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देवराजोत राठौड़

देवराजोत राठौड़:- बीरम (वीरम) के पुत्र देवराज के वंशज देवराजोत राठौड़ कहलाये । सेतरावो इनका मुख्य ठिकाना है । इसके आलावा सुवालिया आदी ठिकाने थे ।

देवराजोत राठौड़ो का पीढी क्रम इस प्रकार है -  

राव देवराज जी - राव बीरम जी (राव विरम देव जी) - राव राजा सलखा जी - राव राजा तिडा जी (राव टीडा जी) - राव राजा चड़ा जी (राव छाडा जी) - राव राजा तिडा जी (राव टीडा जी) - राव राजा चड़ा जी (राव छाडा जी) - राव राजा जलमसी जी (राव जालण जी) - राव राजा कान्हापाल जी - राव राजा रायपाल जी - राव राजा दूहड़ जी - राव राजा अस्थान जी

ख्यात अनुसार पीढी क्रम ईस प्रकार है -

1. महाराजराजा यशोविग्रह जी (कन्नौज राज्य के राजा)

2. महाराजराजा महीचंद्र जी

3. महाराज राजा चन्द्रदेव जी

4. महाराजराजा मदनपाल जी (1154)

5. महाराज राजा गोविन्द्र जी

6. महाराज राजा विजयचन्द्र जी जी (1162)

7. महाराज राजा जयचन्द जी (कन्नौज उत्तर प्रदेश1193)

8. राव राजा सेतराम जी

9. राव राजा सीहा जी (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान1273)

10. राव राजा अस्थान जी (1292)

11. राव राजा दूहड़ जी (1309)

12. राव राजा रायपाल जी (1313)

13. राव राजा कान्हापाल जी (1323)

14. राव राजा जलमसी जी (राव जालण जी) (1328)

15. राव राजा चड़ा जी (राव छाडा जी) (1344)

16. राव राजा तिडा जी (राव टीडा जी) (1357)

17. राव राजा सलखा जी (1374)

18. राव बीरम जी (राव विरम देव जी) –

19. राव देवराज जी - देवराज जी ने मामा को कहा की एक भैंस का चमडा फैला सकूँ उतनी भूमि ही दे दो। मामा के वचनबद्ध होने के बाद भैंस के चमड़े को तेल में भिगोकर नर्म किया गया और बारीक तांत खिंचवाई और एक गढ़ बन सके उतनी जमीन को उस डोरी से नाप लिया गया। जोगी रत्न नाथ और दिव्य रसायन के कारण धन की कमी तो थी नही। जोगी की सलाह के अनुसार एक कच्ची और एक पक्की इंट रख-रख के देरावर का गढ़ बनाया गया जो थार की शान था।

राव सलखा जी के बाद खेड़ की गदी राव विरम देव को सोंपी गई लेकिन बाद में इन्होने वहा का त्याग कर दिया क्योकि मालदेव के पुत्र ने इनके भाई जेतमाल का वध कर दिया था तब इन्होने मालदेव के कहने पर की आपस में लड़कर मरना ठीक नहीँ तब ये जांगल प्रदेस में आगये । वीरम जी जोइयो के साथ युद्ध करते हुए मारे गए इनके पुत्र देवराज तथा जयसिह भी वीरगति को प्राप्त हुए । तीसरे पुत्र गोगादे मोहिलो के साथ युद्ध में मारे गए। देवराज से जो खांप चली वो देवराजोत राठौड़ कहलाये।

                            

टिप्पणियाँ

  1. देवराज राठौड़ का नख किया हैं।

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  2. ओ भाई गोगादेव जी ने वीरगति प्राप्त नही की थी । उन्होंने छोटे भाई राव चूंडा को गादी पर बिठा कर गुरु जालंधर नाथ के साथ तपस्या करने जालोर चले गए थे । अभी जालोर में उनकी तपस्या स्थली पर बहुत भव्य मंदिर भी बना हुआ है

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