिकाने मिले थे । रामसिंह सुमेल युद्ध में मारे गए थे । उनके वंशजों को वचकला ठिकाना मिला । उनके पुत्र प्रताप सिंह भी सुमेल युद्ध में मारे गए । माँडण के पुत्र खीवकरण ने कई युद्ध में भाग लिया वे बादशाह अकबर के मनसबदार थे । सूरसिंहजोधपुर के साथ दक्षिण के युधों में लड़े और बूंदी के साथ हुए युद्ध में काम आये ।
इनके पुत्र किशनसिँह (नाहर खां) ने गजसिंह जोधपुर के साथ कई युधों में भाग लिया किशनसिँह ने शाहजहाँ के समुक्ख लिहत्थे नाहर को मारा । अतः ईनका नाम नाहर खां भी हुआ । विक्रमी संवत 1737 में किशनसिँह (नाहर खां) ने पुष्कर में वराह मंदिर पर हमला किया । 6 अन्य कुम्पाव्तों सहित किशनसिँह (नाहर खां) के पुत्र सूरज मल वहीँ काम आये । सूरज मल जी के छोटे भाई जैतसिंह दक्षिण के युद्ध में विक्रमी 1724 में काम आये । आसोप के महेशदासजी अनेक युद्धों में लड़े और मेड़ता युध्द में वीर गति पायी ।
राव कुम्पा जी (राव महाराज जी (मेहराज) के पुत्र)
राव कुम्पा जी, राव रणमल जी (राव रिङमाल जी) के पुत्र अखेराज जोधपुर के राजा राव जोधा के भाई राव अखैराज के पोत्र व मेहराज के पुत्र थे । इन का जन्म वि.सं. 1559 कृष्ण द्वादशी माह को राडावास धनेरी (सोजत) गांव में मेहराज जी की रानी क्रमेती भातियानी जी के गर्भ से हुवा था राव जेता मेहराज जी के भाई पंचायण जी का पुत्र था अपने पिता के निधन के समय राव कुँपा की आयु एक साल थी, बड़े होने पर ये जोधपुर के शासक मालदेव की सेवा में चले गए ।
मालदेव अपने समय के राजस्थान के शक्तिशाली शासक थे राव कुँपा व जेता जेसे वीर उसके सेनापति थे, मेड़ता व अजमेर के शासक विरमदेव को मालदेव की आज्ञा से राव कुँपा व जेता ने अजमेर व मेड़ता छीन कर भगा दिया था, अजमेर व मेड़ता छीन जाने के बाद राव विरमदेव ने डीडवाना पर कब्जा कर लिया लेकिन राव कुँपा व जेता ने राव विरमदेव को डीडवाना में फिर जा घेरा और भयंकर युद्ध के बाद डीडवाना से भी विरमदेव को निकाल दिया । विरमदेव भी उस ज़माने अद्वितीय वीर योधा था डीडवाना के युद्ध में राव विरमदेव की वीरता देख राव जेता ने कहा था कि यदि मालदेव व विरमदेव शत्रुता त्याग कर एक हो जाये तो हम पूरे हिंदुस्तान पर विजय हासिल कर सकतें है ।
राव कुँपा व राव जेता ने मालदेव की और से कई युधों में भाग लेकर विजय प्राप्त की और अंत में वि.सं. 1600 चेत्र शुक्ला पंचमी को सुमेल युद्ध में दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी की सेना के साथ लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की । इस युद्ध में बादशाह की अस्सी हजार सेना के सामने राव कुँपा व जेता दस हजार सैनिकों के साथ थे| भयंकर युद्ध में बादशाह की सेना के चालीस हजार सैनिक काट डालकर राव कुँपा व जेता ने अपने दस हजार सैनिकों के साथ वीर गति प्राप्त की । मातर भूमि की रक्षार्थ युद्ध में अपने प्राण न्योछावर करने वाले मरते नहीं वे तो इतिहास में अमर हो जाते है-
अमर लोक बसियों अडर, रण चढ़ कुंपो राव ।
सोले सो बद पक्ष में चेत पंचमी चाव ।।
उपरोक्त युद्ध में चालीस हजार सैनिक खोने के बाद शेरशाह सूरी आगे जोधपुर पर आक्रमण की हिम्मत नहीं कर सका व विचलित होकर शेरशाह ने कहा-
बोल्यो सूरी बैन यूँ, गिरी घाट घमसाण ।
मुठी खातर बाजरी, खो देतो हिंदवाण ।।
कि -"मुठी भर बाजरे कि खातिर में दिल्ली कि सलतनत खो बैठता । " और इसके बाद शेरशाह सूरी ने कभी राजपूताना में आक्रमण करने कि गलती नहीं की ।
मंडोर के रणमल जी के पुत्र अखेराज के दो पुत्र पंचायण व् राव महाराज जी (मेहराज) हुए । महाराज के पुत्र कुम्पा (कुँपा) के वंशज कुंपावत राठौड़ कहलाये । मारवाड़ का राज्य ज़माने में कुम्पा (कुँपा) व् पंचायण के पुत्र जेता का महत्व पूर्ण योगदान रहा था । चितोड़ से बनवीर को हटाने में भी कुँपा की महत्वपूरण भूमिका थी । मालदेव ने वीरम का जब मेड़ता से हटाना चाहा , कुम्पा (कुँपा) ने मालदेव का पूर्ण साथ लेकर इन्होने अपना पूर्ण योगदान दिया | मालदेव ने वीरम से डीडवाना छीना तो कुँपा को डीडवाना मिला । मालदेव की 1598 विक्रमी में बीकानेर विजय करने में कुँपा की महत्वपूरण भूमिका थी । शेरशाह ने जब मालदेव पर आक्रमण किया और मालदेव को अपने सरदारों पर अविश्वास हुआ तो उन्होंने अपने साथियों सहित युद्ध भूमि छोड़ दी परन्तु जेता व् कुम्पा (कुँपा) ने कहा धरती हमारे बाप की दादाओं के शोर्य से प्राप्त हुयी है, हम जीवीत रहते उसे जाने नहीं देंगे। दोनों वीरों ने शेरशाह की सेना से टक्कर ली अद्भुत शोर्य दिखाते हुए मात्रभूमि की रक्षार्थ बलिदान हो गए ।
उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर शेरशाह के मुख से यह शब्द निकल पड़े ' मेने मुठ्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली सलतनत खो दी थी । यह युद्ध सुमेल के पास चेत्र सुदी 5 विक्रमी संवत 1600 इसवी संवत 1544 में हुआ । कुँपा के 8 पुत्र थे | माँडण को अकबर ने आसोप की जागीरी दी थी । आसोप कुरव कायदे में प्रथम श्रेणी का ठिकाना था । दुसरे पुत्र प्रथ्वीराज सुमेल युद्ध में मारे गए थे । उनके पुत्र महासिंह को बतालिया व्ईशरदास को चंडावल आदी के ठिकाने मिले थे । रामसिंह सुमेल युद्ध में मारे गए थे । उनके वंशजों को वचकला ठिकाना मिला । उनके पुत्र प्रताप सिंह भी सुमेल युद्ध में मारे गए । माँडण के पुत्र खीवकरण ने कई युद्ध में भाग लिया वे बादशाह अकबर के मनसबदार थे । सूरसिंह जोधपुर के साथ दक्षिण के युधों में लड़े और बूंदी के साथ हुए युद्ध में काम आये ।
इनके पुत्र किशनसिँह ने गजसिंह जोधपुर के साथ कई युधों में भाग लिया किशनसिँह ने शाहजहाँ के समुक्ख लिहत्थे नाहर को मारा । अतः ईनका नाम नाहर खां भी हुआ । विक्रमी संवत 1737 में नाहर खां ने पुष्कर में वराह मंदिर पर हमला किया । 6 अन्य कुम्पाव्तों सहित नाहर खां के पुत्र सूरज मल वहीँ काम आये । सूरज मल जी के छोटे भाई जैतसिंह दक्षिण के युद्ध में विक्रमी 1724 में काम आये । आसोप के महेशदासजी अनेक युद्धों में लड़े और मेड़ता युध्द में वीर गति पायी ।
1. महेशदासोत कुम्पावत:- विक्रमी संवत 1641 में बादशाह ने सिरोही के राजा सुरतान को दंड देने मोटे राजा उदयसिँह को भेजा । इस युध् में महेशदास के पुत्र शार्दूलसिंह ने अद्भुत पराक्रम दिखाया और वहीँ रणखेत में रहे । अतः उनके वंशज भावसिंह को 1702 विक्रमी में कटवालिया के अलावा सिरयारी बड़ी भी उनका ठिकाना था । एक-एक गाँव के भी काफी ठिकाने थे ।
2. इश्वरदासोत कुंपावत:- कुँपा के पुत्र इश्वरदास के वंशज कहलाये । इनका मुख्या ठिकाना चंडावल था । यह हाथ कुरब का ठिकाना था । इश्वरदास के वंशज चाँदसिंह को महाराजा सूरसिंह ने 1652 विक्रमी में प्रदान किया था । 1658 ईस्वी के धरमत के युद्ध में चाँदसिंह के पुत्र गोर्धनदास युद्ध में घोड़ा उठाकर शत्रुओं को मार गिराया और स्वयं भी काम आये । इस ठिकाने के नीचे 8 अन्य गाँव थे । राजोसी खुर्द, माटो, सुकेलाव इनके एक-एक गाँव ठिकाने है ।
3. मांडनोत कुम्पावत:- कुँपा जी के बड़े पुत्र मांडण के वंशज माँडनोत कहलाये । इनका मुख्या ठिकाना चांदेलाव था । जिसको माँडण के वंशज छत्र सिंह को विजय सिंह ने इनायत किया । इनका दूसरा ठिकाना रुपाथल था | जगरामसिंह को विक्रमी में गजसिंह पूरा का ठिकाना भी मिला । 1893 में वासणी का ठिकाना मानसिंह ने इनायत किया । लाडसर भी इनका ठिकाना था । यहाँ के रघुनाथ सिंह , अभयसिंह द्वारा बीकानेर पर आक्रमण करने के समय हरावल में काम आये । जोधपुर रियासत में आसोप , गारासणी , सर्गियो , मीठड़ी आदी , इनके बड़े ठिकाने थे ।
4. जोधसिंहोत कुम्पावत:- कुम्पा जी के बाद क्रमश माँडण, खीवकरण, किशनसिँह, मुकुन्दसिंह, जैतसिंह, रामसिंह, व् सरदारसिंह हुए । सरदार सिंह के पुत्र जोधसिंह ने महाराजा अभयसिंह जोधपुर की तरह अहमदाबाद के युद्ध में अच्छी वीरता दिखाई । महाराजा ने जोधसिंह को गारासण खेड़ा, झबरक्या और कुम्भारा इनायत दिया । इनके वंशज कहलाये जोधसिन्होत ।
5.महासिंह कुम्पावत:- कुम्पा जी के पुत्र महासिंह के वंशज महासिंहोत कहलाते है महाराजा अजीतसिँह ने हठसिंह फ़तेह सिंह को सिरयारी का ठिकाना इनायत दिया । 1847 विक्रमी में सिरयारी के केशरीसिंह मेड़ता युद्ध में काम आये । सिरयारी पांच गाँवो का ठिकाना था।
6. उदयसिंहोत कुंपावत:- कुम्पा जी के चोथे पुत्र उदयसिँह के वंशज उदयसिंहोत कुम्पावत कहलाते है । उदयसिँह के वंशज छतरसिंह को विक्रमी 1831 में बूसी का ठिकाना मिला । विक्रमी संवत 1715 के धरमत के युद्ध में उदयसिंहोत के वंशज कल्याण सिंह घोड़ा आगे बढाकर तलवारों की रीढ़ के ऊपर घुसे और वीरता दिखाते हुए काम आये । यह कुरब बापसाहब का ठिकाना था । चेलावास,मलसा , बावड़ी , हापत, सीहास, रढावाल , मोड़ी ,आदी ठिकाने छोटे ठिकाने थे ।
7.तिलोकसिन्होत कुम्पावत:- कुम्पा के सबसे छोटे पुत्र तिलोक सिंह के वंशज तिलोकसिन्होत कुम्पावत कहलाये । तिलोकसिंह ने सूरसिंह जोधपुर की तरह से किशनगढ़ के युद्ध में वीरगति प्राप्त की । इस कारन तिलोक सिंह के पुत्र भीमसिंह को घणला का ठिकाना सूरसिंह जोधपुर ने विक्रमी 1654 में इनायत किया ।
राव महाराज जी (मेहराज)
बड़े पुत्र मांडण
दुसरे पुत्र प्रथ्वीराज
इश्वरदास
रामसिंह
महासिंह
चोथे पुत्र उदयसिँह
सूरसिंह
सबसे छोटे पुत्र तिलोक सिंह
प्रताप सिंह
Kumpavat kon kon he muje ye batahiye ki chandavat ke sath inaki sadi hoti he ya nahi
जवाब देंहटाएंnhi v
हटाएंbhaipo h
Chandawat or kumpawat dono Rathore Rajput he dono bhai hote he. Vivah namumkin he
जवाब देंहटाएंHa
हटाएंKhariya khangar vale kumpawato k bare m kuch bthaye
जवाब देंहटाएंAap ka abhar hoga hkm